Last Updated: Wednesday, November 30, 2011, 17:03
बिमल कुमार अमेरिका और यूरोजोन सहित दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में छाई अनिश्चितता का असर भारत पर भी दिखने लगा है। एक तरफ डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में गिरावट से शेयर बाजार और आयातकों पर दबाव बढ़ा, वहीं यूरोजोन संकट के बरकरार रहने से बाजार में चिंता का रुख कायम है।
सेंसेक्स में रह रहकर गिरावट यह बताती है कि लुढ़कते रुपये और विश्व अर्थव्यवस्था के खराब हालात के बीच हमें अपने यहां अभी बहुत कुछ करना है। पिछले तीन महीने में रुपये की कीमत 14 प्रतिशत गिरी और यह सेंसेक्स के गिरने की एक बड़ी वजह रही। इससे स्पष्ट है कि भारत में निवेश पर होने वाला मुनाफा भी घटता गया। हालांकि इस बात में ज्यादा दम नहीं है कि भारत में निवेश करना ज्यादा आकर्षक नहीं रहा, फिलहाल हालात यह है कि निवेशक बाजार से पैसा निकाल रहे हैं और इसकी बड़ी वजह रुपये की कीमतों अस्थिरता भी है।
अमेरिकी मुद्रा डॉलर की तुलना में रुपये में नरमी भारतीय कंपनियों के वित्तीय परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है। गौर हो कि रुपये की विनिमय दर में कमी ने दूसरी तिमाही में भी कंपनियों के मुनाफे पर असर डाला था। रुपये के कमजोर होने के कारण कई बड़ी कंपनियों सहित अनेक कंपनियों का मुनाफा घट गया था। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कमोवेश वैसे ही हालात तीसरी तिमाही में रहेंगे जो अगले माह समाप्त हो रही है।
अंतर बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की तुलना में रुपया लगभग 18 प्रतिशत टूटकर 44 रुपये से 52 रुपये प्रति डॉलर आ गया। इसका खामियाजा कई टॉप कंपनियों को भी भु्गतना पड़ा। बीते सप्ताह शेयर बाजार का सूचकांक 4 फीसदी गिरा, जिससे निवेशकों के 1.69 लाख करोड़ रुपये डूब गए।
अभी भी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के भरोसे में कमी आने से बाजार से पूंजी की निकासी जारी है। बीते दो सप्ताह में बाजार से करीब 6200 करोड़ रुपये की निकासी की गई, इस कारण भी बाजार काफी अस्थिर हुआ। विकास दर की धीमी पड़ने की आशंका और रुपये में कमजोरी के कारण एफआईआई द्वारा लगातार धन की निकासी की जा रही है, जो चिंता का विषय है। यदि रुपये के मूल्य में और गिरावट जारी रहती है तो विदेशी निवेशक और धन निकाल सकते हैं। मुद्रा बाजार के उतार-चढ़ाव ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। बाजार में कोई भी तेजी ऊंचे स्तर पर बाजार से पैसा निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। अब आगे जीडीपी और मुद्रास्फीति का आंकड़ा भी बाजार की दिशा को निर्धारित करेगा।
रुपये में जिस तरह से उतार-चढ़ाव हो रहा है, उससे आम आदमी पर भी बोझ बढ़ना लाजिमी है। खाद्य वस्तुओं, स्वास्थ्य सेवाएं, पर्यटन, परिवहन आदि पर खर्च में बढ़ोतरी हो रही है। विदेश यात्रा जहां महंगी हो गई, वहीं विदेशी सैलानियों के लिए भारत आना सस्ता हो गया। हालांकि रुपया कमजोर होने से आईटी क्षेत्र को फायदा होगा क्योंकि डॉलर में सौदे होने से अधिक रकम मिलेगी। लेकिन रुपये में गिरावट के चलते वैश्विक बाजार में वस्तुएं सस्ती होने का लाभ भारतीय उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच रहा।
रुपये में गिरावट पर रिजर्व बैंक की उलझन यह है कि डॉलर बेचकर रुपये को बचाने में देश का विदेशी मुद्रा भंडार घट जाएगा। यूरोप के कर्ज संकट और वैश्विक मंदी को देखते हुए यह कदम खतरनाक हो सकता है। अभी भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई के पास 314 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। ऐसे में रुपये में निरंतर गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है और चाहिए भी। आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव भी कह चुके हैं कि मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था के मुख्य कारकों पर असर पड़ा तो हस्तक्षेप करना पड़ेगा।
रुपये में डालर की तुलना में आई भारी गिरावट के लिए वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता तथा मांग आपूर्ति के बीच असंतुलन को एक हद तक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विशेषकर यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण संकट सामने आने के बाद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाह प्रभावित हुआ। रुपये की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की वजह घरेलू विदेशी विनिमय बाजार में मांग-आपूर्ति में असंतुलन आना रहा।
आयातकों विशेषकर तेल रिफाइनरी कंपनियों द्वारा डालर की मांग से रुपये की धारणा पर असर पड़ा। इसके अलावा शेयर बाजार में गिरावट का भी रुपये पर प्रभाव पड़ा। वैश्विक हालात को देखते हुए स्थानीय आयातकों और बैंकों ने डॉलर की मांग बढ़ा रखी है और रिजर्व बैंक भी बड़े हस्तक्षेप के मूड में नहीं दिख रहा है।
शेयर बाजार में गिरावट के बीच आयातकों की डॉलर मांग से रुपया अमेरिकी करेंसी के मुकाबले कमजोर होकर लगातार 52 के ऊपर और नीचे के स्तर पर बंद होता रहा। बीते कारोबारी सत्रों में यह 51.86 से 52.14 के दायरे में रहा। हालांकि, अब अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये में हल्की मजबूती आ रही है, लेकिन देखना यह होगा कि यह मजबूती कब तक बरकरार रह पाती है।
First Published: Wednesday, November 30, 2011, 22:35