जेब में चुनाव आचार संहिता - Zee News हिंदी

जेब में चुनाव आचार संहिता

प्रवीण कुमार

देश में आजकल हर तरफ शोर मचा है कि कांग्रेसी सांसद और मंत्रीगण आदर्श चुनाव आचार संहिता को जेब में रखकर घूम रहे हैं। चर्चा कोई हवा में नहीं हो रही है। इसकी जमीनी हकीकत भी है।

 

राजनीतिक दृष्टि से सबसे संवेदनशील और अहम उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के दौरान कांग्रेसी सांसदों और मंत्रियों ने एक के बाद एक बयान देकर इस बात को साबित कर दिया कि आदर्श चुनाव आचार संहिता को जेब में रखकर घूमने में उनका कोई जोर नहीं। आगे बढ़ने से पहले एक के बाद एक उन मंत्रियों के बयानों का उल्लेख करना यहां जरूरी होगा जो कांग्रेस पार्टी के दिग्गज तो हैं ही साथ ही केंद्र की यूपीए सरकार के काबिल मंत्री भी हैं।

 

प्रकरण नंबर 1 : केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने फर्रुखाबाद में 10 जनवरी को अपनी पत्नी लुईस खुर्शीद की चुनावी सभा में लोगों को आश्वासन दिया था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई तो अल्पसंख्यकों को 9 प्रतिशत आरक्षण देगी। भाजपा ने चुनाव आयोग से शिकायत की। 9 फरवरी को मुख्य चुनाव आयुक्त ने 15 पृष्ठीय फैसले में इस बयान के लिए खुर्शीद को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री होते हुए उन्होंने निंदनीय मिशाल कायम की। चुनाव आयोग की फटकार को नकारते हुए खुर्शीद फिर एक चुनावी जनसभा में बोले, 'चुनाव आयोग मुझे मुस्लिम आरक्षण पर बोलने से रोक रहा है। चाहे मुझे फांसी दे दो, मैं मुस्लिम हक की बात करता रहूंगा।'

 

प्रकरण नंबर 2 : केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा 15 फरवरी की रात लुईस खुर्शीद के क्षेत्र फर्रुखाबाद में ही एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे। मंच पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद दोनों ही मौजूद थे। ओबीसी कोटा में मुस्लिमों की हिस्सेदारी बढ़ाने की बात करते हुए बेनी प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा, 'चुनाव आयोग चाहे तो मुझे नोटिस दे दे, लेकिन मुसलमानों का आरक्षण बढ़ाया जाएगा।' केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने यह भी कहा कि सलमान खुर्शीद मुसलमानों की हक की लड़ाई बहुत ईमानदारी से लड़ रहे हैं।

 

प्रकरण नंबर 3 : केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल 23 फरवरी को कानपुर में वोट डालने के बाद पत्रकारों से मुखातिब हुए तो एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना है, लेकिन यदि त्रिशंकु विधानसभा आती है तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। यानी कांग्रेसी मंत्री ने पार्टी और सरकार के इरादे तीन चरण की वोटिंग और मतगणना से पहले ही अपने इरादे जगजाहिर कह दिए। गौरतलब है कि श्रीप्रकाश जायसवाल सिर्फ कांग्रेस नेता ही नहीं वरन वह केंद्रीय कोयला मंत्री भी हैं।

 

कांग्रेसी सांसदों, नेताओं और पार्टी के चुनाव प्रचारकों द्वारा आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि उनका जिक्र करना यहां संभव नहीं है इसलिए हमने सिर्फ उन तीन मंत्रियों के बयानों का जिक्र किया है जिन्होंने अन्ना आंदोलन के दौरान टीम अन्ना को संसद की गरिमा का अपमान, लोकतंत्र की अस्मिता को खतरा और कानून को हाथ में लेने जैसी बड़ी-बड़ी बातें करते दिख रहे थे। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में संभवत: पहली दफा किसी केंद्रीय मंत्री वो भी कानून मंत्री के विरुद्ध चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा। लेकिन कांग्रेस पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ा। जब विवाद ने तूल पकड़ा तो खुर्शीद ने चुनाव आयोग से माफी मांग ली। कुछ ऐसा ही बेनी प्रसाद वर्मा ने किया और श्रीप्रकाश जायसवाल भी चुनाव आयोग के कोप का शिकार होने से बच गए। सवाल यह उठता है कि क्या आदर्श चुनाव आचार संहिता की अवधारणा को इसीलिए स्थापित किया गया था कि नेता, मंत्री जी भरकर उसका उल्लंघन करें और माफी मांग वैतरणी पार कर लें। तो फिर ऐसी आचार संहिता रहे या ना रहे, क्या फर्क पड़ता है।

 

थोड़ी गंभीरता से इस बात पर विचार करें, राष्ट्रपति ही मंत्रिगणों की नियुक्ति करते हैं। वे राष्ट्रपति के समक्ष ही संविधान पालन की शपथ लेते हैं। शपथ लेने वाले ने शपथ तोड़ी, चुनाव आयोग के प्रशासनिक अधिकारों व आचार संहिता को चुनौती दी। बावजूद इसके कानून मंत्री ठसक के साथ पद पर काबिज हैं। चुनाव आयोग संविधान और कानून से प्राप्त अधिकारों का ही तो प्रयोग करता है। आदर्श चुनाव आचार संहिता संविधान और कानून का ही तो सार है। लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस स्वभाववश कोई आचार शास्त्र नहीं मानती जो कि उक्त तीन मंत्रियों के बयानों से पुष्ट भी होता है। दरअसल कांग्रेस पार्टी देश में नख व दंत विहीन चुनाव आयोग चाहती है। देश की जनता अपने कानून मंत्री सलमान खुर्शीद तथा दो अन्य मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, श्रीप्रकाश जायसवाल से और इनसे ही क्यों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी जानना चाहती है कि इस तरह की ओछी हरकतों से लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखा जा सकता है?

 

ये पब्लिक जो है, सब जानती है। आप सरकार में मंत्री बनकर बैठे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप लोकतंत्र और संविधान से ऊपर की चीज हैं। देश की जनता एक सशक्त लोकपाल कानून की बात करे तो उससे लोकतंत्र की, संसद और संविधान की भावनाएं आहत होती हैं और आप जैसे मंत्रीगण, नेता और सांसद आदर्श चुनाव आचार संहिता को जेब में रखकर घूमें, जब जी में आया उसकी खिल्ली उड़ा दें और फिर माफी मांग लें तो इससे लोकतंत्र, संसद और संविधान की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती है। मंत्री जी, इस देश में दो तरह के कानून नहीं चलेंगे। इस देश का एक ही संविधान है और हम सबको उसी संविधान की भावनाओं का सम्मान करते हुए उसके अनुरूप चलना होगा। चुनाव आयोग से माफी मांगना पर्याप्त नहीं है। अगर चुनाव आयोग ने आपके बयानों को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी माना है तो आपको पद की गरिमा का सम्मान करते हुए सरकार से तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। नैतिकता का यही तकाजा है।

First Published: Friday, March 2, 2012, 20:44

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