जनलोकपाल बाहर, रिटेल एफडीआई अंदर - Zee News हिंदी

जनलोकपाल बाहर, रिटेल एफडीआई अंदर



इन्द्रमोहन कुमार

 

जब वरिष्ठ गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने अगस्त में जनलोकपाल के लिए आंदोलन कर रामलीला मैदान में अपना अनशन खत्म किया, उस समय केंद्र सरकार ने यह भरोसा दिलाया कि संसद के आने वाले शीतकालीन सत्र में इस बिल को पारित कर भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाएगा। अन्ना की भी यही मांग थी और लोगों को इसी का इंतजार था कि आखिर इस आंदोलन से भ्रष्टाचार का रोकथाम होगा भी या नहीं।

 

अब शीतकालीन सत्र भी शुरु हो गया है लेकिन दो सप्ताह बाद भी लोकपाल बिल की चर्चा तक नहीं हुई है। सरकार भी खुश है कि मीडिया, जनता और विपक्ष का ध्यान एक नए मुद्दे की तरफ आकर्षित हुआ। इसे सरकार की चालाकी कहें या कमजोरी- जनलोकपाल, भ्रष्टाचार, संचार घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल धांधली तथा भूमि विवाद जैसे मुद्दों को दबाने के लिए एफडीआई को अचानक से चर्चा का विषय बना दिया। कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आड़ लेने के लिए सरकार ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का नया झुंझुना सबके हाथ थमा दिया। नतीजा आपके सामने है, सब एफडीआई… कर रहे हैं।

 

याद कीजिए पिछले दिनों यात्राओं का दौर निकल पड़ा था। 11 अक्टूबर को आडवाणी ने अपनी छठी राजनीतिक यात्रा जन चेतना की शुरुआत जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताबदियारा (बिहार) से की। योगगुरु बाबा रामदेव ने अपनी 10 हजार किलोमीटर की भारत स्वाभिमान यात्रा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि से 20 सितंबर से शुरू की। आगामी यूपी चुनाव में जीत के इरादे को आधार देने के लिए सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा के खिलाफ क्रांति रथयात्रा निकाली। रही सही कसर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने पूरी की। कांग्रेस के राजा बनने को तैयार राहुल की चुनावी व व्यापक जन संपर्क यात्रा भी यूपी से शुरु हुई। इसके अलावा उपवास, व्रत और धरना अलग है, जो अन्ना और अन्य राजनेता कर रहे हैं और कर भी चुके हैं। ये सब धरे के धरे रह गए और आ गया रिटेल में एफडीआई का मसला।

 

इस बीच संसद के शीतकालीन सत्र पर हम सब सांसद और सदन की कार्रवाही पर जैसे ही नजर डालते थे, आशा करते कि कुछ तो चर्चा देखने मिले, पर सभापति दो मिनट में पहले सदस्यों को शांत कराते और दूसरे क्षण परेशान होकर सदन स्थगित कर देते। मजेदार तो बात यह कि इधर संसद बाधित होती थी और उधर राहुल गांधी लाईव हो जाते थे। कांग्रेस का युवा अधिवेशन यानी ‘बुनियाद’तो बार-बार ब्रेकिंग बनता रहा।
संसद के शीतकालीन सत्र में पहले तीन दिन तक यूपी बंटवारा, पी चिदंबरम का मुद्दा हंगामा बरपाता रहा। सरकार भी संकट मोल नहीं लेना चाह रही है। साथ ही सरकार को यह भी डर सता रह है कि अगर संसद में सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहा तो कालेधन और संचार घोटाले के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर भी विपक्ष उसे घेरेगा, जिसपर कहीं न कहीं सरकार तत्काल कमजोर नजर आ रही है। सरकार की तरफ से सबसे बड़े संकट मोचकों में से एक पी चिदंबरम का 2-जी आवंटन घोटाला में नाम आना भी सरकार के लिए बड़ी परेशानी है।

 

अगर गौर से देखा जाए तो विपक्ष की यह मांग अवसरवादी नजर आती है। यह सही है कि पी चिदंबरम का नाम 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आ चुका है, लेकिन संदेह के बादल एनडीए सरकार तक फैले हुए हैं। शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर उछालते रहें तो रोजाना टूटने की आवाजें तो आएंगी ही।

 

बार-बार सत्र के बाधित होने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा न होने से देश का कितना नुकसान होता है, यह हमारे सांसद बेहतर समझते हैं, जनता जो भुगतती है, सो अलग। बावजूद इसके संसद को बाधित किया जा रहा है। इस बार बाधा पहुंचाने के मुद्दों में गृहमंत्री का बहिष्कार भी शामिल हो गया है। विपक्ष की मांग है कि गृहमंत्री पी चिदंबरम 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में बराबर के दोषी हैं, इसलिए उन्हें इस्तीफा देना चाहिए।

 

 

राजनीतिक शुचिता बनाए रखना हो तो कोई भी गंदगी नहीं रहनी चाहिए। भ्रष्टाचार पर मंत्री और सरकार के चरित्र की बात करने वाला विपक्ष इस बात को अच्छी तरह समझता है। लेकिन उसका मकसद किसी न किसी प्रकार सरकार को परेशानी में डालना है,  इसलिए शीतकालीन सत्र के पहले यह तय कर लिया गया कि पी चिदम्बरम का इस्तीफा मांगा जाए। दूसरी ओर केंद्र सरकार की नीयत भी कोई पाक-साफ नहीं है। वह भी किसी तरह हंगामे के बीच शीतकालीन सत्र पूरा कर लेगी और देश हित के जरूरी मुद्दे पीछे छूट जाएंगे।
जन प्रतिनिधियों को तो संसद में बैठकर नियम बनाना और कुछ महत्वपूर्ण फैसले लेने होते है, पर लगता नहीं कि वो इस पर गंभीर हैं। संसद में 31 से ज्यादा बिल लंबित है, कुछ जरूरी बिल जिस पर लोगों के साथ–साथ विशेषज्ञों की भी नजर है उनमें-

 

•    व्हिसल ब्लोअर विधेयक पेश किया जाना है, जिसमें किसी सरकारी मुलाजिम द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग करने या भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत किए जाने और शिकायतकर्ता को सुरक्षा दिए जाने का प्रावधान है।
•    राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक है, जिसमें गरीब जनता को न्यूनतम मूल्य पर भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।
•    भूमि अधिग्रहण विधेयक जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों पर मौजूदा सत्र में चर्चा होनी थी और इनके पारित होने पर फैसला होना बाकी है।
•    जन लोकपाल तो पहले ही शीतकालीन सत्र में पास कराने की सरकार की बाध्यता बनी हुई है। इस मुद्दे पर अन्ना के आंदोलन को कौन भूल सकता है।

 

अब सवाल यह है कि क्या यह मसला मीडिया के प्राइम टाइम मसाले और राजनेताओं के बैठक और विरोध तक सामित रह जाएगा या सरकार इसे मकाम पर पहुंचाएगी? एफडीआई को सरकार महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक विकास और लोगों के हित से जोड़कर दिखा रही है, मगर आम जनता को रिटेल स्टोर के एफडीआई और मेगा स्टोर पर जाने की कितनी फिक्र है, यह हम आप अच्छी तरह जानते हैं। न यह शाइनिंग इंडिया है और न भारत निर्माण। भ्रष्टाचार को आर, एफडीआई पर वार!

First Published: Wednesday, January 11, 2012, 23:11

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