बेपटरी होता भारतीय रेल - Zee News हिंदी

बेपटरी होता भारतीय रेल



 

इन्द्रमोहन कुमार

सीएजी की रिपोर्ट भारतीय रेल पर भी सवाल उठा गया. आरक्षण प्रणाली से लेकर तत्काल और अग्रिम आरक्षण सुविधा की जांच करने पर पाया कि जिन आम जरूरतमंद यात्रियों की ‘सुविधा’ के लिए यह सेवा बनी है वो घोटालेबाजी के कारण इसका पूरा लाभ नहीं ले पाते.

कंप्यूटरीकृत आरक्षण प्रणाली की चर्चा इसलिए क्योंकि वर्तमान में लोगों को रेलवे से अगर कोई बड़ी शिकायत है, तो वह टिकट खिड़की से ज्यादा कुछ भी नहीं. लेट लतीफी तो फिर भी सह लेंगे मगर जब टिकट ही नहीं मिले तो यात्रा क्या ख़ाक करेंगे?

 

मजबूर होकर लोग दलाल की शरण में जाते हैं. सरकार की दलील है कि सारा काम पारदर्शी है. मगर जांच में पाया गया कि टिकट खिड़की खुलने के चंद ही मिनटों में तत्काल कोटे की सभी टिकटें खत्म हो जाती हैं. गौरतलब है कि रोजाना लाखों लोग रेलवे की इंटरनेट आरक्षण सुविधा के जरिए टिकट आरक्षित कराते हैं. यात्री इस गड़बड़ी में रेलवे कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत की लंबे समय से शिकायत कर रहे हैं. शिकायत होती है पर सुनवाई कोई नहीं करता. मगर यह पहली बार हुआ है कि किसी राष्ट्रीय एजेंसी ने इस शिकायत पर मुहर लगाई है.

 

कुछ महीने पहले एक विकल्प के रूप में रेलवे का नया वेब पोर्टल आया, जिसका भट्टा बैठ चुका है और अब यह बंद पड़ा है. कब दुरुस्त होगा कोई नहीं कह रहा.

 

पिछले आठ साल से यात्री किराए में कोई इजाफा नहीं किया गया है, पर ऐसा नहीं है कि आपकी यात्रा सस्ती हुई है. आरक्षण और सरचार्ज के नाम पर कई अतिरिक्त कर लगा दिए गए. हां, दैनिक यात्रियों को थोड़ी राहत जरूर दी गयी. सुविधा तो बढ़ी नहीं और रफ्तार यथावत है. ट्रेनें घंटों लेट चलती हैं.

 

आईआरसीटीसी से खानपान का ठेका छिनने के बाद भी ट्रेनों में और रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाले खाने में कोई सुधार नहीं हुआ है. इसके उलट मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों के पेंट्रीकार से मिलने वाली थाली महंगी हो गयी. 35 रूपये में मिलने वाला साधारण खाना कब 65 का हो गया पता भी नहीं चला. स्पेशल की तो बात ही छोड़ दें. हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी कीमत 30 रुपया ही बताया गया.

राजधानी जैसी वीआइपी गाड़ी में भी खाना ‘वीआइपी’ नहीं रहा, बिलकुल सामान्य सी थाली दी जाती है इस ट्रेन में! खाने की पैकिंग जरूर अच्छी रहती है, जिसका ‘फंडा’ आप समझ सकते हैं.

उधर स्टेशन पर आम लोगों के लिए शुरू किया गया ‘जन आहार’ भी स्टॉल से नदारद है. रेलवे की बोतल बंद पानी ‘रेल नीर’ 12 रू में बाजार में सबसे सस्ती जरूर है.

 

संसद में पेश सीएजी ने अपनी इस रिपोर्ट में रेलवे के वित्तीय घाटे का भी आंकलन किया है. इसका बोझ अब एसी में सफर करने वाले यात्रियों पर डाला जाना है. माल भाड़े में भी वृद्धि की बात की जा रही है.

 

दुर्घटनाओं की बात की जाए तो इसकी सूची और भी लंबी है. पिछले पांच साल में जितनी नई रेलगाड़ियां चलीं हैं उस अनुपात में रेल दुर्घटना अधिक हुई है. कारण यह कि ट्रेनें बढ़ी, ट्रैक नहीं बढ़ाए गए. कई महत्वपूर्ण पद अभी भी खाली पड़े हैं. दो महीने पहले तक रेलवे बोर्ड का कोई चेयरमैन तक नहीं था. भर्तियां नदारद है और तकनीक पुरानी हो चुकी है. आलम यह है कि हम अभी भी अंग्रेजों के जमाने वाले सिग्नल प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं.   

यह एक  अलग सच्चाई  है कि भारतीय रेल दुनिया की सबसे ज्यादा कर्मचारी वाला अकेला संगठन है. इसमें लगभग 16 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं.

 

पुरानी हो चुकी सिग्नलिंग सिस्टम और उससे भी ज्यादा बोझ सह रही पटरियां कब साथ छोड़ देगी यह खुद रेलवे वाले भी नहीं जानते. एक खबर के अनुसार कानपुर के पास मगरवारा और गंगा पुल के बीच एक चटकी हुई पटरी से 18 ट्रेनें गुजार गयी और किसी को भनक तक नहीं लगी.

सुरक्षा के नाम पर रेलवे के पास आरपीएफ, यानी रेल सुरक्षा बल है. यह कहता है- रेलवे सम्पति, यात्री क्षेत्र तथा यात्री की सुरक्षा एवं बचाव, रेलवे के आवागमन या यात्री क्षेत्र में किसी बाधा को हटाना तथा रेलवे सम्पति, यात्री क्षेत्र एवं यात्रियों के बेहतर सुरक्षा एवं बचाव के लिए तत्पर !

हकीकत यह है कि आप किसी आम स्टेशन, एक्सप्रेस या मेल रेलगाड़ी में यदा- कदा हीं पूरी सुरक्षा व्यवस्था पाऐंगे. कारण यह भी है कि राज्य बदलने के साथ रेलवे पुलिस भी बदल जाती है. हालांकि नए रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने संसद में कहा कि रेलवे में जल्द ही एकीकृत सुरक्षा प्रणाली शुरू की जाएगी.

 

आंकड़ों के अनुसार विभिन्न राज्यों की जीआरपी रोजाना 2,200 गाडि़यों में और रेलवे सुरक्षा बल हर दिन औसतन 1,275 गाड़ियों में यात्रियों की सुरक्षा करते हैं. लेकिन हर महीने चोरी और लूट की इतनी घटनाएं भी होती हैं जो दर्ज ही नहीं हो पाती. जबकि रोजाना 7,000 यात्री गाड़ी चलती है.

ऐसा नहीं है कि इस पर किसी की नजर नही जाती, संसद में सलाना रेल बजट पेश होता है और रेलमंत्री समाधान के साथ- साथ परियोजनाओं की घोषणा भी करते हैं. मगर कुछ ही अमल में आता हैं, बाकी सब फाइलों तक सीमित रह जाता है या फिर धीरे- धीरे दशकों बाद पूरा होता है. वो भी राजनीतिक नफे- नुकसान के बाद.

अब बुलेट ट्रेन चलाने की बात की जा रही है जिसकी औसत रफ्तार 300 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. हमारे देश की सबसे तेज ट्रेन शताब्दी एक्सप्रेस 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है, वह भी चुनिंदा रूटों पर.

इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कम्पनी, जिसे दिल्ली- आगरा- लखनऊ- वाराणसी-पटना के बीच हाई स्पीड रेलगाड़ी के लिये रेल रूट बनाना है, 993 किलोमीटर लम्बे कॉरिडोर के लिये अपनी रिपोर्ट चालू वर्ष के अंत तक सौंपेगी. देखते हैं यह ‘सपना’ कब पूरा होता है क्योंकि खर्च 70 करोड़ प्रति किलोमीटर है.

 

फिलहाल कुव्यवस्था और शिकायतों से घिरी भारतीय रेल यात्रियों को सही सेवा देने में असमर्थ दिख रही है. शायद यह भी एक कारण है कि कभी करोड़ों उगाही करने वाली हमारी ‘राष्ट्रीय संपदा’ घाटे में चल रही है. सरकार मौन है, यात्री मजबूर.

 

First Published: Wednesday, August 31, 2011, 10:54

comments powered by Disqus