Last Updated: Monday, April 1, 2013, 23:23
आलोक कुमार रावपाकिस्तान में आगामी आम चुनाव में अपनी पार्टी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग का नेतृत्व करने पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ स्वदेश लौट चुके हैं। चार साल से भी अधिक समय निर्वासन में गुजारने के बाद मुशर्रफ की स्वदेश वापसी हुई है। एक समय सत्ता और ताकत के पर्याय रहे जनरल आम चुनाव में अपनी राजनीतिक किस्मत आजमाने जा रहे हैं। हालांकि, उनके पास ज्यादा राजनीतिक जमीन नहीं है। फिर भी भ्रष्टाचार और कुशासन से मुक्त पाकिस्तान का सपना दिखाने वाले जनरल को आवाम कितनी संजीदगी से लेती है यह आम चुनाव के बाद ही साफ हो पाएगा।
पाकिस्तान की राजनीति में अपना भविष्य टटोलने पहुंचे जनरल की राह आसान नहीं है। राजनीतिक विरोधियों, आतंकवादी खतरों और अपने खिलाफ अदालतों में चल रहे मामलों के बीच उन्हें अपनी सियासत आगे बढ़ानी है। मुशर्रफ के सामने आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टियां हैं जिनके पास अपना एक व्यापक जनाधार है। इन दलों के अलावा जमात-ए-इस्लामी, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट सहित अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिनके बीच मुशर्रफ को अपने लिए जगह बनानी है। आम चुनाव 11 मई को प्रस्तावित है और इसे देखते हुए मुशर्रफ के पास ज्यादा समय नहीं है।
मुशर्रफ के खिलाफ न्यायालयों में कई मामले चल रहे हैं। कुछ मामलों में उन्हें ‘भगोड़ा’ भी घोषित किया गया है। उन पर पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और कबायली नेता अकबर बुगती की हत्या कराने का गंभीर आरोप है। इसके अलावा उन पर राजद्रोह का भी मुकदमा चल रहा है। आने वाले दिनों में ये सभी मामले उनका सिरदर्द बढ़ा सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुशर्रफ की पहचान एक शख्सियत के रूप में हैं लेकिन पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता काफी कम है। राजनीतिक रूप से उनकी पार्टी के पास मजबूत और व्यापक संगठन नहीं है। दूसरे, उनके जीवन को तालिबान और अन्य चरमपंथी ताकतों से खतरा है। वह दो बार सुनियोजित हत्या के प्रयास से बच भी चुके हैं। पाक तालिबान पहले ही उनकी हत्या की धमकी दे चुका है। सैन्य तनाशाह और राष्ट्रपति रहते हुए जिस सुरक्षा घेरे में वह सुरक्षित थे वह घेरा अब उन्हें उपलब्ध नहीं होगा।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आगामी आम चुनाव में किसी एक पार्टी के स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार बहुत कम हैं। मुशर्रफ के पाकिस्तान छोड़ने के बाद सत्ता में आई पीपीपी जनता के बीच अपना एक स्वच्छ छवि पेश करने के प्रयास में है। इसी कवायद के तहत जरदारी ने पार्टी में व्यापक फेरबदल करते हुए खुद पार्टी का सह-अध्यक्ष पद छोड़ा है। तो दूसरी ओर पाकिस्तान की राजनीति में तीसरा विकल्प देने की जद्दोजहद कर रहे पीटीआई के मुखिया इमरान खान पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर चुके हैं।
इमरान ने 23 मार्च को लाहौर में एक बड़ी रैली की जिसमें उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के चुने गए 80 हजार सदस्यों को शपथ दिलाई कि वे वंचितों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ेंगे। इमरान चरमपंथी और उदारवादी सोच वाले मतदाताओं के गठजोड़ से अपनी राजनीतिक पारी को और धार देने की कोशिश में हैं। जानकारों का कहना है कि पीपीपी के प्रभाव वाले क्षेत्रों खैबर पख्तूनख्वा, सिंध और दक्षिणी पंजाब में पीटीआई सेंध लगा सकती है। इस चुनाव में जमात-ए-इस्लामी और मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट जैसे अन्य दल भी क्षेत्रीय गठजोड़ के साथ अपने वोट प्रतिशत का विस्तार करने में लगे हैं। पाकिस्तान की राजनीति में लंबे समय से दखल रखने वाले इन दल के बीच मुशर्रफ कितनी राजनीतिक जमीन हासिल कर पाते हैं, यह देखने वाली बात है।
यह भी गौर किया जा सकता है कि मुशर्रफ 1999 से लेकर 2008 तक जब सत्ता में काबिज रहे तो क्या उन्होंने पाकिस्तान को उस तरफ ले जाने की कोशिश की जिसके बारे में वह बात कर रहे हैं। मुशर्रफ पाकिस्तान की सत्ता में उस समय काबिज हुए जब 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उन्हें सैन्य प्रमुख पद से हटाने का प्रयास किया।
यह मुशर्रफ का ही (2001) समय था जब 9/11 हमले के बाद उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर वाशिंगटन के साथ समझौता किया और इसी दौरान चरमपंथी संगठन पाकिस्तान में और मजबूत हुए। वह आतंकवादी संगठनों पर लगाम कसने में असफल हुए और उनके रहते ही तालिबान ने स्वात के एक भाग पर कब्जा कर लिया। हालांकि, मुशर्रफ के काल में देश ने तेज आर्थिक वृद्धि दर्ज की लेकिन यह दौर ज्यादा देर तक नहीं टिका सका। मुशर्रफ के जाते ही वृद्धि का यह गुब्बारा फूट गया। इसके अलावा मुशर्रफ अपने समय में महंगाई पर रोक लगाने में कुछ हद तक सफल हुए थे।
वाशिंगटन स्थित ‘इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट’ की ओर से गत जनवरी में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक आम चुनाव में नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज को 32%, पीपीपी को 14% और इमरान खान को 18% मत प्राप्त हो सकते हैं। जबकि 17% मतदाता किसे चुने इसे लेकर एकमत नहीं हैं। मुशर्रफ इऩ 17% मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर सकते हैं।
मुशर्रफ 24 मार्च को जब कराची हवाईअड्डे पर उतरे तो वहां उन्होंने अपने थोड़े समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान के मौजूदा हालात को देखकर उन्हें दुख होता है और वह देश को बचाने के लिए स्वदेश लौटे हैं। उन्होंने पाकिस्तान की दुर्दशा के लिए सरकार को कोसा और अपने संक्षिप्त संबोधन में यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार, महंगाई और कुशासन से देश को मुक्त कराएगी।
बहरहाल, चुनाव का समय है तो वादे भी होंगे। मुशर्रफ के संदर्भ में यह याद रखना होगा कि वह राजनीतिज्ञ कभी नहीं रहे। देश या बाहर उनकी छवि आज भी एक सैन्य तानाशाह के रूप में है। एक समय लोकतांत्रित सरकार का तख्तापलट करने वाले मुशर्रफ का भरोसा लोकतंत्र में लौटा है, जिसका स्वागत होना चाहिए और यह उम्मीद की जानी चाहिए कि मुशर्रफ भी लोगों को अपने भरोसे में ले पाएंगे।
First Published: Friday, March 29, 2013, 16:23