हिमालय की सुंदर वादियों में बसे छोटे से देश के एक गांव में एक परिवार बरसों से सामाजिक बहिष्कार झेल रहा था। पूरा गांव तो क्या पूरे इलाके में कोई उनके घर का अन्न जल नहीं खाता था। कोई उनसे किसी तरह का नाता नहीं रखता था। इस परिवार पर जादू टोना करने का कलंक चस्पा था। पूरे इलाके में अफवाह थी कि इस परिवार के घर का अन्न जल जो भी ग्रहण कर लेगा वो मर जाएगा। यह परिवार एक शापित जिंदगी जी रहा था। एक दिन इस देश का राजा अचानक उनके द्वार पर आ पहुंचा। राजा ने घर के मालिक से कहा कि अपनी पत्नी से मेरे लिए खाना बनवाओ, आज मैं तुम्हारे घर खाना खाऊंगा और यहीं रात बिताऊंगा। पूरे इलाके में राजा के आने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और लोग इकठ्ठे हो गए। लोगों ने राजा को समझाया कि इस घर का पानी भी नहीं छूना लेकिन राजा नहीं माना। राजा ने उस घर में खाना खाया और वहीं रात बिताई। वो राजा आज भी जिंदा है, भला चंगा है और आज भी अपने देश का राजा है। शापित परिवार के माथे से जादू टोने का कलंक धुल गया अब पूरा गांव उनके साथ अच्छे संबंध रखता है।
ये किस्से कहानियों की बात नहीं, न ही नानी-दादी की कहानियां हैं। ये सच्ची घटना है हमारे पड़ोसी देश भूटान के पूर्वी इलाके के एक गांव की। भूटान के पांचवें राजा जिग्मे खेसर नामग्याल बांग चुक जिन्होंने विदेशों में पढ़ाई की। वह नहीं चाहते कि उनके देश की जनता अंधविश्वास और रूढ़ियों में जकड़ी रहे इसलिए राजा ने लोगों के दिल से अंधविश्वास मिटाने का सबसे बेहतर तरीका यही समझा कि वो स्वयं शापित परिवार के घर जाएं।
भूटान का ये युवा राजा अपने देश, उसकी संस्कृति, इतिहास विरासत और लोगों से बेहद प्यार करता है। भूटान की जनता भी अपने राजा का दिल से सम्मान और प्यार करती है। भूटान की जनता ही क्यों जो भी राजा से एक बार मिल लेगा उनके व्यक्तित्व, व्यवहार, शांत संतुलित स्वभाव और दूरदर्शिता का कायल हो जाएगा।
पिछले साल अक्तूबर के महीने में राजा से मिलने का अवसर मुझे मिला। मैं इंडियन वूमन प्रेस कोर के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भूटान गई थी। दल का नेतृत्व इंडियन एक्सप्रेस की पॉलिटकल एडिटर नीरजा चौधरी कर रही थीं और अन्य सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार विचित्रा शर्मा, हिंदी आऊटलुक की फीचर एडिटर गीता श्री, नवभारत टाइम्स की विशेष संवाददाता मंजरी चतुर्वेदी, नई दुनिया की रोमिंग एडिटर भाषा सिंह, दो अति वरिष्ठ फ्रीलांस पत्रकार भाग्य लक्ष्मी और उषा महाजन और सहारा समय टीवी की युवा पत्रकार शिल्पा भी थीं। ये दौरा भूटान में भारत के राजदूत पवन वर्मा और भूटान सरकार के सौजन्य से संभव हो पाया था। पूरे दल को राजा से मिलने की बड़ी उत्सुकता थी। पवन वर्मा ने भी पूरा प्रयास किया कि हमारी राजा से मुलाकात जरूर हो जाए। जब उन्होंने हमें इंडिया हाऊस में चाय पर बुलाया तो उन्होंने राजा के सचिवालय में फोन कर मुलाकात का समय मांगा।
आठ अक्तूबर को जब हम थिंपू में सूचना एवं संचार मंत्रालय के एक अधिकारी के निमंत्रण पर लंच कर रहे थे तो अचानक हमारे मेजबान ने कहा आप सब के लिए एक खुशखबरी है। शाही सचिवालय से आए एक दूत ने कहा कि दस मिनट के भीतर आपको भूटान नरेश के कार्यालय पहुंचना है राजा से मुलाकात होगी- यह सोचकर सभी खुश हुए, लेकिन थोड़े मायूस भी क्योंकि युवा, आकर्षक और हैंडसम राजा से मिलने के लिए सभी ने अपनी बेहतरीन फॉरमल ड्रेस चुन रखी थी।
वाहन हमें लेकर राजा के सचिवालय पहुंचा। भव्य इमारत के सुंदर गलियारे पार करते हुए और लकड़ी की सीढ़ियां लांघते हुए हम राजा के सचिवालय के वेटिंग रूम में पहुंचे। बड़ा सा कमरा जिसकी पूरी साज सज्जा भूटानी

फर्नीचर, सिल्क और बौद्ध पेंटिंग्स से किया हुआ था। हम यहां मुश्किल से पांच मिनट ही बैठे थे कि बुलावा आ गया।
हम राजा से मिलने को लेकर बेहद उत्साहित थे। जो मुलाकात दस मिनट की होने वाली थी वह कब घंटों में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। राजा का स्वभाव इतना निराला और संजीदा था कि लगा ही नहीं कि हम एक राजा से मिल रहे हैं।
राजा- 'भूटान आने वाले हर सैलानी से हमारा अनुरोध है कि वो हमारे समाज, संस्कृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहे। हमारी सरकार का प्रण है कि वैश्वीकरण और आधुनिकता के दौर में प्रत्येक भूटानी नागरिक अपने आत्मसम्मान और विरासत की रक्षा कर सके। हम दुनिया को अपनी प्राचीन समृद्ध संस्कृति से परिचित कराना चाहते हैं लेकिन हमारा जोर उंचे आदर्श और छोटे पर्यटन पर ही रहेगा।'
पेश है भूटान नरेश से हुई बातचीत के मुख्य अंश- सवाल- भूटान में लोकतंत्र अभी बहुत शैशव काल में है। मार्च 2008 में ही राजशाही से लोकतांत्रिक प्रणाली में परिवर्तन हुआ, क्या नेपाल की राजशाही के हश्र को देखते हुए तो ऐसा नहीं किया गया और लोकतंत्र का भविष्य क्या है?
राजा- नहीं, भूटान ने सदियों से पूरे एशिया महाद्वीप में अपनी अलग पहचान रखी है। मेरे पिता और भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिग्मे बांगचुक एक निहायत दूरदर्शी व्यक्ति हैं। उन्होंने जनता को सत्ता सौंपने का फैसला कर लिया था। लेकिन हमने लोकतंत्र का अपना मॉडल विकसित किया। हमारे यहां सरकार को पूरे अधिकार हैं और मीडिया पूरी तरह से स्वतंत्र है। राजशाही से लोकशाही में बहुत शांति प्रिय तरीके से परिवर्तन हुआ। मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले कुछ बर्षों में लोकतंत्र की जड़े पूरी तरह मजबूत हो जाएंगी और बीस साल के बाद मैं रिटायरमेंट ले लूंगा।
सवाल- इसका मतलब तो आपका वारिस बीस साल से पहले तैयार होना चाहिए। आप सबसे योग्य कुंवारे हैं, आप शादी कब करेंगें?
राजा- मैं अब कुंवारा नहीं हूं, जल्द हीं मेरी शादी हो जाएगी।
सवाल- क्या आप शाही खानदान में ही शादी करेंगें?
राजा- भूटान में शाही परिवार में ही विवाह करने की बाध्यता नहीं है। हम जिससे प्रेम करते हैं उसी से विवाह कर सकते हैं। मेरी तीनों बहनों ने प्रेम विवाह किया है और तीनों के पति राजसी परिवार से नहीं हैं।
सवाल- आप किस तरह का शौक रखते हैं और अपने खाली समय में क्या करते हैं?
राजा- मैं बेहद रोमांटिक हूं, मैं प्रकृति से प्रेम करता हूं, किताबें पढ़ता हूं, पेंटिंग का शौक है, जिम जाता हूं, मीलों दूर तक साइक्लिंग करता हूं।
सवाल- आपने भारत में लंबा समय बिताया, आपको भारतीय खाने में क्या पसंद है?
राजा– मुझे दक्षिण-भारतीय खाने पसंद हैं, नारियल तेल में बने व्यंजन, कबाब, इडली, डोसा, फुचका (पानी पूरी) और मीठे में गुलाब जामुन पसंद है। मुझे खुद से खाना बनाना पसंद है। छोटे गांवों में लोगों से मिलने जाता हूं तो मैं कभी कभार उनके लिए खाना भी बनाता हूं।

एक बार मैने सुदूर गांव में एक परिवार के लिए केवडासी (मख्खन में बनाया गया आलू) और चावल बनाकर खाया और रात भी वहीं बिताया।
सवाल- आप बॉलीवुड फिल्में तो जरूर देखते होंगें, हाल में कौन सी फिल्म देखी?
राजा- हां, बॉलीवुड फिल्में पसंद हैं, अभी मैने 3-इडियटस् देखी है।
सवाल- आपके पसंदीदा हीरो कौन हैं?
राजा- अमिताभ बच्चन और नई पीढ़ी में आमिर खान और शाहरूख खान।
सवाल- आपकी पसंदीदा हीरोइन कौन हैं?
राजा- काजोल।
सवाल- अगर आप राजा न होते क्या होना पसंद करते?
राजा- मैं एक टीचर होता। टीचर की समाज में बहुत अच्छी भूमिका है।
सवाल- आप युवावस्था में इतने शांत और परिपक्व कैसे हैं?
राजा - प्रकृति और पालन पोषण। मैं आज जो भी हूं अपने माता पिता के कारण हूं। मेरे माता पिता ने मुझे बहुत अच्छे संस्कार दिए। उन्होंने सिखाया कि बहुत धनवान बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण है एक अच्छा इंसान बनना, लोगों के दुख-सुख बांटना। मेरे व्यक्तित्व को मेरे माता पिता ने ही गढ़ा है।
भूटान के राजा से बातचीत करते करते कब एक घंटा बीत गया पता ही नहीं चला। राजा भी किसी हड़बड़ी में नहीं थे। अगले दिन जब भूटान की पूर्व राजधानी पुनाखा जा रहे थे तो राजा अपने दो मित्रों के साथ साइक्लिंग करते हुए नजर आए। राह में जहां कहीं भी उन्हें स्कूली बच्चे मिल रहे थे, रूक कर उनसे बात जरूर की।
मुलाकात के बाद जब हम लौट रहे थे, तो उन खूबसूरत वादियों के साथ मेरे जेहन में भी एक सवाल गूंज रहा था, क्या सच में राजा ऐसे होते हैं, जो सोच, स्वभाव और अपनी प्रकृति की वजह से राजा की एक नई परिभाषा गढ़ने को विवश कर देते हैं?