मुस्लिम टोपी से ऐतराज़ क्यों? - Zee News हिंदी

मुस्लिम टोपी से ऐतराज़ क्यों?



प्रवीण कुमार

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिनों के उपवास को लेकर कुछ बड़े सवाल उठ खड़े हुए हैं.  पहला सवाल ये कि क्या मोदी अब नरम हिंदुत्ववादी की छवि बना रहे हैं? और दूसरा सवाल ये कि क्या मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार करना उनकी निजी पसंद-नापसंद का मामला है या फिर उनका बर्ताव 'सर्व-धर्म-सम्भाव' की भावना के खिलाफ माना जाए?

मुद्दा-1 : गुजरात में गोधरा के बाद हुए दंगों के पीड़ितों ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिनों के उपवास को राजनीतिक तमाशा बताते हुए मोदी को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया, 'जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता कोई सद्भावना नहीं हो सकती. हम लोग ताक़तवर राजनीतिक दलों के शिकार हैं जिनकी ताक़त इसी बात में है कि हम विभाजित रहें. वोट की राजनीति करने वालों को परास्त करके जब तक हम एकजुट नहीं होंगे सद्भावना क़ायम नहीं हो सकती. आप अगर इतने ही बड़े मुख्यमंत्री हैं जिसका आप दावा करते हैं तो साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए 58 लोगों की जान आपने क्यों नहीं बचाई.’

मुद्दा-2 : मोदी के उपवास के दौरान सभी धर्मों के नेताओं को बुलाया गया था और उनसे स्टेज पर मिलने कुछ मुस्लिम नेता भी गए. मुस्लिम धर्मगुरु सैय्यद इमाम शाही सैय्यद ने गुजरात के मुख्यमंत्री को एक टोपी भेंट की थी, लेकिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस टोपी को लेने से मना कर दिया. हालांकि, मोदी ने मुस्लिम धर्म गुरु की तरफ से दी गई शॉल को स्वीकार किया. सैय्यद ने कहा, 'मुझे इससे बहुत दुख हुआ है. वह हर समुदाय की टोपी और पगड़ी पहन रहे हैं, लेकिन उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर दिया.' वाकई मोदी तीन दिनों के उपवास में हर समुदाय की तरफ से भेंट की गई अलग-अलग टोपियों में देखे गए.

मुद्दा-3 : उपवास तोड़ने के बाद मंच से नरेंद्र मोदी के भाषण का छोटे से अंश का यहां उल्लेख  करना ज़रूरी होगा. मोदी के शब्दों पर गौर करिये, 'कुछ साल पहले भारत सरकार ने जस्टिस सच्चर कमेटी का गठन किया था अल्पसंख्यकों के विकास का अध्ययन करने के लिए. जस्टिस सच्चर कमेटी की टीम ने गुजरात आकर भी अध्ययन किया. जस्टिस सच्चर की पूरी टीम की मेरे साथ एक मीटिंग हुई. उन्होंने मुझसे पूछा कि आप अपने राज्य में अल्पसंख्यकों के लिए क्या करते हैं. मैंने उनसे कहा कि मेरी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए कुछ भी नहीं करती है. वो चौंक गए. ऐसा बेबाक उत्तर कोई दे सकता है. मैंने साफ-साफ कहा, मेरी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए कुछ नहीं करती. मैंने कहा, एक और वाक्य लिख लीजिए. मेरी सरकार बहुसंख्यकों के लिए भी कुछ नहीं करती. मेरी सरकार 6 करोड़ गुजरातियों के लिए काम करती है. यहां कोई भेदभाव नहीं है. हर चीज को माइनॉरिटी-मैजोरिटी के तराजू पर तोलना. आए दिन वोट बैंक कि राजनीति करना. ये रास्ता मेरा नहीं है. मेरे राज्य के सभी नागरिक मेरे हैं. उनका दुख मेरा दुख है.

मुद्दा-4 : एक जून 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने गुजरात की सांप्रदायिक स्थिति को लेकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर अपनी चिंता से अवगत कराया था. माना जाता है कि वह मुख्‍यमंत्रियों के साथ कम ही पत्राचार किया करते थे, लेकिन उन्‍हें गुजरात के हालात को लेकर दखल देने की जरूरत महसूस हुई और उन्‍होंने मोदी के नाम चिट्ठी लिखी. आरटीआई के जरिए सामने आई यह चिट्ठी गोधरा कांड के तीन महीने बाद की लिखी हुई है. चिट्ठी में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री ने मोदी को यह आभास दिलाया कि दंगा पीडितों को पहुंचे नुकसान को काफी कम कर आंका गया है. उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री को यहां तक भरोसा दिलाया था कि जरूरत पड़ी तो राज्‍य सरकार को अतिरिक्‍त खर्च से निपटने के लिए केंद्र धन भी मुहैया कराएगा. वाजपेयी ने यह  भी लिखा था- मुझे जानकारी मिली है कि ज्‍यादातर मामलों में मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा नहीं मिल सका है, क्‍योंकि उनके शव की पहचान नहीं हुई है. लापता व्‍यक्तियों को लेकर आए आवेदन निपटाने में होने वाली देरी की ओर भी वाजपेयी ने मोदी का ध्‍यान आकृष्‍ट कराया था. यह चिट्ठी लिखने से दो महीने पहले वाजपेयी ने मोदी को 'राजधर्म' का पालन करने की सलाह भी दी थी. इसमें उन्‍होंने कहा कि मुख्‍यमंत्री को जाति, पंथ, धर्म, संप्रदाय के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना राजधर्म निभाते रहना चाहिए.

उक्त चार मुद्दों पर गौर करें तो शायद कुछ कहने की जरूरत नहीं रह जाती है. लेकिन इन्हीं चार मुद्दों से इस लेख के शुरू में किए गए कुछ सवालों का जवाब जरूर मिल जा रहा है. अगर मोदी नरम हिंदुत्ववादी की छवि के रूप में खुद को पेश करना चाह रहे हैं तो फिर क्या मुस्लिम और क्या हिंदू. दोनों की टोपियों में दूरियां क्यों? जहां तक मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार करना उनकी निजी पसंद-नापसंद का मामला है तो मोदी को इस बात का इल्म होना चाहिए कि आप एक ऐसी कुर्सी पर बैठे हैं जहां इस तरह की निजी पसंद या नापसंद नहीं चलती. इस कुर्सी से आपको आपके ही नेता अटल विहारी वाजपेयी के कहे अनुसार, राजधर्म निभाना होता है. अंत में 'सर्व-धर्म-सम्भाव' की बात करें तो निश्चित रूप से मोदी के सभी धर्मों की टोपी पहनने के बाद मुस्लिम टोपी पहनने से मना करना 'सर्व-धर्म-सम्भाव' की भावना के बिल्कुल उलट है. मोदी जी, जो इमाम साहब आपको टोपी भेंट करना चाह रहे थे वो भी आपके 6 करोड़ गुजरातियों में से एक थे. आपने ही तो सच्चर कमेटी से कहा था कि मेरे राज्य के सभी नागरिक मेरे हैं. यहां कोई भेदभाव नहीं है. हर चीज को माइनॉरिटी-मैजोरिटी के तराजू पर तोलना, आए दिन वोट बैंक कि राजनीति करना, ये रास्ता मेरा नहीं है.

First Published: Wednesday, September 21, 2011, 12:05

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