मूल्यों और मुद्दों से भटक गए हैं सियासी दल : गोविंदाचार्य

मूल्यों और मुद्दों से भटक गए हैं सियासी दल : गोविंदाचार्य

मूल्यों और मुद्दों से भटक गए हैं सियासी दल : गोविंदाचार्यभारतीय जनता पार्टी के पूर्व महासचिव और प्रसिद्ध विचारक के.एन. गोविंदाचार्य देश के बड़े थिंक टैंकों में गिने जाते हैं। उनसे मौजूदा राजनीति के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानने की कोशिश की ज़ी रीजनल चैनल्स (हिंदी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने अपने खास कार्यक्रम ‘सियासत की बात’में। पेश हैं उसके मुख्य अंश:-

वासिंद्र मिश्र: आज हमारे साथ हैं बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव गोविंदाचार्य। इस समय जो देश की राजनीति है, राजनीति की जो दशा एवं दिशा है और वैचारिक प्रतिबद्धता से जो राजनैतिक दल भटक रहे हैं, इस पूरे परिदृश्य को आप कैसे देख रहे हैं। अब उनके जीवन का दर्शन क्या है, किस रास्त पर वो चलना चाहते हैं और उनकी तरह के सोच वाले लोग जो उनके साथ जुड़े हैं, उनकी पूरी स्ट्रेटजी क्या है। भारतीय जनता पार्टी और उसके पहले जनसंघ और उसके पहले आसएसएस हम लोग पढ़ते थे, जब हम लोग पत्रकारिता में आए तब और 10-20 साल जो पत्रकारिता में गुजरा है, आपकी जो छवि रही है हम लोगों की दिलो-दिमाग में, वह एक निष्ठावान अनुशासित वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध समाजसेवी की रही है। आपको क्या लगता है, कहां चूक हो गई कि आपको उन संगठनों से विदा होना पड़ा, अलग होना पड़ा या हम समान्य बोलचाल की भाषा में कहें तो जिसे आपने खून-पसीने से सींचा था, उससे आपको दूर होना पड़ा।
गोविंदाचार्य: अपना लक्ष्य निश्चित है। दो बातें निश्चित हैं-हमारे देश की बुनियादी जरूरतें पूरी हों जो विकास में सबसे पीछे हो उसका सबसे पहले हक बने। दूसरा, हमारा देश दुनिया का सिरमौर बने, मैं संघ का स्वयंसेवक बना इसीलिए संघ द्वारा निर्देशित समय-समय पर जो जिम्मेदिरियां थीं उसका भी मैंने निर्वाह किया, उसी के तहत बीजेपी का भी 12 वर्षों तक अखिल भारतीय महामंत्री के रूप में काम करता रहा, मुझे ऐसे लगा कि एक स्वयंसेवक के नाते प्रतिबद्धता का तकाजा है अगर हम व्यक्ति से बड़ा दल, दल से बड़ा देश सोचते हैं तो हम उस पर व्यवहार करें क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि सभी राजनैतिक दल उसमें बीजेपी भी शामिल है मूल्यों और मुद्दों से कट गए हैं, सत्ता से जुड़ गए हैं। जनता की तरफ पीठ हो गई है। अंतिम आदमी को लोगों ने हाशिए पर रख दिया है। राजनैतिक दल के दायरे के बाहर भी हमें कुछ करना पड़ेगा और उसके पश्चात मूल्यों और मुद्दों की राजनीति को वापस पटरी पर लाना पडे़गा। ऐसा मुझे लगा तो स्वाभाविक था जिन्होंने मुझे बीजेपी का काम करने को कहा था। संघ के अधिकारियों के पास गया, उनको मैंने कहा कि 3 दिसंबर 1965 से लेकर आजतक 15 जनवरी 2003 तक जो तय हुआ मैंने किया है, अब मैं चाहता हूं कि इन दायरों से बाहर और भी लोगों को शामिल करते हुए देश की एक बड़ी धारा बनाई जा सके बदलाव की। इसके लिए मैं अलग होकर कुछ काम करना चाहता हूं। हां, स्वयं सेवक हूं, सद्भाव कायम है, संवाद जारी रहेगा लेकिन निर्णय और परिणाम की जानकारी मेरे ऊपर होगी। इस बातचीत के बाद मुझे लगा बैद्धिक रचनात्मक, आंदोलनात्मक तीनों तरह से काम को संगठित करने की कोशिश करता रहा। हमें ये समाधान है कि 2003 से 2013 जनवरी तक 10 साल में हमे बौद्धिक, रचनात्मक, आंदोलनात्मक संगठनों को एक हद तक पहुंचा दिया है। काम की जिम्मेदारी भी दूसरों को हैंडओवर कर दी, उनमें से कुछ लोग हमसे भी अच्छे हैं जो कार्यों का निर्वाह कर रहे हैं, उसके बाद मैं अब जुटा हूं। अब 13 जनवरी से राजनीति को मूल्यों और मुद्दों की पटरी पर वापस लाना है केवल सत्ता प्राप्ति और सत्ता लाभ के अनैतिक बंटवारे का खेल नहीं बनने देना है। राजनैतिक दल गिरोह से बन गए हैं। सत्ता प्राप्ति, सत्ता सुख के अलावा जनता के प्रति संवेदनशीलता भी नहीं बची है, इंसान को केवल वोटर मान रहे हैं तो उनके बारे में कुछ बातें खड़ी करनी पड़ेगी और बड़ी लाइन भी खींचनी पड़ेगी।

वासिंद्र मिश्र: राजनैतिक दल जो दावा नहीं करते हैं आदर्श आधारित, मूल्य आधरित राजनीति करते हैं, ऐसे राजनैतिक दल इनका कोई उसूल नहीं है, वो अपने आप में सेलफिश टाइप राजनैतिक दल हैं, अपनी जरूरतों के हिसाब से चाल-चरित्र और चेहरा बदलते हैं लेकिन पहले जनसंघ और अब बीजेपी इसके बारे में आम राय है और निर्वाध सत्य है कि संघ के मार्गदर्शन में चलती संघ का एक राजनीतिक संगठन है। भारतीय जनता पार्टी का जो संगठन मंत्री होता है वो संघ के तरफ से भेजा जाता है, आपको भी वहीं से भेजा गया था और कहा जाता है कि जब संघ उस मंत्री के आंख-कान से पूरे कामकाज को देखता है, आज भारतीय जनता पार्टी में जो विकृति आ रही है, अगर भारतीय जनता पार्टी अपने सिद्धांतों से चल रही है तो इसके लिए आप को नहीं लगता है कि संघ ही इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है या संघ की कार्यशैली में विचारधारा में प्रतिबद्धता में कमी आ रही है।
गोविंदाचार्य: मैं इसको ऐसे देखता हूं कि संघ एक स्कूल है संस्कार देने का, उसमें कुछ फर्स्ट डिवीडन पास होंगे कुछ सेकेंड डिवीजन पास होगे, जहां तक मैं देखता आ रहा हूं सम्पूर्ण राजनैतिक दलों में समस्या आ गई है, केवल जनसंघ ही नहीं आज मैं कल्पना करता हूं कि महात्मा गांधी कांग्रेस के बारे में क्या सोच रहे होंगे, डॉक्टर लोहिया इन समाजवादियों के बारे में क्या सोच रहे होंगे। अंबेडकर जी क्या बीएसपी का यही चित्र देना चाहते होंगे। क्या दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ भाजपा के यही छवि देखने के लिए होंगे, वो कहीं ना कहीं कोस रहे होंगे, सोच रहे होंगे क्या हो रहा है ये आप ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात कही मुझे अच्छी तरह से याद है कि 1997-98-99 के दौर में भी जब ये आदर्शवाद के शरण की बाबत बात हो रही थी तो संघ के आधिकारियों ने भी मुझे यही कहा-‘It is collective failure’ हम भी ये बात नहीं समझ पाए, ये हमारी भी कमी है ये उन्होंने स्वीकार किया। अब इसके बाद क्या होना, मुझे जो लगा जनसंघ का महासचिव रहते हुए मुख्य आग्रह पार्टी भेदवाद और आदर्शवाद सिस्टम में कैसे आए उसके लिए विरार में एक बैठक की गई 97 में 40 सिफारिशें आईं। एक साल गुजर गया उस कमेटी की रिपोर्ट कार्यसमिति में नहीं रखी जा सकी। 98 में सत्ता में आ गए, मैंने फिर कहा-जो ठाकरे जी अध्यक्ष बन गए थे, आप तो संगठन के आदमी हैं कुशाभाउ जी, आप इसे लागू करा दीजिए तो वो भी बात ऐसी ही रह गई तब मुझे लगा धैर्यवाद और आर्दशवाद या यू कहें एकागत दर्शन पर प्रतिष्ठित कार्य पर आधिरित स्वरूप प्राप्त करने की इच्छा शक्ति खत्म हो गई।

वासिंद्र मिश्र: जो आपकी भावनात्मक मजबूरी है, उसको मैं ज्यादा ठेस नहीं पहुंचाना चाहता हूं, मुझे पता है कि निजी और वैचारिक तकलीफों को देखते हुए आप मुखर नहीं बोलना चाहेंगे। बावजूद मैं उसे फिर दोहराना चाहूंगा कि गांधी, लोहिया, दीनदयाल जी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन संघ जब सीना ठोक के कहता है कि जो फैसले ले लिए गए हैं, गोवा में वो वापस नहीं लिए जाएंगे। आप अपना त्यागपत्र वापस लीजिए, तब आप से हम बात करेंगे। संघ जब सीना
ठोक के कहता है कि भाजपा हमारा राजनीतिक संगठन है लेकिन जब जवाबदेही की बात आती है तो वही संघ कहता है कि हम बीजेपी के आंतरिक मामलों पर कुछ नहीं कहेंगे। संघ की जो मर्यादा थी, जो संघ का सम्मान था वो इसलिए था कि संघ की कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं था।
गोविंदाचार्य: संघ, भाजपा और अन्य संगठनों की संबंधों की व्याकरण की और गति शास्त्र एवं डाइनेमिक्स को समझना होगा। दो बातों पर समन्वय निर्भर करता है-एक कुछ विषयों में स्वलंबन उन संगठनों के द्वारा हो और समन्वय का दूसरा है पारस्परिक सहयोग देश हित के बारे में पारस्परिक सहयोग। तीन बातों के संगठन स्वलंबी हो ये आग्रह होना चाहिए। रहता है ये मोटे तौर पर एक नीति निर्धारण और निर्णय प्रक्रिया, दो उस संगठन की आर्थिक व्यवस्था, तीन इस संगठन में कौन किस पद पर है, मैं ऐसा मानता हूं कि पिछले वर्षों में एक-दो बार चूक हुई है, जैसे एक बार ये कहा जाना कि कोई भी पार्टी अध्यक्ष दिल्ली का नहीं होगा, दिल्ली के चार लोगों में से नहीं होगा, ये लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण होगा, इसमें समन्वय का मतलब नियत्रंण नहीं है। समन्वय का मतलब सदाचार भी नहीं है, ये एक संतुलन है, कई बार मनुष्य से गलतियां होती हैं और सतुंलन कहीं ना कहीं बिगड़ जाता है,फिर उसे ठीक करने की कोशिश होती है। उसी को ठीक करने के क्रम में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन हो, ये संघ तय नहीं करेगा, ये तो उस संगठन का काम है, भाजपा वाले जो अपने संसदीय बोर्ड में करना चाहें करें, यही कार्यनीति ठीक रहेगी, इसमें असंतुलन आने पर सबको नुकसान होगा ऐसा अनुभव बताता है। इसलिए संघ के बारे में भी लोग सवाल उठाने लगे हैं, कई बार जब मैं पत्रिका में पढ़ता हूं-जैसे 10 जनपथ कांग्रेस का स्थान है, वैसे सविंधान से अलग स्थान नागपुर है, ऐसा कहा जाने लगा है तो संघ के लोगों को ऐसी बातों से बचना चाहिए और ज्यादा आत्मसंयम की आवश्यकता है, ऐसा मैं अनुभव करता हूं।

वासिंद्र मिश्र: एक और सवाल संघ से जुडा हुआ है, आपको नहीं लगता है कि संघ भी देशहित, समाज हित के बजाय सत्ता के प्रति ज्यादा सोचने लगा है। सत्ता पहले आए फिर बाकी चीजें पर विचार हो।
गोविंदाचार्य: कुछ कारणों से ऐसा प्रभाव बन रहा है लेकिन वास्तविकता ये नहीं है, संघ के हजारों सेवा कार्य अभी भी समाज के साथ समरस होकर काम कर रहे हैं लेकिन राजनीति का क्षेत्र छवियुद्ध का क्षेत्र है और इस वजह से भारतीय जनता पार्टी का संघ से और दूरी रखना वक्त की जरूरत है। आज के सारे वातवरण में, मैं समझता हूं कि इसपर और ज्यादा संयम, संतुलन दूरी बनाए रखना सबके हित में होगा, नहीं तो यह प्रभाव बना रहेगा वो ठीक नहीं है।मूल्यों और मुद्दों से भटक गए हैं सियासी दल : गोविंदाचार्य

वासिंद्र मिश्र: संघ और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों के बारे में अब हम आप से ये जानना चाह रहे हैं, जो आपकी अगली यात्रा है या जो भावी कार्ययोजना है उसमें किस तरह के लोग आप से जुड़ रहे हैं। अभी जो पोस्टर आप के बगल में लगा है, इसमें आरिफ मोहम्मद खां साहब हैं, तमाम जो युवा पीढ़ी है, उनकों शायद पता नहीं होगा आरिफ साहब का बैकग्रांउड क्या है। कांग्रेस के बाद बहुजन समाज पार्टी, इस तरह के लोगों को साथ लेकर क्या आप को लगता है कि आप अपने लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे?
गोविंदाचार्य: इसमें मैं एक छोटे सुधार की बात कहूंगा कि नए-नए प्रयोग की सबको स्वत्रंतता है लेकिन प्रेरणा क्या है सत्ता प्राप्ति, सत्ता सुख, सत्ता लाभ। मैं मानता हूं कि मो. आरिफ के साथ ये आरोप नहीं जोड़ा जा सकता, जब वे सत्ता में थे तो सिद्धांतों के लिए सत्ता छोड़ा था मो. आरिफ खान ने। सबको मालूम है शाहबानो केस और खास तौर पर अल्पसंख्यक लोगों में नवजवानों को तो मालूम ही है, अब जो उनका अनुभव है कि मुस्लिम समाज के लोग खास तौर पर लड़के-लड़कियां विभाजन की खुमारी से मुक्त होकर आगे के कदम के बारे में सोच रहे हैं। मैं मानता हूं कि आरिफ साहब नई पीढ़ी के युवाओं के साथ जुड़े हुए हैं।

वासिंद्र मिश्र: आरिफ साहब का ससुराल कानपुर में है जिस परिवार में उनका ससुराल है वो कानपुर का माना जाता है कि समुदाय की राजनीति करने वाले कुछ मौलवियों में हुआ करते थे, जो उनके ससुर साहब हैं, उनके बाकी रिश्तेदार हैं, कुछ एनजीओ में शामिल हैं, एनजीओ चलाते हैं, कुछ आपके अरविंद केजरीवाल साहब के साथ जुड़े हैं, उन्ही में से एक व्यक्ति आरिफ साहब आप के साथ जुड़े हैं। आरिफ साहब को केस स्टडी मानते हुए ऐसे तमाम चेहरे दिखेंगे जब आप आंदोलन आगे बढ़ाएंगे, जिस तरह अन्ना हजारे के साथ तमाम ऐसे लोग जुड़ गए जिनका अपना व्यक्तिगत हित था। अन्ना हजारे की छवि अपने-अपने ढंग से भुनाने की कोशिश की गई। आप की इतनी लंबी तपस्या है उसकी मार्केटिंग ना कर ले इसके लिए आप क्या सावधानी बरतेंगे।
गोविंदाचार्य: मुझे अच्छी तरह से याद है-हमने आदरणीय जयप्रकाश जी को बिहार में सीपीएम के लोगों को आंदोलन में शामिल होने का आग्रह किया था, मेरे कहने पर जेपी ने सत्यनारायण जी से बात भी की थी, उस समय भी बात उठी थी वो तो अति वामपंथी हैं, जेपी से बात हुई, हम संघ के थे, हमको कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि आंदोलन की आंच और गरम होगी, त्यों-त्यों जो असली नहीं होंगे पिघल जाएंगे न, यही जेपी ने बात सत्यनरायण जी से कही। जब सत्यनारायण जी ने कहा था कि आप आरएसएस वालों को हटाएं तब हम शामिल होंगे। जेपी ने ये कहा कि वो लोग हमसे पहले से आंदोलन में हैं-तुम चलो साथ। आंदोलन के मुद्दों के साथ जो इमानदारी नहीं बरतेगा वो स्वयं किनारे हो जाएगा और मैं जहां तक जानता हूं आरिफ साहब को एक सच्चे इस्लामिक स्कॉलर के नाते देखा और दुनिया की सभी इस्लामिक हलचलों के बारे में एक निष्पक्ष, दृष्टिकोण अपनाते हुए देखा है, आगे जो नौजवान हैं उन्हें अपना भविष्य कैसे बनाना है इसके बारे में संवेदनशील देखा है, अब उनके बाकी परिवार पर मैं ज्यादा ध्यान नहीं देता हूं। एक रहीम का दोहा याद आता है। रहीम कैसे मिले ......। मुझे आपकी शुभकामना चाहिए ही, मुझे आत्म विश्वास भी है कि सब लोगों का उपयोग देश हित में होगा। सत्ता का लोभ होता तो लोग क्यों जुड़ते हमारे साथ, उनको और भी पार्टियों के ऑफर होते, सांसद-मंत्री बनने के अवसर ज्यादा थे, कहां हमारे साथ जुड़कर दरिद्र के साथ आगे बढ़ेंगे। इसलिए ये सिद्ध होता है कि मकसद, लक्ष्य, सिद्धांत ज्यादा आकर्षक उन्हें लगे न कि सत्ता।

वासिंद्र मिश्र: जो आपका आंदोलन शुरू होने जा रहा है, उसके बारे में तीन मुद्दे हमें पढ़ने को मिले हैं, इसका घोषणापत्र क्या होगा, उसके बारे में आप हमें विस्तार में बताएंगे?
गोविंदाचार्य: जैसा कि आप जानते ही हैं-सभी प्रमुख राजनैतिक दल एक जैसे लग रहे हैं, रावण की लंका में सब 52 गज के लग रहे हैं, दो मूल्यों से कट गए हैं, जनता से कट गए हैं, सत्ता से जुड़े हैं और सामाजिक परिवर्तन का जरिया बनने के बजाय सत्ता प्राप्ति, सत्ता लाभ के चक्कर में पड़ गए हैं, सभी राजनैतिक दल दुर्भाग्य से विदेश परस्त और अमीर परस्त नीतियां बना रहे हैं। गरीबों की पूछ नहीं रही, उनके मुद्दे तो गौण हो गए हैं। कॉरपोरेट सेक्टर हावी हो गया, कार्य पद्धति की दृष्टि से देखिएगा तो सभी प्रमुख राजनैतिक दल आंतरिक संघर्ष और दोहरेपन के शिकार हैं। वे अवसरवादी नीतियां अपना रहे हैं। सत्ता में कुछ और विपक्ष में कुछ और बोलते हैं, सत्ता में जहां है वहां नीतियां भिन्न हैं, विपक्ष में हैं तो उन्हीं मुद्दों पर हल्ला मचा रहे हैं, ये दोहरापन है सभी राजनैतिक पार्टियों की कार्यशैली में। साजिश और तिकड़म हावी हो गए हैं, ऐसी स्थिति में देश में राजनैतिक क्षितिज पर शून्यता है। भारत परस्त, गरीब परस्त नीतियां और पारदर्शी जवाबदेह कार्यशैली एवं कुछ नैतिक आचरण के मूल्य अपनाकर नए प्रयोग हों, नए लोग हों। हमने कोशिश की कि अच्छे लोग मिले हैं। एक-एक जिले, दो-दो जिले कुछ लोग चार प्रदेशों में काम करने वाले मिल गए और सबकी वही टीस है कि मैं छोटा हूं कैसे कर पाऊंगा। ये भी सोचता हूं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरेगा। सब मिलकर सोचे, सबकी ईमानदारी है। अंतिम व्यक्ति के बारे में प्रतिबद्धता है, बाकी छोटे-मोटे मदभेद वो तो हल हो जाएंगे, लक्ष्य बड़ा हो तो आदमी अपनी कमजोरियों को हावी नहीं होने देता, लक्ष्य छोटा हो तो मन इधर-उधर भटकता है। जैसे लोक सत्ता पार्टी के जयप्रकाश नारायण हैं। नए प्रयोगधर्मी ही हैं। पीवी राजगोपाल उनकी तपस्या को तो कई इनकार नहीं कर सकता है। उनको कुछ लोग मानते है कि गांधीवादी हैं। कुछ लोग मानते हैं नक्सली हैं। वो तो उन अंतिम आदीवासी हितों के बारे में ही सोचते हैं न तो निस्वार्थ वाले जिस रूप में देखें। ‘जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन जैसी’

वासिंद्र मिश्र: जब आप सक्रिय राजनीति में थे तो आप के साथ सैकड़ों हजारों की संख्या में लोग जुड़े हुए थे, जो आज की तारीख में आज भी भारतीय जनता पार्टी में हैं, कुछ छोड़कर चले गए है। ऐसे लोग जो आपके करीबी रहे, आपके मानस मित्र भी रहे, क्या ऐसी संभावना है कि ऐसे लोगों को साथ जोड़कर काम करने की।
गोविंदाचार्य: मुझे इतना पता है कि मैं अपने रास्ते चलूंगा और न किसी के प्रति मेरी प्रतिबद्धता है, न ही प्रतिस्पर्धा है जो इस काम में सहयोग करे उतना अच्छा है। कोई सोचता है कि बीजेपी के अंदर से सुधार ला पाएंगा। ‘वेल एंड गुड’ काम में कोई हर्ज नहीं है। काम करके देखिए मेरा अपना आकलन है, मेरा अपना निष्कर्ष है, आप अगर ईमानदारी से कहीं भी काम करें, नाम, यश, पद, पैसा और प्रतिष्ठा आप को विचलित ना करे आप पर हावी ना हो, जैसे लोहिया ने एक बहुत अच्छी बात कही थी कि जो सच है-वो जोर से बोले और जो जहां है वो वहीं से बोले। आज का वक्त का तकाजा यही है, दोनों चीजें जरूरी हैं जो जहां है वहीं से बोले। पार्टियों में है तो व्हिप की परवाह न करे, करियर की परवाह न करे, चापलूसी करने से पद मिलने वाला हो तो पद को ठुकराने की हिम्मत रखे। वहां भी वो आदर्श स्थापित करे क्या हर्ज है,हम थोड़े ही कह रहे हैं कि हमारे साथ ही रहो। सभी पार्टी में अच्छे लोग हैं, अच्छे लोग सक्रिय हों, अच्छे लोग आग्रहि हों, अच्छे लोग जोखिम लें, मैं उनके प्रति वैसा ही आदर का भाव रखूंगा, कहीं भी हों, मैं मानता हूं कि सभी पार्टियों में अच्छे लोग हैं।

वासिंद्र मिश्र: इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां देने के लिए गोविंदाचार्य जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

First Published: Sunday, July 21, 2013, 18:07

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