मुलायम का वार, संशय में यूपीए

मुलायम का वार, संशय में यूपीए

मुलायम का वार, संशय में यूपीए बिमल कुमार

देश में मौजूदा राजनीतिक हालात के बीच यूपीए सरकार के समक्ष खासा मुश्किलें पैदा हो गई हैं। कुछ माह पहले तृणमूल कांग्रेस का गठबंधन से अलग होना और डीएमके के साथ छोड़ देने से सरकार अल्‍पमत में आ चुकी है। यह अलग बात है कि संख्‍याबल के लिहाज से उसे चुनौती नहीं मिल रही है। इसका जगजाहिर कारण यह है कि उसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की संजीवनी मिल रही है। हालांकि ये दोनों दल सरकार में शामिल नहीं है पर अपने निहित स्‍वार्थों की वजह से ये दोनों दल बाहर से समर्थन दे रहे हैं। यह भी छुपा नहीं है कि समय-समय पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव इसके एवज में राजनीतिक लाभ बटोरते रहे हैं।

डीएमके के समर्थन वापसी के बाद सियासी हालात काफी बदल चुके हैं। मुश्किल में घिरी यूपीए लिए अब सपा सबसे बड़ी बैसाखी है। हो सकता है कि बेनी को मंत्री पद से हटाने के लिए दबाव बनाकर सपा कीमत वसूलने में जुट गई हो। यदि बेनी को मंत्रिमंडल से हटाया जाता है तो इसमें हैरत नहीं होगी, यदि नहीं भी हटाया जाता है तो इसमें भी कोई आश्‍चर्य नहीं होगा। यदि बाद में मुलायम इस मसले पर नरम पड़ भी गए तो यह भी हैरत का विषय नहीं होगा।

यूपीए गठबंधन से अब डीएमके के अलग होने के बाद सपा का कद और बढ़ गया है। जाहिर है कि जब कोई दल सरकार के लिए `जान और प्राण` बन जाएगा तो उसकी अहममियत बढ़ेगी ही।एक समय ऐसा भी था जब दस जनपथ के दरवाजे मुलायम सिंह यादव के लिए बंद हो गए थे। पर राजनीतिक फिजा में चीजों ने कुछ ऐसी करवट ली कि कांग्रेस को एक बार फिर मुलायम की जरूरत पड़ ही गई।

बीते दिनों द्रमुक के समर्थन वापस लेने के बाद समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने को लेकर केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के इस्तीफे की सख्‍त मांग कर डाली। हालात यहां तक पहुंच गए कि इस मसले पर संसद में हंगामे के बाद खुद कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी लोकसभा में मुलायम से जाकर मिलीं और उनसे बेनी के इस्‍तीफे की जिद को छोड़ने का आग्रह किया। संभवत: मुलायम के मन में कुछ और ही था और मिन्‍नतों के बावजूद वे सख्‍त बने रहे। जाहिर है ऐसे में यूपीए के लिए सशंकित होना तय था। बेनी के बयान पर उठे विवाद के बाद मुलायम के सख्‍त तेवर में हो सकता है कि कुछ नरमी आ जाएगी पर यह उतना आसान नजर नहीं आता। चूंकि मझधार में फंसी सरकार के लिए फिलहाल कोई दूसरा विकल्‍प नहीं है और हो सकता है कि इसके लिए `समझौते` करने पड़े। तब कहीं जाकर मुलायम के तेवर में कुछ नरमी आए। पर बेनी मसला सरकार के लिए गले की फांस तो बन ही गया और मुलायम को मौका मिल गया।

आपको बता दें कि बेनी ने यूपी के गोंडा में एक जनसभा को संबोधित करते समय मुलायम को गुंडा और लुटेरा बताया था। साथ ही यह भी कहा था कि मुलायम के आतंकियों से रिश्ते हैं और सरकार को समर्थन के बदले मुलायम कमिशन लेते हैं।

जिक्र योग्‍य है कि मामले के तूल पकड़ने के बाद कांग्रेस की ओर से बेनी प्रसाद वर्मा पर दबाव बढ़ा और उन्‍होंने अपने बयान को लेकर माफी नहीं बल्कि खेद जताया। खेद जताए जाने से मुलायम संतुष्ट नजर नहीं आए। ऐसा प्रतीत होता है कि बेनी के शब्‍दों के बाण मुलायम को इतने चुभे कि उन्‍होंने मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से भी इसकी चर्चा की। एक समय तो लगने लगा कि सपा मुखिया बेनी को मंत्रिमंडल से हटाकर ही दम लेंगे। काफी समय बाद ऐसा मौका आया, जब सपा देख रही है कि सरकार उनके समर्थन पर ही टिकी है। ऐसे में वो दबाव बढ़ाकर कांग्रेस नेतृत्व से बेनी को हटाने की अपनी मांग पूरी करवा सकती है।

हालांकि अभी तक तो बेनी प्रसाद ने कुर्सी नहीं छोड़ी है। यदि वे कुर्सी पर बने भी रहते हैं तो उसकी चाभी मुलायम के हाथ में ही रहेगी। इस बात की भी अटकलें हैं कि बेनी का बयान एक अलग मुद्दा हो सकता है और मुलायम इसकी आड़ में दबाव बढ़ाकर कुछ और हासिल करें। इसी दबाव की रणनीति के तहत उन्‍होंने आनन फानन में एनसीसी के अध्‍यक्ष शरद पवार से भी मुलाकात की। ऐसे में लाजिमी है कि राजनीतिक जोड़तोड़ की अटकलें तेज होंगी। कुछ तो इसे मध्यावधि चुनाव से जोड़कर भी देखने लगे। दोनों वरिष्‍ठ ऐसे समय में मिले, जब समाजवादी पार्टी बेनी के इस्तीफे की मांग पर अड़ी है और डीएमके ने यूपीए के साथ फिर से मेलमिलाप की संभावना से साफ इनकार कर दिया।

मुलायम को गुंडा और कमीशनखोर बेनी ने कांग्रेस के लिए मुश्किल हालात पैदा कर दी। मामला तूल पकड़ते देखकर कांग्रेस तुरंत चेती और बेनी के बयान से पल्‍ला झाड़ लिया। बेनी की बर्खास्तगी से सरकार को भी झटका लग सकता है और इससे यह संदेश जाएगा कि सरकार पूरी तरह लाचार हो गई है। वहीं, बदले सियासी हालात में सपा को ऐसा लग रहा है कि वह बेनी की बलि लेकर अपना हिसाब चुकता कर सकती है।

First Published: Thursday, March 21, 2013, 13:49

comments powered by Disqus