`बीजेपी में कोई अंतर्कलह नहीं`

`बीजेपी में कोई अंतर्कलह नहीं`

`बीजेपी में कोई अंतर्कलह नहीं`भारतीय जनता पार्टी के गाजियाबाद से सांसद और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी की भावी रणनीतियों और वर्तमान में पार्टी की दशा और दिशा का विस्तार से विश्लेषण किया। सियासत की बात में राजनाथ सिंह के साथ ज़ी न्यूज़ उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के संपादक वासिन्द्र मिश्र ने खास बातचीत की। पेश है इसके प्रमुख अंश-

सवाल-सबसे पहले हम यह जानना चाहते हैं कि देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपनी आंतरिक कलह से देश की जनता को मायूस कर रही हैं, क्या आपको नहीं लगता कि यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है राष्ट्रीय दल के नेता के नाते कि आप लोग अपने अंतर्कलह (इगो) की लड़ाई छोड़कर जनता के बारे में सोचें, देश के बारे में सोंचें।

जवाब-कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है उससे सारा देश परिचित है लेकिन जहां तक भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न है, मैं कह सकता हूं कि बीजेपी में कहीं अंतर्कलह नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जिसमें आंतरिक लोकतंत्र है और आंतरिक लोकतंत्र जिस पार्टी में होगा उसमें यदि किसी विषय पर विचार होगा तो स्वाभाविक रूप से कई प्रकार के विचार आएंगे। विचारों की जब किसी मुद्दे पर भिन्नता रहती है तो स्वाभाविक रूप से जो इस लोकतंत्र की गहराई को ठीक से नहीं समझता है वह इसे मान लेता है कि यह आंतरिक कलह है। आपसी संघर्ष है लेकिन हमारी पार्टी की सबसे बड़ी विशेषता है कि यदि किसी भी विषय पर हमें विचार करना होता है, हमारा कोर ग्रुप केंद्र, प्रदेश और जिले स्तर पर होता है। कोर ग्रुप के लोग उस मुद्दे पर विचार करते हैं और उसके बाद जो आम सहमति बनती है उसे पार्टी के अध्यक्ष अपनी तरफ से घोषणा करते हैं कि यह पार्टी का मत है। होता यह है कि कभी-कभी भीतर यदि कोई चर्चा हुई। किसी मुद्दे पर अलग-अलग विचार आए और यदि वह बात बाहर चली गई, लोगों की जानकारी में आ गई कि किसका क्या विचार था तो अब उसी को लोग मीडिया में हाइप देने की कोशिश करते हैं कि अरे साहब यहां तो बहुत सारे मतभेद हैं।

यदि हमारी भी पार्टी कांग्रेस की तरह व्यक्ति या परिवार की पार्टी होती तो आंतरिक लोकतंत्र नहीं रहता। इंटरनल डेमोक्रेसी ही बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है। इंटरनल डेमोक्रेसी के अतिरिक्त ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसने स्वतंत्र भारत में एक समय कांग्रेस पार्टी से भी अपना पॉलिटिकल स्ट्रेटर ऊपर करने की कवायद की है। यही हमारे आंतरिक लोकतंत्र की ताकत है।

सवाल-मैं दोबारा इसी सवाल को आपके सामने रखना चाहता हूं कि देश की जनता उम्मीद लगा के बैठी है कि कांग्रेस से अगर उसका मोह भंग होता है तो वो बीजेपी को एक नेचुरल विकल्प के रूप में देख सके। जो तमाशा देखने को मिला है पिछले दिनों कर्नाटक, उत्तराखंड और गुजरात में आपको नहीं नहीं लगता कि आप लोग जनता की अपेक्षाओं के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।

जवाब- ऐसा नहीं है। जनता हमारे देश की इतनी जागरुक है कि पैंसठ वर्षों में उसने अपने मतों का प्रयोग करते-करते राजनीतिक जागरुकता को विकसित किया है। वो सारी चीजों को समझती है। लेकिन कभी-कभी हमारे पॉलिटिकल विरोधी इसे हवा देने का काम करते हैं। ये बताइये कि जहां किसी राज्य में कोई पार्टी सत्ता में है, स्वाभाविक रूप से इतनी बड़ी पार्टी है कि दो चार उसके क्लेमेंट होंगे ही। तो कभी छोटे-मोट विवाद पैदा हो सकते हैं लेकिन उसके कारण कहीं हमारी सरकार चली गई हो यह आपको देखने को नहीं मिलेगा। मैं कहता हूं कांग्रेस को आप देखिये उत्तराखंड में। अरे कई स्थलों पर कांग्रेस का तो कोई भी राज्य शेष नहीं बचा जहां कोई ग्रुप ना हो। लेकिन हमारे यहां जो फैसला हो जाता है वो हो गया।

सवाल- लेकिन जिस व्यवस्था का विरोध आप लोग करते रहे सत्ता में आने के लिए, खासतौर से इंदिरा गांधी या राजीव गांधी के समय का, कि उनके यहां मुख्यमंत्री का चयन दिल्ली में होता है। विधानमंडल दल नहीं करता है लेकिन जब बाद में सत्ता बीजेपी को मिली तो चाहे उत्तराखंड हो या कर्नाटक उसी नक्शे कदम पर बीजेपी चलती दिखाई देती है।

जवाब -बिल्कुल नहीं। इसके लिए क्षमा कीजियेगा। कर्नाटक में मैं गया, आब्जर्वर के रूप में, अरुण जेटली भी मेरे साथ थे। वहां पर हम लोगों ने एक-एक विधायक से बात की और सारे विधायकों की राय लेने के बाद मेजोरिटी जिसके साथ थी उसी को वहां का नेता चुना गया। उत्तराखंड में यदि बीजेपी विधायक दल का नेता चुनना था, मैं और अनंत कुमार गए सारे विधायकों से बातचीत करने के बाद फैसला किया। सामान्यत: हम लोग यही करते हैं। हां, इसे भी मैं मान लेता हूं कि हो सकता है कि यदि वहां के विधानमंडल दल का ये फैसला हो कि सेंटर फैसला करे तो सेंट्रल पार्लियामेंट्री बोर्ड को ये पूरा अधिकार प्राप्त है कि वो जो चाहे फैसला कर सकती है, विचार प्रस्तावित करके। तो यदि लेजिस्लेचर पार्टी स्वयं ये कह रही है कि सेंट्रल पार्लियामेंट्री बोर्ड जो फैसला करेगा वो हमको स्वीकार है तो उसका फैसला बोर्ड करता है।

सवाल- एक और बात जो देखने को मिल रही है कि बीजेपी के गठन से लेकर आज तक अगर अटल जी, आडवाणी जी और आप के कार्यकाल को राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर छोड़ दें तो ज्यादातर अध्यक्ष ऐसे हुए हैं जिनकी कोई मास अपील नहीं है। जिनकी पहचान ज्यादातर एक सीईओ की तरह रही है बजाय पॉलिटीशियन की तरह मास लीडर की तरह। क्या वजह है कि पार्टी अध्यक्ष सीईओ की तरह बनाना पड़ रहा है, क्या पार्टी के अंदर मास अपील वाले नेता हैं या जनछवि वाले नेताओं का अभाव है।

जवाब- देखिए भारतीय जनता पार्टी का जहां तक सवाल है इसमें मास लीडर्स की कमी नहीं है। बहुत सारे मास लीडर्स हैं लेकिन अध्यक्ष बनाते समय ये आवश्यक नहीं है कि जिसे अध्यक्ष बनाया जाए वो मास लीडर ही हो। अध्यक्ष एक संगठन का ढांचा प्रभावी तरीके से सक्रिय रूप में अपनी भूमिका सारे देश भर में निभाए उसका विस्तार हो तो ऐसे व्यक्ति को बना सकते हैं। जिसके पार्टी के प्रति आइडियोलाजिकल कमिटमेंट हो और जिनका पार्टी में एक लंबे समय तक काम करने का अनुभव हो ऐसे लोगों को सामान्यत राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाती है।

सवाल -लेकिन आइडियोलॉजिकल कमिटमेंट तो जो जनछवि वाले हैं उनका भी रहता है। अब अटल जी, आडवाणी जी या आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता पर कौन सवाल उठाएगा। उसी का परिणाम है कि आप पूरे राजनीतिक जीवन में उससे जुड़े रहे।

जवाब- छोटी से लेकर बड़ी जिम्मेदारी संभालते संभालते ही जनाधार भी बढ़ता है और जनस्वीकार्यता भी बढ़ती है।

सवाल -आपको नहीं लगता चाहें जनकृष्णमूर्ति रहे हों, बंगारु लक्ष्मण रहे हों या जो मौजूदा नेतृत्व हो इस तरह के पैराट्रूपर्स को लाकर बैठाया गया।
जवाब –नहीं-नहीं, अपने-अपने राज्यों में इनका जनाधार रहा है। ये नकारा नहीं जा सकता, चाहे वैंकैया हो या और सारे लोग, तो इन लोगों का आधार रहा है। हमारे आज के अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी जी की भी अपने राज्य में अच्छी पकड़ है। प्रभावी नेता हैं। जनसामान्य में स्वीकार्यता उनकी रही है। ऐसा नहीं है कि बिल्कुल जनाधार नहीं है।

सवाल-मेरा सवाल अभी भी अधूरा है। मैं ये जानना चाह रहा हूं कि जब आपके दल में एक से ज्यादा मास अपील वाले नेता मौजूद हैं जिनकी वैचारिक प्रतिबद्धता भी रही है। संगठन और पार्टी के प्रति या संघ के प्रति हो तो बजाय उनको आगे करने के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस तरह के चेहरों को क्यों आगे किया जाता है जिनके बारे साल दो साल लग जाता है देश भर को बताने में कि ये हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इसका बहुत बड़ा व्यक्तित्व है। इनकी वैचारिक प्रतिबद्धता है और ये पार्टी के लिए बहुत समर्पित हैं।

जवाब- नहीं, समय जाया करने का सवाल नहीं है। पार्टी का कोई भी अध्यक्ष बनता है, भारतीय जनता पार्टी देश की इतनी बड़ी राजनीतिक पार्टी है कि उसके अध्यक्ष बनते हुए सारा देश उनसे परिचित हो जाता है। सब उसे जानने लगते हैं। इसलिए ऐसा नहीं है। जब तक किसी को अवसर नहीं मिलेगा तो देश जानेगा कैसे। यह भी तो प्रश्न है। उसी में उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। उसकी कार्यक्षमता योग्यता प्रतिभा से सारा देश परिचित होता है।

सवाल -हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। दोनों राज्यों में पार्टी में अंतर्कलह है। नेताओं को लेकर आपसी मनमुटाव है और खासतौर से आपके दोनों मुख्यमंत्रियों के कामकाज को लेकर पार्टी में काफी नाराजगी है, वहां के नेताओं में। आपकी पार्टी इस संकट को कैसे दूर करेगी।

जवाब-देखिए दोनों राज्यों में कोई संकट नहीं है और वासिन्द्र जी मैं ये कहना चाहूंगा कि हिमाचल और गुजरात दोनों राज्यों में फिर से बीजेपी स्पष्ट बहुमत के आधार पर सरकार बनाने जा रही है और यदि मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि इन दोनों राज्यों में सरकार बनेगी तो इसलिए कह रहा हूं कि हमारी दोनों सरकारों की एक विश्वसनीयता वहां की जनता में बन चुकी है। भारत ही नहीं दुनिया के लोग भी इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं कि अब विकास के मामले में गुजरात हिन्दुस्तान का एक मॉडल स्टेट बन चुका है। हिमाचल प्रदेश में भी सरकार का प्रदर्शन बेहद अच्छा रहा है। हम लोगों ने जो वहां से जानकारी प्राप्त की है जो सर्वे आ रहे हैं उसके आधार पर फिर से बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है।

सवाल-गुजरात कई कीर्तिमान भी बना रहा है। अभी राज्यपाल ने मंत्रिमंडल के एक मंत्री की जांच की अनुमति दे दी है। बताया जा रहा है कि साढ़े चार सौ करोड़ का घोटाला उनकी जानकारी में हुआ है। उनके विभाग की इसमें लिप्तता है।

जवाब-देखिए, कांग्रेस पार्टी का अपनी राजनीति करने का तरीका है और आपको याद दिलाना चाहता हूं, केवल एक घटना ही पर्याप्त होगी सारी चीजों को समझने के लिए। आडवाणी जी और कुछ अन्य लोगों पर हवाला के मामले को लेकर एक आरोप चस्पा किया गया था। उस समय आडवाणी जी जैसा उनका राजनीतिक कद है उन्होने तुरंत कहा कि जब तक मैं आरोप मुक्त नहीं होता मैं संसद में कदम नहीं रखूंगा। आपने देखा जांच हुई और पूरी तरह से मामला फिजिल आउट हो गया। तो कांग्रेस बराबर भारतीय जनता पार्टी चूंकि ईमानदारी के मामले में उसकी एक साख है तो कोई ना कोई षडयंत्र करती रहती है। साढ़े चार सौ करोड़ का घोटाला हो गया किसी विभाग में। मैं कहता हूं कि पहले जांच तो हो जाने दीजिये। भारतीय जनता पार्टी की स्थिति कांग्रेस जैसी नहीं है कि मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगे हों और जांच करने से कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार बचती रही हो।

सवाल -गुजरात में तो आरोप आपके पार्टी के लोग लगा रहे हैं।

जवाब -पार्टियों का जहां तक सवाल है ये आज नहीं और अब केवल बीजेपी में हो रहा हो, ऐसा नहीं है। ये तो प्रारंभ में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के साथ भी बहुत सारे सहयोगी रहे लेकिन आपने देखा होगा कि बहुत सारे लोगों ने फिर कैसी भूमिका निभाई है वह भी जगजाहिर है।

सवाल - तो आपको लगता है कि जो गुजरात में हो रहा हैं, जो पार्टी के अंदर रहकर नरेंद्र मोदी को टारगेट कर रहे हैं वो चुनाव आने तक पार्टी से बाहर हो जाएंगे।

जवाब -पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी का कोई विरोध नहीं हो रहा है।

सवाल -आपकी पार्टी और आपका एनडीए दोनों चिदंबरम का खुलकर विरोध करते रहे हैं। संसद के भीतर और बाहर जिस मुखर तरीके से आप लोगों ने जिस तरह से विरोध किया उस तरह किसी दल ने नहीं किया। सत्र शुरु होने जा रहा है मानसून का।

जवाब -वह कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं था बल्कि उनके ऊपर जो आरोप लगे थे, उसे लेकर प्रमुख प्रतिपक्षी दल होने के नाते बीजेपी ने संसद के दोनों सदनों में उठाई थी। हमारा कहना है कि किसी भी राजनेता के ऊपर कोई गंभीर आरोप लगते हैं तो उस राजनेता को स्वयं चाहिए कि वो अपनी तरफ से पहल करे कि जो आरोप मेरे ऊपर लगे हुए हैं जब तक मैं इन आरोपों से मुक्त नहीं हो जाता तब तक राजनीति में सक्रिय भूमिका का नर्वाह नहीं करूंगा या इस ओहदे पर नहीं रहूंगा। राजनीति में काम करता रहूंगा लेकिन जिस ओहदे पर मैं बैठा हूं उस पर नहीं रहूंगा। जब इस प्रकार के हालात पैदा होंगे तभी मैं समझता हूं कि भारत की राजनीति और भारत के नेताओं के प्रति जो एक विश्वास का संकट जनसामान्य के बीच पैदा हो रहा है इस विश्वास के संकट को दूर किया जा सकता है।

सवाल-अब आपको लगता है कि चिदंबरम पाक-साफ हैं।

जवाब- नहीं-नहीं। मैं पाक-साफ नहीं कह रहा हूं। आरोप तो है ही। जो आरोप है मैं समझता हूं कि जब तक इन आरोपों से वो बरी ना हो तब तक ये जिम्मेदारी उनको नहीं दी जानी चाहिए थी। इससे प्रधानमंत्री जी को बचना चाहिए था।

सवाल -एक दूसरा ट्रेंड भी देखने को मिला है कि जिस तरह से वीरप्पा मोइली और सुशील शिंदे को दो महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी दी गई है, क्या आपको लगता है कि कांग्रेस पार्टी फिर अपने उस परंपरागत वोट बैंक की तरफ बढ़ना चाहती है या उसे अपने पाले में लाना चाहती है। इसलिए गवर्नेंस के मुद्दे को पीछे छोड़ कर अब राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रही है सरकार।

जवाब-कांग्रेस का ये पुराना स्वभाव है। आजाद भारत में प्रारम्भ से मैं देख रहा हूं कि ये देश बनाने की राजनीति नहीं करते। ये केवल सरकार बनाने की राजनीति करते हैं। और जो पार्टी केवल सरकार बनाने की राजनीति करेगी वो वोटबैंक की बराबर राजनीति करेगी। यह कांग्रेस का एक मूल चरित्र बन चुका है।

सवाल-आखिर क्या वजह है कि जब भी कोई संवैधानिक पदों पर चुनाव की बात आती है तो आपस में ही राय नहीं बन पाती है एनडीए में। चुनाव तो होते हैं लेकिन वह एक टोकन फाइट बनकर रह जाता है। चाहे वो राष्ट्रपति का चुनाव हो या उपराष्ट्रपति का।

जवाब- राष्ट्रपति के चुनाव में प्रणब मुखर्जी को विजय हासिल हुई। हमारे देश के वो महामहिम राष्ट्रपति हैं। लेकिन उस पर समर्थन देने का जहां तक प्रश्न है। एनडीए में ये बात सही है कि आपसी सहमति नहीं बन पाई। कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया। कुछ ने विरोध किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि एनडीए की यूनिटी खत्म हो गई। तुरंत उसके बाद उपराष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है तो आपने देखा होगा कि इस चुनाव में एनडीए पूरी तरह से एकजुट है। और यदि एनडीए में शामिल सारी पार्टियां हर मुद्दे पर पूरी तरह से सहमत यदि रहें तो मैं समझता हूं कि अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां बनाने का कोई औचित्य नहीं है। अगर कई राजनीतिक पार्टियों को मिला कर एनडीए बना है तो स्वाभाविक है कि कुछ मुद्दे ऐसे होंगे कि मतभिन्नता होगी ये अस्वाभाविक नहीं है।

सवाल-कांग्रेस जिस तरह से अपने ट्रेडीशनल वोट बैंक को हासिल करने की जुगत में है दलित, मुस्लिम, अगड़ी जातियों का कॉंम्बिनेशन बनाकर दोबारा सत्ता में आना चाहती है उसे देखते हुए बीजेपी की रणनीति क्या होगी 2014 में।

जवाब -देखिए कांग्रेस का जहां तक प्रश्न है मैं ये कह सकता हूं कि जनसामान्य में कांग्रेस विगत 8-9 साल में अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है क्योंकि आपने देखा कि इस सरकार ने जनता के साथ जो भी वादे किए एक भी वादे को पूरा नहीं कर पाई है। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं फूड सिक्योरिटी बिल, आठ साल बीत गए इस बिल का आज तक अता-पता नहीं है। ऐसे जितने भी वादे किए मंहगाई के बारे में जब से यह सरकार आई है मंहगाई बढ़ने का सिलसिला निरंतर जारी है। यानी जो कहा उसे नहीं किया। परिणामस्वरुप जनसामान्य में इनकी विश्ववसनीयता पूरी तरह से समाप्त हो गई है। इसलिए दोबारा कांग्रेस के आने का मुझे नहीं लगता कि कोई प्रश्न खड़ा होता है। क्योंकि यूपी में आपने देखा स्थानीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा में जितने प्रतिशत मत प्राप्त किए थे उसकी आधी भी नहीं रह गई। जहां तक बीजेपी का प्रश्न है बीजेपी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से अपनी तैयारियों का सिलसिला अब प्रारंभ कर रही है। मैं ये नहीं कहता कि प्रांरभ से ही है और संगठन का काम तो हमारे यहां निरंतर चलता है क्योंकि काडर बेस आर्गनाइजेशन के रूप में भारतीय जनता पार्टी जानी जाती है।

सवाल -2014 में बीजेपी किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने वाली है।

जवाब-अरे मुद्दों की कमी नहीं है। एक तो कांग्रेस लेड यूपीए सरकार का फेल्योर है, उसकी चर्चा तो होगी ही होगी। हम कुछ सकारात्मक मुद्दों को लेकर भी जनता के बीच जाएंगे। और हम जनता के बीच यह भी कहेंगे कि हम केवल अपनी बात गुमराह करने के लिए नहीं रख रहे हैं। हम लोगों ने सरकार भी छह वर्षों तक अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में चलाई है। देश ने देखा है छह वर्षों तक विकास की दर को तेजी से बढ़ाया है और महंगाई छह साल तक नहीं बढ़ने दिया। स्वतंत्र भारत के इतिहास में छह वर्ष का कार्यकाल यदि रहा है तो बीजेपी लेड एनडीए सरकार का जिसके प्रधानमंत्री थे आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई। सरकार कैसे चलाई जाती है ये कर के हमने दिखा दी। वह नजीर तो सामने ऱखेंगे। भारत की अर्थव्यवस्था की साख यदि एनडीए की सरकार 2014 में बनती है तो उसे स्थापित करेंगे। हम लोगों को ये भरोसा दिलाएंगे।

सवाल -जब पिछली सरकार आपकी बनी थी जो छह साल चली तो उसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों का बड़ा योगदान था और वहां से बड़ी तादाद में लोग जीतकर आए थे जो मौजूदा हालात हैं उसमें क्या आपको लगता है कि उस तरह की सफलता इन राज्यों में मिलने जा रही है।

जवाब –हां, मिलेगी। पक्का मिलेगी और पहले से अच्छी मिलेगी। मध्यप्रदेश में तीसरी बार हमारी सरकार बनेगी। छत्तीसगढ़ में बनेगी। झारखंड में बनेगी। बिहार में भी बनेगी अभी तो है ही। बिहार में फिर बनेगी। उत्तर प्रदेश में बीजेपी पिछली बार हमारे जितने सांसद थे उसके कई गुना ज्यादा सांसद जीतकर अबकी आएंगे। कारण मैं बता दूं किया है। बीएसपी की सरकार से यूपी की जनता त्रस्त थी और लोगों को लगता था चाहे जो भी हो जो सरकार बनाता हो उसको अपना समर्थन दे दो। जात पंथ मजहब सबसे ऊपर उठकर लोगों ने देखा कि सपा की स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी दिख रही है और वही सरकार बना सकती है, स्थाई सरकार दे सकती है तो समाजवादी पार्टी की सरकार बनवा दी। लेकिन जिस उम्मीद अपेक्षा से समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया आज उन अपेक्षाओं की कसौटी पर ये सरकार पूरी तरह से विफल होती हुई नजर आ रही है। लोगों के हाथ निराशा ही लगी है। लोग ये महसूस कर रहे हैं कि केन्द्र में यदि कांग्रेस की सरकार जाने के बाद यदि कोई राजनीतिक दल सरकार बना सकता है तो वो भारतीय जनता पार्टी है जिसकी अगुवाई में एनडीए की सरकार बन सकती है। लोग यदि विकल्प की तलाश करेंगे तो बीजेपी एनडीए को ही समर्थन देंगे।

सवाल- यानी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सरकार की जो विफलता है उस पर आप लोग ज्यादा बैंक कर रहे हैं, बजाय अपने कैडर की ताकत के।

जवाब-कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी इन सबकी विफलता और इन्होंने जो एक विश्वास का संकट खड़ा किया है वो जनता में हमको कहना ही है। लेकिन केवल विफलताओं के आधार पर नहीं हम आगे क्या करेंगे कुछ सकारात्मक पहलू मुद्दे लेकर हम जनता के बीच जाएंगे। देश की अर्थव्यवस्था को कैसी दिशा देना है कैसे उसे नियंत्रित करना है, कैसे ये सुनिश्चित करना है ये कला किसी राजनीतिक पार्टी को सीखनी है तो भारतीय जनता पार्टी से सीखना चाहिए।

सवाल- चुनाव से पहले बीजेपी के नारे मुद्दे स्लोगन पाजिटिव होते हैं लेकिन ज्यों ही अधिसूचना जारी होती है तो उसके बाद सारे उन पाजिटिव इश्यू छोड़ कर पार्टी भी उसी रेस में शामिल हो जाती है जिस तरह समाजवादी पार्टी जाति की राजनीति करने लगती है। बहुजन समाज पार्टी जाति की राजनीति करने लगती है। कांग्रेस जातीय समीकरण बैठाने में लग जाती है और बीजेपी भी फिर दोबारा राममंदिर, धारा 370 की बात करने लगती है तो क्या इस बार बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव में उन पाजिटिव इश्यूज़ पर केंद्रित रहेगी जिसका बात आप अभी कर रह थे।

जवाब –देखिये, हर पार्टी की अपनी विचारधारा है जिसे बदला नहीं जाता लेकिन जब चुनाव होते हैं तो चुनाव में सामान्यत: विकास के मुद्दों की चर्चा की जाती है क्योंकि मुझे याद है यूपी में ही चुनाव में जब जनता के बीच विचार रखने जाता था तो वहां बीजेपी की सरकार बनेगी तो क्या-क्या करेंगे, उन्ही की चर्चा करते थे या जब मैं सीएम था तो उस समय क्या किया था उनकी बात या जब बीजेपी की सरकार रही है तो क्या हुआ है यब सब सारी चर्चा हम करते थे।

सवाल -विजन डाक्यूमेंट की बात हो रही थी, पार्टी भी चुनाव के दौरान कर रही थी लेकिन साथ में बाबू सिंह कुशवाहा को भी पार्टी में लाया गया। आपको नहीं लगता कि वह एक पॉलिटिकल ब्लंडर था।

जवाब- अब देखिये, कैसे हुआ किन परिस्थितियों में हुआ। मैं समझता हूं कि मुझे चर्चा करने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि वो चेप्टर पूरी तरह से क्लोज हो चुका है।

सवाल -मैं ये जानना चाह रहा हूं कि भविष्य में इस तरह की गलतियों से बचने की कोशिश करेगी पार्टी।

जवाब- सामान्यत भारतीय जनता पार्टी कोई गलती नहीं करती। ऐसा नहीं है कि बीजेपी गलती करती हो लेकिन कभी हो सकता है इतनी बड़ी राजनीतिक पार्टी है जिसमें पचासों लोग हैं, पचासों तरह की बातें रहती हैं कहीं पर उसमें चूक हो सकती है। कहीं पर यदि कोई चूक होगी भविष्य में हमसे तो उसे हम सुधारेंगे।

राजनाथ जी बातचीत के लिए धन्यवाद।

First Published: Friday, August 3, 2012, 15:35

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