जनतंत्र की भावनाओं से खेल रही सरकार - Zee News हिंदी

जनतंत्र की भावनाओं से खेल रही सरकार



प्रवीण कुमार

भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर रामलीला मैदान में किया जा रहा अन्ना का अनशन गंभीर और निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. एक ओर जहां सरकार अन्ना की मांग को संसद और संविधान की दुहाई देकर खारिज कर रही है, वहीं अन्ना जनभावनाओं का सम्मान करते हुए जनलोकपाल बिल को कानून बनाने की मांग पर अडिग हैं. बड़ा सवाल यह है कि देश में किसकी सर्वोच्चता मानी जाए- संसद, संविधान या फिर जन आवाज़ की.

सरकार को यह समझना होगा कि जिस जनतंत्र की आवाज़ के सहारे अन्ना भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए आंदोलन चला रहे हैं और जिस संसद व संविधान की दुहाई देकर अन्ना की मांग को खारिज किया जा रहा है उसमें सर्वोपरि कौन है. वास्तव में जनता द्वारा चुने गए सांसदों के समूह को संसद कहते हैं और जनता द्वारा चुनकर भेजे गए सांसद को कानून बनाने का अधिकार होता है. अब विचार का विषय यह है कि चुनाव के ज़रिए जनता सांसद चुनती है और इसी सांसद से संसद का अस्तित्व है तो फिर सांसद और संसद जनता से ऊपर कैसे हो सकता है. और जब जनता सर्वोपरि है तो अन्ना के आंदोलन से उठ रही जन आवाज़ को दबाने की हिमाकत सरकार क्यों कर रही है. अन्ना हज़ारे भी बार-बार यही कह रहे हैं कि नियम और कानून जनता के लिए है, जनता से ऊपर नहीं है.

निष्पक्ष, प्रभावी, स्वतंत्र और स्वायत्त लोकपाल व लोकायुक्त की संस्थाएं केंद्र और प्रांतीय स्तरों पर कायम होने से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में मदद अवश्य मिलेगी. ठीक उसी तरह, जैसे आज उच्च न्यायालयों, सर्वोच्च न्यायालय एवं नियंत्रक व महालेखा परीक्षक जैसी संस्थाओं से कुछ सहायता मिल जाती है या सूचना के अधिकार का कानून बनने से भी कुछ मदद मिली है. किंतु यह भी सही है कि केंद्र सरकार, सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टियों में एक सही और प्रभावी लोकपाल संस्था को बनाने की कोई इच्छाशक्ति एवं क्षमता नहीं बची है.

किस्सा नया नहीं है. 42 साल से लोकपाल बिल को देश की सरकारें संसद में पारित कर कानून बनाने के मामले को टालती आ रही हैं. इतने सालों में पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ मज़बूत लोकपाल बिल को लेकर इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ है. सवाल यह उठता है कि सरकार जनलोकपाल बिल को पारित क्यों नहीं करना चाहती है. सरकार का तर्क है कि अन्ना की शर्तें और तय समय सीमा में लोकपाल बिल को पारित कराना संभव नहीं है. मेरी राय में सरकार के इस तर्क का कोई आधार नहीं है. संसद में एक मज़बूत लोकपाल बिल को पेश करने और उसे पारित कराने के लिए टीम अन्ना ने सरकार को पर्याप्त समय दिया. याद करें 10 अप्रैल 2011 का जंतर-मंतर का वो दृश्य जब अन्ना ने सरकार से मिले आश्वासन (टीम अन्ना और सरकार की संयुक्त समिति एक साझा मसौदा तैयार करेगी जिसे एक मजबूत लोकपाल बिल का रूप दिया जाएगा और फिर उसे संसद में पेश किया जाएगा) के बाद अपना अनशन तोड़ा था. उस दिन भी अन्ना ने सरकार को आगाह किया था कि अगर 15 अगस्त तक लोकपाल बिल को संसद से पारित नहीं किया गया तो 16 अगस्त से फिर उनका अनशन शुरू होगा.

इस बीच टीम अन्ना और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच बैठकों का दौर चलता रहा जिसका नतीजा शून्य रहा. टीम अन्ना ने इन चार महीनों में पूरे देश की जनता से संवाद बनाया और उसे समझाने की कोशिश की कि जनलोकपाल किस तरह से देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएगा. सरकार ने बाबा रामदेव के अनशन से निपटने की रणनीति को आधार बनाकर अन्ना के आंदोलन को सख्ती से दबाने में जुट गई. 16 अगस्त को अनशन पर बैठने से पहले अन्ना की गिरफ्तारी, फिर अन्ना पर सरकार व कांग्रेस के नेताओं द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणियां करना सरकार के लिए खतरनाक व आत्मघाती साबित हुआ. अन्ना के साथ जनसैलाब उमड़ पड़ा. रामलीला मैदान और देश के कोने-कोने में लोगों का हुजूम उमड़ा तो सरकार के होश उड़ गए. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है.

टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल का कहना है कि सरकार में कई ऐसे मजबूत तत्व हैं, जो पूरी वार्ता प्रक्रिया को निष्फल बनाना चाहते हैं. हमें बताया गया कि सीसीपीए में, खास तौर पर पी. चिदंबरम और कपिल सिब्बल किसी भी प्रकार की बातचीत अथवा किसी भी प्रकार के समझौते के पूरी तरह खिलाफ हैं. सलमान खुर्शीद ने हमें बताया कि बहुत टकराव है. चिदंबरम और सिब्बल ने सीसीपीए की बैठक में साफ कहा कि टीम अन्ना के साथ कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए और आंदोलन से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए. केजरीवाल के इस कथन से सरकार की मंशा साफ जाहिर होती है.

बहरहाल, अन्ना के अनशन को लेकर टीम अन्ना और सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है. टीम अन्ना ने शनिवार की डेडलाइन सरकार के दे रखी है. इसके बाद आंदोलन और बड़ा आकार लेगा. दिल्ली चलो और संसद घेरो का अन्ना का नारा अस्तित्व में आ जाएगा. फिर सरकार के लिए इससे निपटना आसान नहीं रह जाएगा. फिर तो वही आवाज़ गूंजेगी- सिंहासन खाली करो कि जनती आती है...

First Published: Friday, August 26, 2011, 18:23

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