Last Updated: Saturday, June 2, 2012, 12:38

बिमल कुमार
वैसे तो भारत जैसे सशक्त लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं वाले देश में शीर्ष पदों पर आसीन लोगों का आना और जाना एक अनवरत सिलसिला है, लेकिन कई मायनों में संवेदनशील रक्षा प्रतिष्ठानों में शीर्ष व्यक्ति के कार्यकाल का विवादों में घिरना देश के दीर्घकालीन हित के लिए कतई हितकर नहीं है। इस देश के लोकतांत्रिक इतिहास में शायद ही ऐसा कोई सेना प्रमुख रहा हो, जिसका कार्यकाल जनरल वीके सिंह के जितना विवादों में घिरा।
वीके सिंह के भारतीय सेना के प्रमुख के तौर पर विवादित कार्यकाल का गुरुवार को अंत हो गया। सिंह ने 26 महीने के अपने कार्यकाल के बाद बेटन नए सेना प्रमुख बिक्रम सिंह को सौंप दी और सेना में अपनी 41 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो गए। अब देश और सैन्य प्रतिष्ठान की गरिमा के मद्देनजर बेहतर यही होगा कि सिंह की रिटायरमेंट के बाद विवादों को और हवा न दी जाए। विदाई से एक दिन पहले जनरल ने कहा, ‘उनकी चाहत है कि उन्हें एक सैनिक के रूप में याद किया जाए, जिसने हमेशा वह किया जो सेना के लिए सही था। उनकी यह भावना इस बात को दर्शाती है कि वे किसी तरह के विवाद को आगे और पालना नहीं चाहते। अभी तक बेदाग रहे जनरल ने सरकार और अपने बीच किसी तरह की गलतफहमी को भी सिरे से खारिज किया।
विवादों के बीच दिलचस्प यह रहा कि इस दरम्यान जनरल सिंह की ईमानदारी, निष्ठा, योगयता और कौशल पर कोई शक नहीं किया गया। वहीं, काबिल प्रशासक और ईमानदार के रूप में जाने जाते रक्षामंत्री एके एंटनी ने भी कभी जनरल की निष्ठा और ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाए। पर अजीब बात यह है कि इन दोनों व्यक्तियों के कार्यकाल में इतने सारे विवाद हुए। हालांकि इस दौरान सरकार और सेना के बीच जितने भी विवाद सामने आए, उससे प्रतीत हो रहा था कि वाकई कई मतभेद हैं, लेकिन जनरल सिंह हमेशा इस बात से इनकार करते रहे।
सिंह ने हमेशा एंटनी की प्रशंसा ही की और रक्षा मंत्री भी कहते रहे कि उन्हेंज जनरल पर पूरा भरोसा है। जनरल सिंह के कार्यकाल में सबसे बड़ा विवाद उनकी जन्मकतिथि (10 मई 1950 या 1951) का था, जिसमें सरकार ने जनरल सिंह की उम्र एक वर्ष कम मानने से इनकार कर दिया था। इस मामले में जनरल शीर्ष कोर्ट तक गए और फैसला अपने पक्ष में न आने पर इसकी आलोचना भी की। फिर टाट्रा ट्रक डील को मंजूरी देने के लिए पूर्व ले.ज. तेजिंदर सिंह पर 14 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश का आरोप लगाया। जिसके बाद मामले ने काफी तूल पकड़ा। उसके बाद प्रधानमंत्री को लिखी उनकी चिट्ठी लीक हो गई, जिसमें सेना में गोला-बारूद की कमी को लेकर चिंता जताई गई थी। वहीं, ले.ज. दलबीर सिंह सुहाग को असम में विफल खुफिया अभियान के मद्देनजर नोटिस दिया। इन सभी मुद्दों को लेकर काफी बखेड़ा भी हुआ।
कुछ दिनों पहले सिंह ने एक साक्षात्कार में बेबाक राय रखी और अपनी उम्र से जुड़े विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अप्रसन्नता जताई। अपनी पीड़ा को न छुपाते हुए उन्होंने रक्षा मंत्रालय की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्हें फंसाने के लिए चुनिंदा दस्तावेज लीक किए गए थे। जनरल ने अपना दर्द कुछ यूं बयां किया था कि उनके खिलाफ एक लॉबी काम कर रही है। और व्यवस्था तंत्र में कुछ लोग उन्हें बचाने का काम कर रहे हैं, जो मूल रूप से गलत काम में लिप्त हैं।
उनका मानना है कि उनकी उम्र के संबंध में कुछ दस्तावेज अवैध तरीके से जारी किए गए। कुछ दस्तांवेज की जानकारी जो आरटीआई के तहत नहीं दिए जाने चाहिए थे, उन्हें भी सार्वजनिक किया गया। सिंह ने खुलकर तो नहीं कहा लेकिन उनका आशय स्पचष्ट था कि उन्हें फंसाने के लिए ही चुनिंदा सूचनाएं लीक की गई। साथ ही उन्होंने इस बात को भी सिरे से नकारा है कि वह सेना को गुटों में बंटा छोड़कर जा रहे हैं।
उन्होंने मनमोहन सिंह को लिखे उस पत्र के लीक होने पर भी अपनी नाराजगी नहीं छिपाई, जिसमें सेना की कमियों का जिक्र किया गया था। कुछ दिन पहले उन्हों ने भ्रष्टापचार और गड़बडि़यों को लेकर कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर कार्रवाई भी कर डाली और यह संदेश देने की कोशिश की वे भ्रष्टा़चार को कतई सहन नहीं करेंगे।
हरियाणा के रोहतक जिले के निवासी जनरल सिंह ने सेना प्रमुख के तौर पर 26 महीने पहले 31 मार्च 2010 को सेना की बागडोर संभाली। उन्होंने सेना में 42 वर्षों तक काम किया। वह देश के पहले प्रशिक्षित कमांडो जो सेना प्रमुख बने और उनकी अब तक की छवि ईमानदार, दृढ़ और स्पष्टववादी सैन्यि अधिकारी की ही रही।
अब जबकि वह रिटायर हो चुके हैं, उन्होंने राजनीति में जाने से इनकार किया है,लेकिन यह भी कहा कि फिलहाल कुछ सोचा नहीं है। वैसे देश में आज तक कोई सेना प्रमुख रिटायरमेंट के बाद राजनीति में नहीं आया है। इस परंपरा को यदि जनरल सिंह आगे बढ़ाते हैं तो यह उनकी गरिमा को ही बढ़ाएगा।
First Published: Saturday, June 2, 2012, 12:38