Last Updated: Monday, February 6, 2012, 07:33
इन्द्रमोहन कुमार सहारा और टीम इंडिया। ये दोनों नाम भारत में खेल और लोगों की भावना से जन जन तक जुड़ा हुआ है। शायद इसी लिए सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय ने सार्वजनिक रूप से कहा कि भारतीय क्रिकेट टीम से इतने लंबे समय तक जुड़े रहने का कारण भावनात्मक लगाव था। खासकर भारत में क्रिकेट को बढ़ावा देना। लेकिन यहां का बोर्ड अब अमीरपति बन गया है।
कुछ मायनों में वो सही कह रहे थे क्योंकि जिस समय सहारा ग्रुप भारतीय टीम से जुड़ी उस समय न तो बीसीसीआई विश्व की सबसे अधिक ‘उगाही’ वाली संस्था थी और ना ही क्रिकेट में इतना पैसा। इसी क्रम में खेलों की दुनिया में एक जानेपहचाने नाम- सहारा इंडिया ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड, बीसीसीआई को करारा झटका देते हुए उसके साथ जारी लाखों डॉलर कीमत की स्पांसरशिप और इंडियन प्रीमियर लीग की पुणे फ्रेंचाइजी टीम से पिछले दिनों खुद को अलग करने का फैसला किया। सहारा की दलील है कि इतने लम्बे समय से क्रिकेट के साथ जुड़े रहने के बावजूद उसे एक बार फिर बीसीसीआई से उचित न्याय नहीं मिला है। सहारा का यह फैसला आईपीएल-5 की नीलामी के शुरू होने से कुछ समय पहले ही आया। इस नीलामी में 144 खिलाड़ियों की बोली लगनी थी लेकिन पुणे वारियर्स ने इस नीलामी में हिस्सा नहीं लिया।
वहीं बीसीसीआई ने कहा है कि ‘उचित न्याय’ के बारे में सहारा की शिकायत दुर्भाग्यपूर्ण है और जहां तक पुणे फ्रेंचाइजी छोड़ने की बात है तो वह शर्तो के तहत ही इसमें कोई कदम उठा सकता है। कहने को तो ये शर्त है पर जोड़-तोड़ का खेल भी खुद बीसीसीआई ही करती है, क्योंकि इस अमीर क्रिकेट बोर्ड का किसी के प्रति जवाबदेही नहीं है और सरकार के प्रयास के बावजूद खुद को नियम कानून से दूर रखती है। यानी अपना नियम अपने हाथ!
सहारा का यह कहना कि एक प्रायोजक के रूप में 11 वर्षो की यात्रा के बाद वो निश्चित रूप से कह सकते हैं कि क्रिकेट अब बहुत धनवान हो चुका है, क्रिकेट की सहायता के लिए बहुत से धनी लोग मौजूद हैं। ऐसे में सहारा ग्रुप बहुत ही शांति के साथ बीसीसीआई की अधीनता वाले क्रिकेट से अलग हो सकता हैं और वो भारी मन के साथ इससे अलग हो रहे हैं। यह कथन ही बहुत कुछ बयां कर जाता है।
सहारा ग्रुप ने मई 2010 में भारतीय टीम के साथ अपने करार का नवीकरण किया था। इसके तहत उसे प्रत्येक मैच के लिए बीसीसीआई को 7,19,000 डॉलर देने होते हैं। यह करार दिसम्बर 2013 को समाप्त हो रहा था। इसके अलावा सहारा ने पुणे वारियर्स का मालिकाना हक हासिल करने के लिए बीसीसीआई को 37 करोड़ डॉलर दिए। सहारा ने बीसीसीआई से अनुरोध किया था कि वह युवराज सिंह की कीमत को चार फरवरी की नीलामी के लिए उपलब्ध राशि में जोड़ दे, जिससे कि वह बीमारी के कारण गैरहाजिर रहने वाले युवराज के स्थान पर किसी अन्य महत्वपूर्ण खिलाड़ी को अपने साथ जोड़ सके लेकिन बीसीसीआई ने उसकी इस मांग को ठुकरा दिया। सहारा ने यहां तक कहा था कि वह बीमारी से जूझ रहे युवराज को पूरी फीस देगा क्योंकि वह उसके लिए परिवार के सदस्य की तरह हैं। वहीं बीसीसीआई ने कहा कि वह खिलाड़ी के तौर पर युवराज का सम्मान करती है लेकिन जहां तक आईपीएल नियमों की बात है तो बीसीसीआई इसे साफ करने के लिए सहारा से बात करेगी।
वहीं आईपीएल अध्यक्ष राजीव शुक्ला ने कहा कि नीलामी के दिन सहारा का बोर्ड के साथ सम्बंध तोड़ने का फैसला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मगर ऐसा नहीं है कि बीसीसीआई कुछ भी महसूस नहीं कर रहा। वही भी सकते में है और भारतीय क्रिकेट को स्पांसरशिप न देने अथवा आईपीएल मुकाबलों में हिस्सा न लेने के सहारा के एकतरफा फैसले से किसी नकारात्मक आशंकाओं को दूर करने के लिए प्रयासरत है।
अब समय करार जारी रखने या मनाने का नहीं है क्योंकि कुछ मामलों में यह करार टूटना हितकर है। एक तो बीसीसीआई जैसी संस्था को अब टीम इंडिया की जर्सी पर लोगो लगाने के लिए किसी तरह के ‘सहारा’ की जरूरत नहीं। कई नामी कंपनियां कतार में खड़ी मिलेंगी, और दूसरी तरफ सहारा ग्रुप के मुखिया ने कहा कि अब यह पैसा ग्रमीण प्रतिभा को उभारने में लगाएंगे, सामाजिक कार्यों मे भागीदारी बढ़ाएंगे। यानी क्रिकेट बोर्ड को और अमीर प्रायोजक मिलेगा, साथ ही ‘सहारा’ के साथ अन्य खेलों को भी बढ़ावा मिल सकेगा। कुल मिलाकर क्रिकेट का नुकसान न होकर औरों का भला हो सकेगा। बस इस करार के टूटने का इंतजार कीजिए।
First Published: Monday, February 6, 2012, 17:19