Last Updated: Saturday, January 28, 2012, 11:34
प्रवीण कुमार देश की राजनीति से अवाम सवाल कर रही है कि जब आप सबने खुली विश्व अर्थव्यवस्था को मंजूरी दे दी है, वैश्वीकरण की नीति पर चलकर ही भारत का विकास एवं समस्याओं का समाधान होना है तो भारत के लोगों की जिंदगी चाहे वे ग्रामीण भारत में रहें या शहरी भारत में दिनोदिन कठिन, खर्चीली, तनावपूर्ण और अराजक व लाचार क्यों होती जा रही हैं? जिंदगी के छोटे-छोटे सवाल जैसे नलों में रोज साफ पीने का पानी की उपलब्धता, बिजली का सर्वसुलभ होना, रेल और बस में सुरक्षित सफर निरंतर दुरुह क्यों हो रहे हैं? हम यहां सिर्फ बिजली की बात करेंगे जो लगातार जीवन जीने के स्तर से लेकर सामाजिक मर्यादाओं को छिन्न-भिन्न करते हुए भारत की अर्थव्यवस्था तक के लिए महासंकट का रूप लेता जा रहा है।
देश में एक लाख से अधिक गांवों में रहने वाले करीब साढ़े तीन करोड़ लोग आज भी लालटेन युग में जी रहे हैं। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहां हर गांव बिजली से रोशन है, लेकिन इसी तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में स्थित कड़ापडी एक ऐसा गांव है जहां के लोगों ने कभी बिजली के दर्शन नहीं किये। कश्मीर के सोपिया जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर 10 हजार की आबादी वाला एक गांव बसा है जिसका नाम है सीडो। गांव के एक बुजुर्ग के अनुसार, 1987 में सिंगल लाइन तार से बिजली खंभों की जगह पेड़ों के सहारे गांव में बिजली लाई गई। 2001 में एक दिन अचानक तार टूटकर सड़क पर जा गिरा और दो बच्चे इसकी चपेट में आ गए। गांव के लोगों ने प्रदर्शन कर सरकार से सुनियोजित तरीके से गांव में बिजली आपूर्ति की मांग की। बिजली व्यवस्था में सुधार तो दूर, जो बिजली आ रही थी वो भी गुल हो गई। गांव में बने दो मंजिला सामुदायिक चिकित्सा केंद्र में लगे तमाम चिकित्सा उपकरणों, नियो नेटल सेंटर में बेबी वार्मर, सीलिग फेन आदि पर धूल की मोटी परतें जमी हुई हैं। आज एक दशक से अधिक समय बीत चुके हैं, लोग लालटेन और गैस लैंप से अपना गुजारा कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में एक गांव है खुजा। कहते हैं इस गांव में करीब एक दशक से शहनाई की गूंज, ढोलक की थाप पर मंगलगीत गाती महिलाओं के मधुर स्वर सुनाई नहीं दिए हैं। पूछताछ करने पर पता चला कि बिजली नहीं आने से गांव में दुल्हन के पांव पड़ने बंद हो गए हैं। बिजली गुल होने के बाद से यहां कोई अपनी बिटिया नहीं ब्याहना चाहता। 500 की आबादी वाले इस गांव में तीन दर्जन से अधिक ऐसे युवा हैं जो शादी की औसत उम्र पार कर चुके हैं। गांव के एक युवक की जुबानी सुनेंगे तो आप भी दंग रह जाएंगे, 'एक साल पहले रिश्ते के लिए कुछ लोग घर आए थे। उन्होंने जब रिश्ते की बात बढ़ाई तो बातों ही बातों में साफ हुआ कि गांव में लंबे समय से बिजली नहीं है और फिलहाल आने की भी कोई उम्मीद नहीं है। तब उन्होंने कहा कि मेरी बेटी मोबाइल रखती है। ऐसे में उसका मोबाइल कैसे चार्ज हो पाएगा? और उन्होंने रिश्ता करने से मना कर दिया।'
उक्त तमाम चौंकाने वाले तथ्य यूपीए सरकार-2 की योजना 'सभी के लिए बिजली' की पोल खोलने के लिए काफी है। बिजली नहीं होने से उद्योग-धंधे चौपट हुए तो उद्यमियों ने उच्च क्षमता के जनरेटर का उपयोग करना शुरू कर दिया। लेकिन जब किसी गांव में बिजली के नहीं आने से युवकों के समक्ष शादी का संकट पैदा हो जाए और सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होने का खतरा पैदा होने लगे तो सोचना लाजिमी है कि सरकार कोई ऐसा कानून क्यों नहीं लाती जो देश के हर नागरिक को बिजली पाने का हक दिला सके। सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक (सबको भोजन की गारंटी) के लिए पहल कर सकती है तो बिजली सुऱक्षा विधेयक (सबको बिजली पाने का हक) के लिए पहल क्यों नहीं कर सकती।
गांव-गांव बिजली पहुंचाने के लिए सरकार ने 80 के दशक में ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन भ्रष्टाचार और राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह योजना मकसद में कामयाब होती नहीं दिखी तो सरकार ने 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की शुरुआत की और यूपीए-2 की सरकार ने दिसंबर 2012 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन लाख टके का सवाल फिर से वही कि क्या 2012 में हर घर बिजली से रोशन हो पाएगा और दतिया का खुजा गांव जहां कोई बाप अपनी बेटी को ब्याहने से नहीं कतराएगा?
विकासशील देशों में बिजली की मांग में बढ़ोतरी सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से अधिक होती है। समग्र ऊर्जा नीति के अनुसार, अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को 7 प्रतिशत की दर से बढ़ना है तो बिजली के उत्पादन में हर साल 10 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए, लेकिन भारत में इस समय 101,153 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है जो ज़रूरत से 13,000 मेगावाट कम है। लेकिन यह सब कैसे संभव हो पाएगा? संभव होगा, लेकिन इसके लिए अवाम को जागरूक होना होगा और सरकार को एक सशक्त बिजली सुऱक्षा नीति बनानी होगी।
विकास के जिस चौराहे पर देश खड़ा है, तय है बिजली की मांग में अनवरत बढ़ोतरी ही होगी और इसे पैदा करने के पारंपरिक साधनों का अगर इस्तेमाल होता रहा तो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में भी उसी रफ्तार से इजाफा होगा और यदि ये संसाधन क्षय ऊर्जा के स्रोत रहे तो इससे बिजली की मांग पूरी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। हमें कोयला व पेट्रोल आधारित ऊर्जा स्रोत के बजाए दूसरे विकल्पों पर गौर करना ही पड़ेगा। मसलन पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जैव ऊर्जा। ये सब ऊर्जा के अक्षय भंडार हैं। फिर इनसे प्रदूषण का खतरा भी नहीं है।
ऊर्जा की बर्बादी कम से कम हो, इसके प्रयास बेहद जरूरी हैं। कंप्यूटर, फ्रिज, एयरकंडीशन, ओवन जैसे 20 सर्वाधिक बिजली की खपत वाले उपकरणों की जगह दूसरे कम खपत वाले विकल्पों को अगले 5-6 वर्षों मे अनिवार्य करने संबंधी नीति बने। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व वाहन निर्माता नई तकनीक से युक्त उत्पादों का ही निर्माण करें। बड़े-बड़े मॉलों आदि में एस्कलेटर आदि के प्रयोग से बचा जाए। रियल एस्टेट के क्षेत्र में ऐसी नीति अपनाई जानी चाहिए कि भवनों का निर्माण ऐसा हो कि दिन में बिजली जलाने की जरूरत महसूस न हो। इमारत में जाड़े के दिनों में अधिकतम गर्मी बचाए रखने की क्षमता हो। नई इमारतों में शीशे की बड़ी दीवारों से बचना जरूरी है ताकि गर्मी के दिनों में वातानुकूलन पर अधिक ऊर्जा की खपत न हो। लेकिन इतनी रोशनी की व्यवस्था अवश्य करनी है जिससे दिन के वक्त बल्व न जलाना पड़े। हमें 2012 तक 100 किमी के सफर में 5-6 लीटर से ज्याद ईंधन खाने वाली गाड़ियों पर रोक लगानी होगी।
इस तथ्य को ध्यान में रखने की जरूरत है कि एक लीटर पेट्रोल के इस्तेमाल से वातावरण में चार किलो कार्बन डाइऑक्साइड पहुंचती है। सरकार को चाहिए कि अक्षय ऊर्जा कानून जल्द से जल्द लागू करे। 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में चार फीसदी की कमी करने की जरूरत है। इस मामले में सरकार दूसरे देशों को दोषी ठहराने की नीति छोड़ अपने पर ही ध्यान केंद्रित करे तो अच्छा होगा। बिजली उत्पादन में तो क्रमश: बढ़ोतरी करते हुए 2050 तक अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 64 प्रतिशत करने की जरूरत है। बिजली की कीमत को तर्कसंगत रखा जाना भी जरूरी है। प्रदूषण फैलाने वाली कोयला आधारित औघोगिक इकाइयों पर सख्ती से लगाम लगे। बिजली चोरी रोकने और वितरण व्यवस्था को लेकर भी सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे। तभी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ हर गांव बिजली से रोशन होगा और सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होने से बच सकेगा। देश के हर नागरिक को 'बिजली का हक' का सपना साकार हो पाएगा।
First Published: Saturday, January 28, 2012, 17:07