Last Updated: Sunday, September 29, 2013, 16:03
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्ससीता राम केसरी से लेकर नरसिंह राव के साथ काम करने का अनुभव और राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे एनसीपी नेता और यूपीए सरकार के मंत्री
तारिक अनवर ने
सियासत की बात में
ज़ी रीजनल चैनल्स के संपादक
वासिंद्र मिश्र के साथ बातचीत में राजनीतिक मसलों पर अपने स्पष्ट विचार रखे। पेश है उसके मुख्य अंश:-
वासिंद्र मिश्र: तारिक भाई सबसे पहले तो हम यही चर्चा करेंगे कि जब आप लोग राजनीति में आए थे, 85-86 के दौर से तो कम से कम हम आप को जानते है। उस जमाने में राजीव गांधी ने सेवा दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था तब सेवा दल भी खूब चर्चा में था। कह सकते है कि आप की अगुवाई में लगता था कि सेवा दल का जो महत्व था वो जो मेन कांग्रेस पार्टी थी और एक आकर्षण था कि सेवादल से जुड़ना सीधे पार्टी हाईकमान से जुड़ना, आज क्या है न तो सेवा दल दिख रहा है न कांग्रेस पार्टी दिख रही है। ठीक है सरकार चल रही है 8-9 साल से सरकार है। लेकिन वो प्रभाव वो आकर्षण वो एक जो आदर्शवादिता को लेकर विश्वास है, कहीं ना कहीं कम होता दिख रहा है। क्या कारण दिख रहा है आपको?
तारिक अनवर: देखिए वैसे तो मेरा राजनीतिक करियर शुरू हुआ 1970 में और थाना कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष के रूप में शुरुआत की थी पटना से और फिर इंडियन यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट बना फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बना और जैसा आप ने कहा कि मुझे सेवा दल की जिम्मेदारी दी गई राजीव गाँधी जी के द्वारा, मेरा ख्याल है कि उन्होंने जब बुलाकर कहा कि सेवादल की जिम्मेदारी दी जा रही है तो थोड़ी मुझे भी घबराहट हुई थी क्योंकि पहले सेवादल से मेरा कोई वास्ता नहीं था कभी काम नहीं किया था लेकिन उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि सेवा दल के द्वारा कांग्रेस के द्वारा जो युवा पीढ़ी आ रही है उसको एक तरह का प्रशिक्षण दिया जाए और साथ ही साथ कांग्रेस विचारधारा से उनको पूरी तरह से लैस किया जाए तो मैने वो काम शुरू किया, फैकल्टी बनाई और तमाम ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू हुआ और फिर ये तय हुआ कि जितने भी लोग 40 साल से नीचे है चाहे वो सांसद हो, चाहे विधायक हो किसी भी पद पर हो कांग्रेस के अंदर उन सबको सेवा दल की ट्रेनिंग से गुजरना पड़ेगा। और उसके बाद सेवा दल की एक शक्ल और सूरत बनी। लोग आने लगे और फिर हमने काफी हद तक प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की सेना तैयार की। उसमें काफी हद तक मुझे सफलता भी मिली। तो आप ने कहा है कि आज में उस समय में अंतर यही है कि अभी जो कैडर बिल्डिंग का काम है किसी भी राजनीतिक दल में मेरा ख्याल है नहीं चल रहा है कांग्रेस में भी नहीं चल रहा है दूसरी पार्टियों में भी नहीं चल रहा है आज जो लक्ष्य है कि किसी तरह सत्ता तक पहुंचा जाए। विधायक बन जाएं, सांसद बन जाएं। कोई भी शॉर्ट कट रास्ता अपनाया जाए, पार्टी तो लोग इस तरह से बदल रहे है जैसे कपड़े बदल रहे है।
वासिंद्र मिश्र: ये जो बाद का दौर शुरू हुआ है जिसमें मनमोहन अवधारणा माफ करिएगा ये यूज कर रहे है देखने को मिल रहा है रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, रिटायर्ट इंजीनियर जब तक नौकरी में रहते है तब तक गलत कामों में लिप्त रहते है नौकरी से हटते है नैतिकता की बात करने लगते है। जितने महत्वपूर्ण पद है जो अनुभव के आधार पर मिलना चाहिए था इस तरह के नौकरशाहों की तैनाती हो जा रही है वो एक कारण आप को नहीं दिख रहा है कि वैचारिक प्रतिबद्धता की मिसिंग लिंक दिख रहा है इसका एक सबसे बड़ा कारण ये भी है जब ब्यूरोक्रेटस और पॉलीटिशएन आ रहे है उनका वो कमिटमेंट आम जनता से नहीं है जो एक जमीन से उठकर आता था कार्यकर्ता।
तारिक अनवर: जैसा मैंने कहा, सभी दलों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। आप का कहना ठीक है जो रिटायर्ड ब्यूरोक्रेटस है जब इनका काम खत्म हो जाता है तब वो राजनीति में आते है और फिर जो उनका बैक ग्राउंड होता है उनका लाभ उठाने की कोशिश करते है ये आप ने बहुत हद तक सही कहा है पहले जो है हमी लोग जब किसी को किसी से बढ़ाना होता था पदाधिकारी या कोई जिम्मेदारी की पद देना होता था या विधायक बनाने की बात होती थी तो हम लोग उनका बैक ग्राउंड देखते थे पार्टी के अंदर क्या योगदान है।
वासिंद्र मिश्र: आपने राजीव जी के साथ काम किया आपने सीता राम केसरी के साथ काम किया और नरसिंह राव जी के साथ भी काम किया उस दौर के नेता हुआ करते थे अब उनके मुकाबले भारतीय जनता पार्टी में अटल जी जैसा नेतृत्व था जो कभी भी सकारात्मक मामले को लेकर परहेज नहीं किया करते थे सत्ता रूढ़ दल की तारीफ नहीं करेंगे अगर देश हित में फैसला होता था तो सार्वजनिक रूप से एतमाद करते थे उसकी तारीफ करते थे आज वो चीजें कहां आपको मिसिंग दिख रही है आज के नेतृत्व में।
तारिक अनवर: पहले और आज में नेताओं की सोच में बहुत फर्क हुआ है। वैचारिक मतभेद होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन वो अब व्यक्तिगत मतभेद में तब्दील हो गया है अब हम लोग कैरेक्टर पर आरोप प्रत्यारोप लगाते है और ये पहले नहीं था पहले जो बहस हुआ करती थी वैचारिक बहस हुआ करती थी पार्लियामेंट के अंदर हो पार्लियामेंट के बाहर हो। इश्यू उठाए जाते थे और उसकी एक गरिमा हुआ करती थी। आज वो नहीं है उसकी कमी है।
वासिंद्र मिश्र: तारिक भाई हम लोग बात कर रहे थे कि जो देश के सामने जनता के सामने पॉलिटिकल क्रेडिबिलिटी का सवाल सबसे बड़ा सवाल बनकर सामने आ रहा है और एक जो क्राइसिस दिख रही है कि जो पॉलिटिक सिस्टम से। पॉलिटिशियन के प्रति आम जनता में अविश्वास पैदा हो रहा है अगर वो चाहे यहां तक पानी में खड़े होकर बोले कोई सच भी बोले तो जनता को संदेह हो रहा है कि इसके पीछे भी कोई राजनीति होगी।
तारिक अनवर: देखिए जहां तक क्रेडिबिलिटी का सवाल है। किसकी क्रेडिबिलिटी है अगर राजनीतिक लोगों की नहीं है तो ब्यूरोक्रेस की है यहां तक की न्यायालय की है? या किसी भी क्षेत्र में आप ले लीजिए बिजनेसमैन हो कुछ भी हो गिरावट तो ओवरऑल सभी जगह आया है। हमसब एक ही समाज के हिस्से है अलग-अलग जिम्मेदारी हमलोगों की है तो उसी तरह से हर जगह गिरावट है मीडिया में भी बहुत तरह की बात आती है कि पेड न्यूज छपते है। उस प्रकार मैनेज किया जाता है प्रेस को मीडिया को तो मेरे कहने का अर्थ ये है कि जहां सब जगह गिरावट होगी तो आप ये नहीं सोच सकते कि राजनीतिक लोगों में गिरावट नहीं आएगी उनमें भी आई है और ये बात सही है कि चूंकि हम और हमेशा हमारे पर या पॉलिटिशियन पर जनता की नज़र रहती है। ध्यान रहता है, मीडिया का ध्यान रहता है, इसलिए हम फोकस में रहते है हमेशा इसलिए कोई छोटा से छोटा गलत काम होता है तो पहले ही वो सामने आ जाता है लेकिन आपका कहना ठीक है कि इसको सही करने की आवश्यकता है चूकि हम सार्वजनिक जीवन में है लोग हम से अपेक्षा करते है कि हम साफ सुथरे रहे हमारे पर किसी प्रकार का कोई दाग ना हो।
वासिंद्र मिश्र: इस समय देश में दो तरह की मॉडल ऑफ पॉलिटिक्स दिखाई दे रही है। एक जिसकी रहनुमाई नरेंद्र मोदी कर रहे है सोशल मीडिया के जरिए फेसबुक, ट्विटर इन सब हथकंड़ो के जरिए, किस तरह से अपनी इमेज बिल्डिंग की जा रही है पीआर एंजेसी के जरिए। दूसरी पॉलिटिक्स हो रही है जिसमें शरद पवार जी है, आडवाणी जी है, मुलायम सिंह यादव है। इस तरह के तमाम सीनियर पॉलिटिशियन है। देश में भले ही अलग अलग दलों की राजनीति कर रहे है आप को लगता है कि जो मोदी की राजनीति है। जो कल्ट है मोदी का उसका मुकाबला अलग-अलग रह कर आज आनेवाल चुनाव में आप लोग कर पाएंगे।
तारिक अनवर: देखिए हमको ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को कुछ ज्यादा ही इनलार्ज करके जनता के सामने पेश किया जा रहा है। आज ही निकला है कि एक तरफ तो गुजरात के विकास की बात करते है गुजरात के मॉडल की बात करते है लेकिन जो आज राजन कमेटी की रिपोर्ट आई है उसके अनुसार गुजरात भी पिछड़े राज्यों में है और उनकी आर्थिक व्यवस्था और विकास की दर है कह सकते है कि सही ढंग से नहीं है ये जो बातें जनता के बीच में कही जा रही है और एक प्रोपेगेंडा हो रहा है ये मैं समझता हूं कि भ्रम आगे चलकर टूटेगा।
वासिंद्र मिश्र: चाहे मनमोहन सिंह की सरकार हो, नरेंद्र मोदी की सरकार हो इन सरकारों पर आरोप लगते रहते है कि इनकी जो नीतियां है वो समाज के अमीर तबके के लिए बनाई जाती है उनको ध्यान में रखकर बनाते है गांव गरीब किसान जो पिछड़े है तबका उसके बारे में फोकस नहीं है चाहे वो मनमोहन सिंह का मॉडल हो या नरेंद्र मोदी का मॉडल हो वही दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के ही मुख्यमंत्री है रमन सिंह बीजेपी के ही मुख्यमंत्री है इन लोगों का कामकाज का तरीका है। नरेंद्र मोदी और मनमोहन सिंह में फर्क है। शरद पवार जी अपने बेबाक बयान के लिए अक्सर विवादों में रहे है पिछले 9 वर्षों से हम देख रहे है आज की आर्थिक स्थिति को देखते हुए। आपको लगता है कि जो पॉलिटिकल मेस दिखाई दे रहा है, इकोनोमिक मेस बना हुआ है देश के सामने इसे उबारने में शरद पवार जी का नेतृत्व ज्यादा कारगार साबित होगा आपकी नजर में।
तारिक अनवर: देखिए शरद पवार जी, उनकी कुशलता में, उनकी योग्यता में, उसका कोई मैं समझता हूं कि बहुत कम राजनीतिक, ऐसे राजनितिक नेता होंगे इस देश में लेकिन कड़वी सच्चाई है वो ये है कि एनसीपी का नंबर गेम जो हम कहते है लोकतंत्र में अभिव्यक्ति से ज्यादा नंबर का खेल होता है आपके पास बहुत काबलियत हो। लेकिन आपके पास नंबर नहीं है तो आप कुछ नहीं कर सकते है। तो ये बात पवार साहब ने स्वीकार किया है हमारी पार्टी की न क्षमता है। ना हमारी पार्टी की ताकत है कि हम पीएम पद के दावेदार हो सकते है लेकिन इतना जरूर कह सकते है कि उनका एक लंबा अनुभव है और एक बैलेंस वे में वो राजनीति करते है जैसे आपने कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर और बड़े उद्योगपति या दूसरी तरफ कमजोर वर्ग, किसान, मजदूर की बात तो ये दोनों की बात बैलेंस करने की क्षमता उनके अंदर है। मैं समझता हूं कि आज देश को दोनों की आवश्यकता है।
वासिंद्र मिश्र:आप मानते है कि पॉलिटिकल मेस, इकोनॉमिक मेस देश के सामने है इसको देखते हुए और वैचारिक प्रतिबद्धता के भी आप कायल रहे है शायद आपने राजनीति भी शुरू की राजनीति में आये तो एक पॉलिटिकल कमिटमेंट था एक आडियोलॉजिकल कमिटमेंट था। आपको नहीं लगता है कि जो आपने कांग्रेस से अलग हटकर राजनीति की है। अब दौर आ गया है कि एक साथ मिलकर नरेंद्र मोदी और इस तरह के लोग जो कि देश या समाज के 80 फीसदी गरीब लोगों की बात नही सोचते है उनके मुकाबले को करने के लिए उनको मजबूत टक्कर देने के लिए एक मजबूत पॉलिटिकल फ्रंट बनाया जाए। इसके लिए कांग्रेस के साथ मिलना जरूरी है आपको नहीं लगता है।
तारिक अनवर: कांग्रेस के साथ मिलकर हम अभी भी सरकार चला रहे है, मर्जर संभव इसलिए नहीं है कि भारत की राजनीति का स्वरूप जो बना है वो स्वरूप ऐसा बना है कि किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं हो सकता है कांग्रेस हो बीजेपी हो कोई भी पार्टी हो। आज के दौर में हर राज्य में रीजनल पार्टियां आगे बढ़ी है हर जगह दूसरी विचारधारा के लोग आगे बढ़े है और उसमें जैसा मैंने कहा कि एक पार्टी चाहे कि सरकार बना लेंगे। हम मिल भी जाएं तो नहीं हो सकता है तो ये जो दौर चल रहा है कि गठबंधन का और उस गठबंधन में वैचारिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए उसके अंदर एकजुटता होनी चाहिए ऐसा न हो कि वैचारिकता एक न हो सिर्फ सरकार बनाने के लिए मिल जाए तो फिर सरकार चलाना मुश्किल होगा जो धर्म निरपेक्षता पर विश्वास करते है लोकतंत्र पर विश्वास करते है समाजिक सद्भभाव में विश्वास करते है, तमाम पार्टियां एकजुट होकर सरकार बनाती है गठबंधन की सरकार भी बनती है मिनिमम प्रोग्राम भी बनाते है तो उसके आधार पर सरकार चले तो मैं समझता हूं कि उसमे कोई अंतर नहीं पड़ेगा।
वासिंद्र मिश्र: भानूमति का कुनबा दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश में माया और मुलायम का साथ आना उनके लिए बेहद मुश्किल है। आपके बिहार में नीतीश जी और लालू जी में आपसी जो टकराहट है वो कोई भी एलांयस प्री एलेक्शन बनने की गुंजाइश नहीं दे रहा है। वेस्ट बंगाल में वाम मोर्चा और ममता बनर्जी का आपसी कलह है पॉलिटिकल और पर्सनल वो किसी भी मोर्चे को बनाने में सबसे बड़ा व्यवधान खड़ा कर रहा है। इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए आपको लगता है कि डिवाइड हाउस के रूप में आप लोग नरेंद्र मोदी का जो अश्वमेध घोड़ा निकला है। आप लोग उसको रोक पाएंगे?
तारिक अनवर: देखिए बिलकुल रूक जाएगा, ऐसा कुछ नहीं है और आप देखिए जहां-जहां लोकतंत्र है वहां लगभग परिस्थिति एक जैसी है किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं है और बहुत कम ऐसी जगह है कि जहां दो पार्टी सिस्टम हो, हर जगह मल्टी पार्टी सिस्टम है और सभी पार्टियां मिलकर देश चला रही है। हुकूमत कर रही है। उसकी कमियां भी है हम कह सकते है। इसके दो पह़लू है। एक पहलू ये है गठबंधन में रहने से एक अंकुश भी रहता है, उसमें एक पार्टी की जो तानाशाही है वो नहीं रहती है, उसमें कहीं न कहीं वो अंकुश लग जाता है। वो रुकावट हो जाती है, लेकिन दूसरी तरफ ये भी आपका कहना सही है कि अलग-अलग पार्टियां होती हैं। जो प्रोग्राम्स होते हैं उनको इम्पलीमेंट करने में प्रॉब्लम होती है, लेकिन जैसा मैंने कहा कि हम मिनिमम प्रोग्राम बनाकर अगर प्री पोल एलाय़ंस करते हैं। अगर प्री पोल भी पूरी तरह से नहीं हो पाता है पोस्ट एलेक्शन भी अगर एलायंस होता है, सरकार बनती है, तो कम से कम मिनीमम प्रोग्राम बनना चाहिए जो यूपीए वन में बना था, क्योंकि एक पार्टी का अगर वर्चस्व हो जाएगा तो फिर इस देश में मैं समझता हूं कि जो राजनीति है वो किसी एक पार्टी या एक व्यक्ति की बपौती बन जाएगी।
वासिंद्र मिश्र: ये एक परिवार विशेष की बपौती बन जाएगी?
तारिक अनवर: बपौती बन जाएगी, इसलिए बेहतर ये है कि इस तरह का एरेंजमेंट होना चाहिए कि इसमें बैलेंस होना चाहिए।
धन्यवाद
First Published: Saturday, September 28, 2013, 16:16