Last Updated: Thursday, December 27, 2012, 08:51
बिमल कुमार भाजपा के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में ने केवल खुद रिकार्ड वोटों से जीत हालिस की बल्कि उनकी पार्टी बीजेपी भी राज्य की सत्ता में हैट्रिक लगाने में कामयाब रही। केवल अपने दम पर तीसरी बार लगातार भाजपा को गुजरात की सत्ता में लाने वाले नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रधानमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है और मोदी ने यह साबित भी कर दिया कि आप उन्हें पसंद करें या नापंसद, पर उनकी अनदेखी नहीं कर सकते।
182 सीटों वाली विधानसभा में 115 सीटों पर मोदी की इस दमदार जीत से अब देश के राजनीतिक पटल पर कई अहम चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। इसमें सबसे अहम है प्रधानमंत्री पद की रेस। बीते काफी समय से मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी को काफी बल मिला है। और अब जबकि गुजरात में बीजेपी हैट्रिक लगा चुके हैं, ऐसे में मोदी की इस पद के लिए उम्मीदवारी को अनदेखा करना किसी के लिए आसान नहीं होगा। चाहे उनकी पार्टी बीजेपी ही क्यों न हो। गुजरात में भारी जीत ने मोदी के लिए दिल्ली कूच करने की पटकथा अभी ही तैयार कर दी है।
इसे मोदी का जादू कह ले या कुछ और, कि तमाम विरोधाभासों के बावजूद जनता ने उन्हें अपने सिर-आंखों पर बिठाया। राजनीतिक विश्लेषकों को भी अब नए सिरे से सोचना होगा कि मोदी का ऐसा कौन सा जादू है जो लोगों के सिर चढ़कर फिर अपना प्रभाव छोड़ गया। मोदी की यह भारी भरकम जीत यह साबित करती है कि यह किसी पार्टी की जीत नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष केंद्रित जीत है। जिस तरह से गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के आला केंद्रीय नेताओं ने अपनी ताकत झोंकी, उससे ऐसा लगा कि यह कोई सीएम की कुर्सी के लिए नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव हो रहा है। मोदी बहुत हद तक चुनाव को यह मोड़ देने में कामयाब भी रहे। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के नाम की ब्रांडिंग ऐसी हुई कि वह राज्य नहीं बल्कि देश के शीर्ष राजनैतिक पद के लिए मैदान में हैं।
हालांकि मोदी और उनकी पार्टी की जीत पर पहले से ही कोई संशय नहीं था। अब जबकि नतीजे सामने आ चुके हें, इस बात पर मुहर लग गई है कि मोदी जैसा कोई नहीं। यह मोदी की शख्सियत ही है कि गुजरात चुनाव न सिर्फ देश बल्कि दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी। इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि मोदी इज गुजरात एंड गुजरात इज मोदी। कहने का तात्पर्य यह है कि आज के संदर्भ में नरेंद्र भाई मोदी गुजरात का पर्याय बन चुके हैं।
मोदी की दमदार जीत को तो विपक्षी भी स्वीकार कर रहे थे, पर चुनावी हलचल और राजनीतिक विवशता ने उनके मुंह को सील दिया था। आखिर वे मोदी का गुणगान करे तो कैसे? देश के राजनीतिक इतिहास में संभवत: यह पहला और खुद में अनोखा है कि मोदी की करिश्माई छवि ने महज एक सूबे के चुनाव को केंद्र बनाम राज्य बना दिया। इसे जनता की दूरदर्शिता ही कहेंगे कि मोदी के पक्ष में लगातार तीसरी बार जनादेश दिया गया।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मोदी ने जहां गुजरात चुनाव में हैट्रिक लगाई वहीं, उनकी पार्टी भाजपा पीएम पद की दावेदारी को लेकर अभी भी असमंजस में है। बीजेपी में यह रुख अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या वह अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। पार्टी के लिए मोदी की दावेदारी को नजरअंदाज करना अब खासा मुश्किल होगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि विकास और हिंदुत्व के मोर्चे पर मोदी का शौर्य बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही, पार्टी कार्यकताओं और समर्थकों की चाहत भी कई मौकों पर खुलकर सामने आ चुकी है कि मोदी को ही पीएम उम्मीदवार बनाया जाए।
मोदी हमेशा से भाजपा में एक अहम नेता रहे हैं। गुजरात में लगातार तीसरी जीत दिलाने वाले मोदी में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनने की सभी काबिलियत मौजूद है। मोदी न केवल राज्य में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने खिलाफ अनेक अभियानों के खिलाफ लड़ते रहे हैं।
गुजरात की बात करें तो विकास के पैमाने पर मोदी ने क्या किया यह किसी से छुपा नहीं है। चुनाव के मसले को सामने लाएं तो देश में जहां जाति के नाम पर इतना विभाजन है, वहां एक नेता पूरी जनता की आकांक्षाओं के अनुरुप पहचान बनाते हुए विजेता बनकर उभरा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर काम करने के बाद राजनीति में आए 62 वर्षीय मोदी ने गुजरात में विकास के नाम पर अपनी अलग छवि बनाई। हालांकि विवादों से भी उनका गहरा रिश्ता रहा है। 2002 में गोधराकांड के बाद भड़के गुजरात दंगों का दाग उन पर आज भी लगा है। यदि देश भर के दागदार नेताओं से उनकी तुलना करें तो मोदी के दामन पर केवल यह ही एक दाग लगा है और किसी की काबिलियत को महज एक दाग से अनदेखा करना प्रासंगिक नहीं होगा। उनके आलोचक कहते रहते हैं कि उन पर हमेशा गुजरात दंगों का धब्बा लगा रहेगा। इसी पर मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें दोषी पाया गया तो फांसी पर लटकने के लिए तैयार हैं।
संघ परिवार के हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहे जाने वाले मोदी पर राज्य में सांप्रदायिक आधार पर धुव्रीकरण के भी आरोप लगते रहे हैं, पर इसमें उतना दम इसलिए नहीं दिखता क्योंकि सांप्रदायिकता का चोला तो अन्य कई पार्टियां ने भी ओढ़ रखा है। फर्क इतना है कि वो खुले तौर पर जगजाहिर भी नहीं होता।
मोदी के विरोधी भी उन पर जमकर निशाना साधते हैं, लेकिन वे कभी इससे विचलित होते भी नहीं दिखे। हालांकि पार्टी और उसके बाहर उनके प्रशंसकों और समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है। मोदी के समर्थक उन्हें ‘हिंदू हृदय सम्राट’की उपाधि से भी नवाजते हैं।
वोटों की गिनती से पहले सभी सर्वेक्षणों में यह साफ हो गया था कि मोदी लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाएंगे। मोदी के शासन में ही बीजेपी के लिए गुजरात एक अभेद किला बन गया। मोदी के साथ उनके समर्थक भी जी-जान से जुटे रहे। चुनाव के दौरान मोदी ने राज्य की जनता पर विकास का ऐसा नशा चढ़ाया कि वे इसी में झूमते रहे और बीजेपी को सिरमौर बना बैठे।
गुजरात चुनाव जीतने के बाद क्या मोदी के लिए प्रधानमंत्री बनने का रास्ता आसानी से खुलेगा यह सबसे बड़ा सवाल है। इसमें कोई संशय नहीं है कि बीजेपी में मोदी का कद पहले से ही बड़ा था और अब इस जीत से उनका कद और बढ़ गया है।
First Published: Thursday, December 20, 2012, 17:59