Last Updated: Tuesday, December 13, 2011, 04:23
प्रवीण कुमारऐसा हो नहीं सकता कि ‘व्हाय दिस कोलावेरी...डी?’ गाने के बोल आपने नहीं सुने होंगे। तमाम लोगों, खासकर युवाओं की जुबां पर इन दिनों इस गाने का बुखार जो चढ़ा हुआ है। लेकिन अर्ज है, अपना मूड थोड़ा बदलिए और अब ‘व्हाय दिस धोखाधड़ी...डी?’ गुनगुनाने का वक्त आ गया है। चौंकिए नहीं! हम भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन की बात कर रहे हैं। 11 दिसंबर को जंतर मंतर पर अन्ना के एकदिवसीय सांकेतिक अनशन के दौरान ‘व्हाय दिस धोखाधड़ी...डी?’ की धुन सुनने को खूब मिली। टीम अन्ना कह रही है कि सरकार लोकपाल को लेकर देश की जनता के साथ धोखाधड़ी कर रही है।
धोखाधड़ी ये कि जब प्रधानमंत्री ने टीम अन्ना को लिखित में प्रभावी लोकपाल का आश्वासन दिया था और अन्ना की तीन मांगों (समूह-सी और डी श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों, सीबीआई और सिटीजन चार्टर को लोकपाल के दायरे में रखने) को लेकर संसद में प्रस्ताव भी पारित किया था तो फिर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट इतनी उलट क्यों? प्रधानमंत्री और संसद से मिले आश्वासन के बाद अन्ना ने रामलीला मैदान में 12 दिन पुराने अनशन को स्थगित करने की घोषणा की थी। इसके बाद संसद ने सदन से पारित तीन प्रस्ताव के साथ सरकार और सिविल सोसायटी के लोकपाल ड्राफ्ट को संसद की स्थायी समिति के पास अनुशंसा के लिए भेज दिया। संसद की स्थायी समिति ने 9 दिसंबर को जो रिपोर्ट संसद में पेश की तो पता चला कि इसमें सेंस ऑफ हाउस के उस खास नोट की अवमानना की गई है जिसपर संसद ने अन्ना की तीन मांगों से सहमति जताते हुए प्रस्ताव पारित कर समिति को भेजी थी।
अब संसद से सड़क तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, प्रवक्ता और स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी की जबरदस्त आलोचना हो रही है। अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक का परीक्षण करने वाली संसद की स्थायी समिति पर देश के साथ धोखा करने का आरोप लगाते हुए भ्रष्टाचार से निपटने में समिति की रिपोर्ट को कमजोर और प्रभावहीन बताया। अन्ना ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति गम्भीर नहीं है। सरकार में स्थायी समिति की रिपोर्ट खारिज करने की इच्छाशक्ति नहीं है। स्थायी समिति ने पूरे देश को धोखा दिया है। टीम अन्ना ने 11 दिसंबर को जंतर मंतर पर अन्ना के सांकेतिक अनशन के दौरान इस मसले पर बहस के लिए मिनी संसद बिठा दी। पहली बार सत्तारुढ़ यूपीए को छोड़ तमाम विपक्षी दलों के प्रतिनिधि मसलन अरुण जेटली (भाजपा), एबी वर्द्धन और डी.राजा (भाकपा), बृंदा कारत (सीपीएम), शरद यादव (जेडी यू), पिनाकी मिश्रा (बीजू जद) समेत करीब एक दर्जन सांसद अन्ना के मंच पर आए और टीम अन्ना की बातों का पुरजोर समर्थन करते हुए कह गए कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए संसद में एक सशक्त लोकपाल कानून बनाने के लिए वह सरकार को बाध्य करेंगे।
लौटते हैं उस गाने पर जहां से हमने शुरुआत की थी। टेंगलिश (टूटी-फूटी तमिल मिश्रित अंग्रेजी) का यह गाना ‘व्हाय दिस कोलावेरी...डी?’ प्यार में हताश व निराश शराब के नशे में बहकते आम युवा की पुकार है, जो प्रेमिका से पूछ रहा है, इतना गुस्सा क्यों? कुछ ऐसा ही मर्म ‘व्हाय दिस धोखाधड़ी...डी?’ से भी परिलक्षित हो रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि ‘व्हाय दिस कोलावेरी...डी?’ में प्रेमिका की बात की गई है और ‘व्हाय दिस धोखाधड़ी...डी?’ में देश की सरकार और उसकी जनता से धोखाधड़ी की बात की जा रही है। सरकारी भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनता देश की सरकार से पूछ रही है कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए अन्ना के जनलोकपाल से तुम इतने गुस्से में क्यों हो?
कहते हैं जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिल की ताकतवर आवाज को बुलंद करना बहुत जरूरी होता है। अन्ना की हुंकार से देश की सौ करोड़ से अधिक जनता के दिल की ताकतवर आवाज निश्चित ही बुलंद हुई है। बुलंद न होती तो लोकपाल कानून को लेकर बात इतनी दूर तलक नहीं जाती। संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का कहना है कि रिपोर्ट में 'राजनीतिक भावना' का अभाव है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने कहा, 'मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह रिपोर्ट एक वकील के मसौदे की तरह है जिसमें राजनीतिक एवं प्रशासनिक भावना नहीं है।' स्थायी समिति की रिपोर्ट की ‘विश्वसनीयता’ पर सवाल खड़े करते हुए कहा टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल का कहना है कि इसे सिर्फ़ 12 सदस्यों का समर्थन हासिल है। केजरीवाल ने कहा कि स्थायी समिति में 30 सदस्य हैं। दो सदस्यों ने कभी इसमें हिस्सा नहीं लिया। 16 सदस्य इससे असहमत हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो इस रिपोर्ट को सिर्फ़ 12 सदस्यों की सहमति हासिल है। इस रिपोर्ट की यही विश्वसनीयता है। तो हुआ न जनता के साथ धोखा।
बहरहाल, सरकार माने या ना माने यह उसकी मर्जी। लेकिन इतना तय है कि जनतंत्र की जिद के आगे सत्ता को झुकना ही पड़ता है। 42 साल से जिस लोकपाल बिल का देश की जनता शिद्दत से इंतजार कर रही है, को लेकर लड़ी जा रही टीम अन्ना की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। इस मोड़ पर पहुंचकर जनतंत्र की बुलंद आवाज को दबाया नहीं जा सकता है। मतलब साफ है, संसद में एक सशक्त लोकपाल सरकार को लाना ही होगा।
First Published: Wednesday, December 14, 2011, 20:39