भुखमरी : कब निकलेगा सार्थक हल - Zee News हिंदी

भुखमरी : कब निकलेगा सार्थक हल



संजीव कुमार दुबे

देश में मोबाइल फोन धारक तो करोड़ों में हैं, लेकिन देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां 80 फीसदी आबादी रोजाना 20 रुपए मजदूरी के लिए तरसती है। हम लंबे अरसे से खाद्य सुरक्षा कानून पर बहस कर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इस बिल को अब तक लागू नहीं किया जा सका है। इस बीच खाद्य नीति पर ताजा रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग चिंताजनक पहलू को उजागर करती है।

 

अमेरिका स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की विश्व भूख सूचकांक की ताजा रिपोर्ट की 81 देशों की सूची में भारत 67वें नंबर पर है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि सिर्फ 14 देशों में खाद्य सुरक्षा की स्थिति भारत से बदतर है। यहां तक कि पाकिस्तान, नेपाल, रुआंडा और सूडान  जैसे देश भी इस सूची में भारत से ऊपर हैं अर्थात उनके हालात भारत के मुकाबले बेहतर हैं।

 

क्योंकि यह सूचकांक तीन कसौटियों - जनसंख्या में कुपोषित लोगों के प्रतिशत, अंडरवेट बच्चों के प्रतिशत और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के आधार पर तैयार किया जाता है। इसलिए इन तीनों मुद्दों पर देश की सरकार को गंभीरता से सोचना होगा। एक और गंभीर बात यह है कि खाद्य सुरक्षा के लिहाज से जिन देशों का हाल पिछले एक दशक में सबसे कम सुधरा है, उनमें भारत भी शामिल है।

 

ताजा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि जैव ईंधन के लिए फसलों के बढ़ते उपयोग, जलवायु परिवर्तन एवं वायदा कारोबार के बढ़ते चलन के कारण विश्व खाद्य बाजार में उतार-चढ़ाव तेज है और गरीबों पर उसकी भारी मार पड़ रही है। जाहिर है, इस हाल में कमजोर तबकों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए खास  इंतजाम की जरूरत है। प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून बेशक इस दिशा में एक प्रभावी पहल होगी। ताजा भूख सूचकांक सरकार को यह अहसास कराने के लिए काफी होना चाहिए। इस प्रयास में और देरी करना देश की गरीबी के साथ और खिलवाड़ करना होगा।

 

जहां तक प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून का सवाल है तो इस संबंध में नेशनल एडवायजरी काउंसिल की सिफारिश है कि देश के 75 फीसदी घरों में सरकार हर महीने सस्ता अनाज मुहैया कराए। काउंसिल का सुझाव था कि ज्यादा जरूरतमंद परिवार (गरीबी रेखा से नीचे के परिवार) को हर महीने 35 किलो अनाज मिले। उसको गेहूं 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो मिले। बाकी बचे परिवारों को हर महीने सस्ती कीमत पर 20 किलो अनाज दिया जाए और उनके लिए कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से आधी हो।

 

इस संदर्भ में सी. रंगराजन कमेटी का मानना है कि सस्ते अनाज की सुविधा 46 फीसदी ग्रामीण परिवार को और 28 फीसदी शहरी परिवार को ही मिले। कुल मिलाकर सस्ते अनाज की सुविधा सिर्फ 41 फीसदी परिवारों को ही मिले। उनको गेहूं 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाए।  रंगराजन कमेटी का यह भी सुझाव है कि अनाज की कीमत महंगाई दर से जुड़ी हो ताकि महंगाई बढ़े तो अनाज की कीमत भी बढ़ाने की गुंजाइश हो।

 

रंगराजन कमेटी का यह भी कहना है कि नेशनल एडवायजरी काउंसिल के सुझाव को माना गया तो सरकारी सब्सिडी का बोझ 92 हजार करोड़ रुपये बढ़ जाएगा। सरकारी घाटे को कम करने की कोशिश में जुटी सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि सब्सिडी का बोझ इतना बढ़ाए। सी. रंगराजन के सारे सुझाव सिर आंखों पर, लेकिन उन्होंने नेशनल एडवायजरी काउंसिल के फूड सिक्योरिटी कानून की हवा निकाल दी

 

कमेटी की सबसे बड़ी दलील है कि अनाज की सरकारी खरीद बढ़ी तो बाजार में अनाज की कमी होगी और इसका कीमतों पर बुरा असर पड़ेगा। पिछले बासठ सालों का अनुभव बताता है कि सरकारी गोदामों में ज्यादा अनाज रहने से कीमतें स्थिर रहती हैं। फूड सिक्योरिटी कानून पर बहस तो खूब हो रही है लेकिन मेरा मानना है कि बहस इस दिशा में हो कि इसे लागू कैसे किया जाए।

 

जहां तक सब्सिडी के बोझ की बात है तो  खाद पर हर साल सब्सिडी का बड़ा बिल हमें चुकाना ही पड़ता है। खाद की सब्सिडी को खत्म कर ही फूड सिक्योरिटी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। ऐसा होता है तो सब्सिडी का बोझ भी बहुत नहीं बढ़ेगा। फूड सिक्योरिटी लागू करने का फायदा यह भी होगा कि अनाज की सरकारी खरीद उन इलाकों में भी होगी जहां फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसा देखा गया है कि जिन इलाकों में सही तरीके से अनाजों की सरकारी खरीद होती है वहां किसानों को उपज का उचित दाम मिलता है।

 

गरीबी हटाने के दावे कागजों पर होने की बजाय उन्हें सही मायनों में अमलीजामा पहनाए जाने की जरूरत है। गरीबी हटाने का नारा या फिर कागजी बातों से किसी गरीब का पेट नहीं भरेगा और गरीबी भी नहीं मिटने वाली। फूड सिक्योरिटी बिल का कानून गंभीरता के साथ देश में लागू किया जाता है तो यह गरीबी मिटा पाने में मददगार साबित होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

First Published: Sunday, October 16, 2011, 12:22

comments powered by Disqus