`दरिंदगी` से शर्मसार होता देश और समाज

`दरिंदगी` से शर्मसार होता देश और समाज

`दरिंदगी` से शर्मसार होता देश और समाजसंजीव कुमार दुबे

एक बार फिर देश शर्मसार है। समाज के लिए कुछ सोचने और चिंतन मनन का समय है कि आखिर ऐसा क्यों। पिछले साल 16 दिसंबर को `निर्भया` के साथ हुए गैंगरेप की वारदात से देश दहल गया था। अब मुंबई गैंगरेप के बाद देश में वैसी ही लहर है। रेप,बलात्कार या फिर गैंगरेप एक ऐसा सामाजिक अपराध है जो अब हमारे समाज और देश के लिए नासूर बन गया है। एक ऐसा धब्बा जो समाज के हर सिस्टम को सोचने पर विवश करता है।

महिलाओं के प्रति हो रहे इन गंभीर और अक्षम्य सामाजिक अपराधों के पीछे अपराधियों का मनोविज्ञान चाहे जो भी हो लेकिन अब इसमें संशय नहीं रह गया है कि महिलाएं आज की तारीफ में कहीं भी महफूज नहीं रह गई है। चाहे वह गांव हो, छोटा शहर हो, कस्बा हो या फिर महानगर । दरिंदे अपनी वहशीपन कही भी दिखा सकते है। दरिंदगी कहीं भी हो सकती है। इसे सिर्फ एक क्षेत्र, शहर,महानगर तक सीमित कर देखा जाना गलत होगा।

दरअसल इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि महिलाएं भी इसी समाज का हिस्सा है। समाज में अपराध करनेवाला व्यक्ति अपने हिसाब से जिंदगी जीता है। चाहे वह डकैती का अपराध हो या फिर सेक्स से जुड़े क्राइम का, अपराधी या फिर ऐसी मनोवृति रखनेवाला व्यक्ति मर्यादा की सीमाओं को लांघना अपना अधिकारी समझता है। वह समाज में उन कुकृत्यों की पैदाइश का आधार बनता है जिससे ना सिर्फ एक जिंदगी बल्कि एक पूरा परिवार तबाह हो जाता है। समाज में असुरक्षा पनपती है जिससे समाजिक सद्भाव और विषैला होता चला जाता है।

इस तरह के अपराध के पीछे एक सबसे बड़ी वजह शिक्षा मानी जा सकती है। स्कूल से पहले की सबसे पहली पाठशाला होता है घर जहां एक मां-बाप के संरक्षण में बच्चे का पालन-पोषण होता है। घर की इसी पाठशाला में बच्चा अपने माता-पिता से तहजीब,तमीज सीखता है। उन संस्कारों के बीच पलता-बढ़ता है जो समाज में उसके बेहतर व्यक्ति बनने का आधार बनते हैं। यहीं संस्कार आगे चलकर उसे एक सुस्कृत और सभ्य व्यक्ति बनाते हैं।

दिल्ली गैंगरेप या फिर मुंबई गैंगरेप में आप आरोपियों की पृष्ठभूमि पर नजर डाले। इसमें कोई भी व्यक्ति पढ़ा लिखा नहीं है। अगर उसकी पढ़ाई हुई भी है तो वह मामूली है और इस हालात में उसे शिक्षित कतई नहीं कहा जा सकता है। परिवार से मिले संस्कार और शिक्षा के आधार में मजबूती हो तो व्यक्ति ऐसे अपराध को करने की बात तो दूर वह इस प्रकार के ख्यालात शायद मन में ला भी नहीं सकता। आप एक बात और गौर करे कि इस प्रकार के आरोपियों के पास कोई वैसा काम नहीं था। उनकी जिंदगी दिशाहिन थी और यह स्थिति खाली दिमाग शैतान का घर के बराबर होता है।

दूसरे सिरे पर गौर करे तो रेप, गैंगरेप जैसी घटनाएं जब होती है तब सुरक्षा की बात सामने आती है। सुरक्षा के मसले पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वीआईआईपी, वीआईपी सुरक्षा बंदोबस्त के बाद पुलिस इतनी नहीं बच जाती जिससे आम आदमी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इस प्रकार की घिनौनी वारदात तो कहीं भी हो सकती है। लेकिन पुलिस हर कदम पर सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती, यह भी एक कड़वा सच है। यह कहकर पुलिस के आला अफसर अक्सर पल्ला झाड़ते हैं कि हमारे पास पुलिस और जवान कम है, हम क्या करें।

पुलिस का अपराधियों में खौफ नहीं होना एक बड़ी वजह है। यहीं वजह है कि अपराध रुकने की बजाय तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं। इसके लिए पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार तंत्र भी जिम्मेदार है। अगर इस मसले पर हमने कोई कड़ा कानून बनाकर अमल किया होता तो हालत बदले हुए होते और आज के बजाय ज्यादा बेहतर होते। अपराध रोकने के लिए यह जरूरी होता है अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ हो। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है और अपराध सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते जा रहे हैं।

एक आरटीआई द्वारा मांगी गई जानकारी के मुताबिक मुंबई में रेप और गैंगरेप के आंकड़ों में तेजी से इजाफा होता चला जा रहा है। मुबई में 2002 में 128 बलात्कार की वारदात हुई जबकि 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर 231 हो गया। यानी यानी 10 साल के आंकड़ो में रेप की घटनाओं में 80 फीसदी का इजाफा हुआ। 2013 में दरिंदगी का यह आंकड़ा और भयावह होता जा रहा है। सिर्फ मार्च 2013 तक मुंबई में दुष्कर्म की 89 घटनाएं हुए जिसमें 46 घटनाएं वैसी रही जिसमें नाबालिगों के साथ बलात्कार किया गया।

महिलाओं के खिलाफ जो दुष्कर्म की वारदातें हो रही है वह हमें सचेत और शर्मसार करने के लिए काफी है । नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरों के आंकड़ों पर गौर करे तो 2009-11 में 68 हजार रेप के मामले देशभर में दर्ज किए गए। लेकिन सिर्फ 16 हजार मामलों में ही आरोपियों को सजा हुई। एनसीआरबी के मुताबिक देश में 2011 में 24,206 रेप और गैंगरेप के मामले दर्ज हुए लेकिन अदालत से सजा सिर्फ 5,724 लोगों को ही मिली।

यह शर्मिंदा करनेवाली बात है कि जिस देश में नारी को सम्मान देने की बात उसकी संस्कृति का अटूट हिस्सा रही हो वहां पिछले साल यानी 2012 में 244,270 मामले ऐसे रहे है जो महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराध से जुड़े रहे जिसमें रेप, दहेज, हत्या संबधी कई मामले शामिल है।

अब वक्त है जल्द से जल्द ठोस पहल करने का। सिर्फ सोचने से काम नहीं चलेगा। हमें इसके लिए इच्छाशक्ति की शुरुआत करनी होगी। हालात को मद्देनजर रखते हुए सख्त जरूरत इस बात की है कि इसे लेकर संसद में ऐसे कानून पर मुहर लगाने की है जो ऐसे दरिंदों या फिर अपराधियों में खौफ पैदा करे। पुलिस में केस दर्ज होने से लेकर मुकदमा का सिलसिला को लचीला किए जाने की जरूरत है जिससे अपराधी छूटे नहीं बल्कि पीड़िता को जल्द से जल्द इंसाफ मिल सके।

First Published: Thursday, August 29, 2013, 20:33

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