Last Updated: Wednesday, November 21, 2012, 00:30
आलोक कुमार रावसंसद का शीतकालीन सत्र 22 नवंबर से शुरू होने जा रहा है। सरकार की तथाकथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ विपक्ष ने जो तेवर अख्तियार किए हैं और सरकार से अलग हुई तृणमूल कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जिस तरीके से अड़ी हुई है, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि संसद का आगामी सत्र हंगामेदार होगा और सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले को लेकर संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ चुका है और राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को अविश्वास प्रस्ताव की परीक्षा से गुजरना पड़ सकता है।
विपक्ष एक बार फिर से सरकार को महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले और एफडीआई के मसलों पर घेरने की तैयारी में है। सरकार संसद में विपक्ष के इन मुद्दों से भले ही निपट लेने की सोच रही हो लेकिन उसके सामने सबसे बड़ा संकट अविश्वास प्रस्ताव के दांव से खुद को सुरक्षित रखना है।
सरकार के लिए मुसीबत यह है कि बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव को लेकर अपना रुख पूरी तरह से साफ नहीं किया है। यही नहीं शक्ति परीक्षण का मौका आने पर यूपीए-2 में शामिल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) का रुख क्या होगा, इस पर भी रहस्य बरकरार है। करुणानिधि ने कहा है कि उनकी पार्टी अपने संसदीय दल के सदस्यों से विचार-विमर्श करने के बाद अपना रुख तय करेगी।
तृणमूल कांग्रेस संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने में यदि सफल हो जाती है तो द्रमुक का समर्थन सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि लोकसभा में उसके 18 सांसद हैं और संख्या बल के लिहाज से यह आंकड़ा काफी अहम है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के जरिए घटक एवं सहयोगी दलों के नेताओं को मनाने की जोरदार पहल कर चुके हैं। सरकार चाहती है कि शीतकालीन सत्र सुचारु रूप से चले ताकि पिछले सत्र में लंबित विधेयकों और जरूरी विधायी कामकाज को निपटाया जा सके।
सरकार साफ कर चुकी है कि विरोधी दल द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों से उसे कोई परहेज नहीं है लेकिन संसद का कामकाज बाधित नहीं होना चाहिए। वह नियम के अनुसार किसी भी मसले पर चर्चा के लिए तैयार है। विधायी कामकाज के लिहाज से शीतकालीन सत्र को देखें तो यह सत्र काफी महत्वपूर्ण है और सरकार यह संदेश देना चाहेगी कि वह संसद चलाने के लिए पूरी तरह गंभीर और प्रतिबद्ध है।
इस सत्र में सरकार लोकपाल विधेयक, बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर 49% करने, बैंकिंग नियमन और प्रत्यक्ष कर संहिता तथा भूमि अधिग्रहण जैसे विधेयकों को पारित कराना चाहेगी। जबकि भाजपा ने महंगाई, भ्रष्टाचार और बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई सहित कई मुद्दों को अनेक नियमों के तहत इस सत्र में उठाने के लिए नोटिस दिए हैं।
भाजपा ने कहा है कि वह कोलगेट घोटाले के मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगेगी। वहीं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई के खिलाफ दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में मत विभाजन के नियम के तहत प्रस्ताव लाने का मन बना चुकी है।
मत विभाजन के मुद्दे पर माकपा सरकार को पटखनी देना चाहती है और इसके लिए वह संभावित तीसरे मोर्चे के दलों के साथ बातचीत कर रही है। इसके अलावा वाम दल कोयला ब्लॉकों के आवंटन, पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में वृद्धि तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को जमीन खरीद में हरियाणा सरकार की ओर से दिए गए लाभ के मामले को भी उठाने की बात कह चुके हैं।
सरकार एफडीआई के मुद्दे पर आरपार के मूड में दिख रही है और टीएमसी की धमकियों की परवाह न करते हुए उसने कहा है कि वह अविश्वास प्रस्ताव सहित किसी भी अन्य प्रस्ताव का सामना करने के लिए तैयार है। सरकार के पास लोकसभा में इतना संख्या बल है कि उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा। टीएमसी के अविश्वास प्रस्ताव की सफलता बहुत हद तक भाजपा, सपा और बसपा के रुख पर निर्भर करेगी। हालांकि, सपा और बसपा दोनों सरकार को अस्थिर करने के मूड में नहीं दिख रही हैं।
भाजपा के एक धड़े और माकपा का मानना है कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना समय के लिहाज से उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि लोकसभा में बाजी मारने के लिए यूपीए-2 में ही सेंधमारी करनी होगी जिसके लिए अब समय नहीं बचा है। विपक्ष को यह डर भी कहीं न कहीं सता रहा है कि अगर निम्न सदन में अविश्वास प्रस्ताव गिर जाता है तो सरकार को अगले छह महीने के लिए संजीवनी मिल जाएगी और वह एफडीआई से लेकर अपने तमाम जनविरोधी फैसलों को सही बताएगी। इसलिए विपक्ष संसद में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मत विभाजन वाले प्रावधान पर ही ज्यादा जोर मार रहा है।
बहरहाल, राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगते। लेकिन इतना तो तय है कि संसद में अविश्वास प्रस्ताव समेत अन्य मसलों पर राजनीतिज्ञ दलों का रुख मिशन 2014 के नफे-नुकसान के मद्देनजर ही तय होने वाला है। अविश्वास प्रस्ताव पर रुख अभी तक साफ न कर पाने वाली पार्टियां शायद हवा का रुख भांप रही हैं।
First Published: Tuesday, November 20, 2012, 23:23