Last Updated: Sunday, November 18, 2012, 11:47
प्रवीण कुमारभारतीय राजनीति में वैचारिक प्रतिबद्धता को शिद्दत के साथ जीने वाला राजनेता अब इस दुनिया में नहीं रहा। जी हां! मराठी मानुष की अस्मिता और हिंदुत्व की राजनीति के लिए नैतिक रूप से प्रतिबद्ध शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे अब हमारे बीच नहीं रहे। 17 नवंबर 2012, दिन शनिवार, समय-दोपहर बाद करीब 3.33 बजे मुंबई स्थित अपने निवास `मातोश्री` में उन्होंने अंतिम सांस ली। माना जा रहा है कि बाल केशव ठाकरे के निधन के साथ भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया है।
बाला साहेब ठाकरे दुनिया को एक कार्टूनिस्ट के नजरिये से देखते थे। दरअसल उन्होंने अपना करियर मुंबई के एक अंग्रेजी दैनिक `द फ्री प्रेस जर्नल` के साथ एक कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। 1960 में उन्होंने कार्टूनिस्ट की यह नौकरी छोड़ दी और अपना राजनीतिक साप्ताहिक अखबार `मार्मिक` निकाला। उस जमाने में बाला साहेब ठाकरे के कार्टून `टाइम्स ऑफ इंडिया` में भी हर रविवार को छपता था। `मार्मिक` के माध्यम से बाल ठाकरे ने मुंबई में गुजरातियों, मारवाड़ियों और दक्षिण भारतीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मुहिम चलाई। बाला साहेब ठाकरे हमेशा मराठी मानुष की लड़ाई लड़ते रहे। उन्होंने मुंबई पर मराठियों का पहला अधिकार बताते हुए बाहरी लोगों को यहां से खदेड़ने का काम किया। 6 मार्च 2008 को बाल ठाकरे ने मुंबई में रोजी रोटी कमाने के लिए गए बाहरी लोगों के खिलाफ एक बार फिर आग उगली। उन्होंने बिहारी लोगों को महाराष्ट्र में अवांछनीय बताते हुए शिव सेना के मुखपत्र सामना में लिखा, `एक बिहारी, सौ बीमारी`। दक्षिण भारतीयों के खिलाफ 1960 और 70 के दशक में बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिव सेना ने `लुंगी हटाओ पुंगी बजाओ` अभियान चलाया।
1980 के दशक में बाल ठाकरे ने मुसलमानों की तुलना कैंसर (बीमारी) से करते हुए कहा था कि वे कैंसर की तरह फैल रहे हैं। देश को उनसे बचाया जाना चाहिए। 2002 में ठाकरे ने मुस्लिम हिंसा के विरोध में हिंदू आत्मघाती दस्ता बनाने का आह्वान किया। बाल ठाकरे के इस तरह के आह्वान पर कार्रवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उनके खिलाफ दो समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने का मामला भी दर्ज किया। हालांकि बाद में उन्होंने अपने विचारों को साफ किया कि वे हर मुसलमान के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वे तो उन मुसलमानों के खिलाफ बोल रहे थे जो देश का खाते हैं, लेकिन देश का कानून नहीं मानते। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे लोगों को देशद्रोही मानता हूं। 2008 में उन्होंने एक बार फिर मुसलमानों पर हमला करते हुए कहा कि मुस्लिम आतंकवाद लगातार फैल रहा है और हिन्दू अतिवाद से ही इससे छुटकारा पाया जा सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि हमें भारत और हिन्दुओं को बचाने के लिए हिन्दू आत्मघाती दस्तों की जरूरत है।
बाला साहेब ने 19 जून 1966 को शिवसेना का गठन किया। शुरुआत से ही मराठी मानुष के अधिकारों की सुरक्षा और हिंदुत्व हमेशा उनके एजेंडे में रहे। धीरे-धीरे राजनीति में पैठ बना रहे बाला साहेब को 70 के दशक से राजनीति में अपना प्रभुत्व जमाने का मौका मिला और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर मुंबई की यूनियनों पर अपना प्रभाव जमाया। 70 का दशक बेरोजगारी, असंतोष और आपातकाल के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि इसी दौर में बाला साहेब की ताकत भी बढ़ी और शिवसेना ने मुंबई पर अपना प्रभाव भी जमाया। इसके बाद शिवसेना की विचारधारा को घर-घर पहुंचाने के लिए बाला साहेब ठाकरे ने अपनी पार्टी के मुखपत्र `सामना` की शुरुआत की। हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना और भाजपा एक मंच पर आए। दोनों दलों ने गठबंधन किया और 90 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशों से उठा आरक्षण का मुद्दा, बाबरी विध्वंस के कारण हिंदू-मुस्लिम तनाव और दंगों ने बाला साहेब को महाराष्ट्र और विशेष तौर पर मुंबई की सत्ता के उस शीर्ष पर बिठा दिया जिससे मरते दम तक उन्हें कोई हिला नहीं पाया। 1995 में भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना ने सरकार भी बनाई। इसके बाद बाल ठाकरे ऐसा नाम बन गया जिसे इस बात से कभी फर्क नहीं पड़ता था कि सरकार किसकी है और सत्ता किसके पास है। भाजपा और शिवसेना की सरकार 1995 से 1999 तक चली और इस दौरान बाल ठाकरे का सरकार पर पूरा प्रभाव रहा।
बाला साहेब ठाकरे की सबसे बड़ी खासियत थी कि वह जब कभी कोई बयान देते थे, वापस नहीं लेते थे। दूसरे उन्होंने कभी भाजपा की तरह धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाने की कोशिश नहीं की। वह सिर्फ हिंदुत्व की बात करते थे और खुलकर कहते थे कि वह हिंदूवादी हैं। इसी चरित्र की बदौलत, जिसने एक बार उनका दामन पकड़ा वह फिर कभी उनसे दूर नहीं गया। बाला साहेब ठाकरे का परिवार अकेला ऐसा राजनीतिक परिवार है जिस पर कभी भ्रष्टाचार के छींटे नहीं पड़े। 86 साल के जीवन में 46 साल तक शिवसेना के सहारे राजनीति करने वाले बाला साहेब ठाकरे ने कभी न तो सीएम बनने की ख्वाहिश पाली न ही पीएम बनने की। लेकिन सीएम और पीएम के बीच मराठी मानुष और हिंदुत्व की राजनीति के माध्यम से बाला साहेब ठाकरे का प्रभुत्व हमेशा महाराष्ट्र और दिल्ली की राजनीति पर बना रहा। सूबे की राजनीति हो या राष्ट्रीय राजनीति, सत्ता पक्ष की राजनीति हो या फिर विपक्ष की राजनीति सबको वह बड़ी शिद्दत के साथ जीते थे और देश के तमाम सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष के नेता उनका सम्मान करते थे।
ठाकरे हिटलर के प्रशंसक थे और उन्हें ऐसा कहने में कोई शर्म भी नहीं आती थी। बाला साहेब हिटलर और खुद में कई समानताएं देखते थे। एक बार उन्होंने कहा कि भारत को भी एक तानाशाह की जरूरत है। हिटलर के बारे में उनका कहना था कि वह कई मायनों में कमाल था। उसके अंदर लोगों को साथ लेकर चलने की अतुलनीय क्षमता थी। वह अपने आप में एक जादू था। बाला साहेब सचिन तेंदुलकर को भी बेहद पसंद करते थे लेकिन सिर्फ क्रिकेट के भगवान के रूप में। एक वाकया नवंबर 2009 का याद आता है जब बाल ठाकरे के गुस्से का शिकार बने क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर। सचिन ने कहा था कि मुंबई पर सभी भारतवासियों का हक है। इस बात पर बाल ठाकरे ने कहा कि हमें क्रिकेट के मैदान में आपके छक्के-चौक्के पसंद हैं, लेकिन आप अपनी जुबान का इस्तेमाल न करें। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
बहरहाल, शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे हमारे बीच नहीं रहे। यहां यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि बाला साहेब के निधन के साथ भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया। वाकई धर्म की राजनीति और क्षेत्रवाद की राजनीति को भारतीय राजनीति में गहरी पैठ बनाने के लिए बाला साहेब को हमेशा याद किया जाएगा। लेकिन इस सबके बीच अब बड़ा सवाल यह सुलगने लगा है कि बाला साहेब ठाकरे के ना होने के बीच मराठी मानुष का अस्मिता, शिवसेना का भविष्य और हिंदुत्व का राजनीति की हैसियत क्या होगी?
First Published: Saturday, November 17, 2012, 18:47