सूखे की आहट के बीच मॉनसून सत्र का आगाज

सूखे की आहट के बीच मॉनसून सत्र का आगाज

सूखे की आहट के बीच मॉनसून सत्र का आगाजप्रवीण कुमार
देश में सूखे की आशंका के बीच पूरे एक महीने तक चलने वाले संसद के मॉनसून सत्र का आगाज हो चुका है। मौसम विभाग के मुताबिक अब तक पूरे देश में 19 फीसदी कम बारिश हुई है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अब तक 70 फीसदी तक कम बारिश हुई है। सौराष्ट्र और कच्छ समेत पूरे गुजरात में करीब 80 फीसदी कम बारिश हुई है। इसके अलावा आगे भी मॉनसून के सुधरने की कोई सूरत नहीं दिख रही है। अच्छा मॉनसून देश में खुशहाली लाता है। लेकिन मॉनसून अनुकूल नहीं रहता है तो वह देश की खुशहाली पर तो ग्रहण लगाता ही है, देश की राजनीति और सरकार के लिए भी खतरे की घंटी होती है। महंगाई, सूखा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर विरोधी दलों के तेवर को देखते हुए संसद का मॉनसून सत्र काफी हंगामेदार होने की आशंका है। हालांकि सरकार की मंशा इस सत्र में कई अहम विधेयकों को पास कराने की है। लेकिन विपक्ष के तेवर को देखते हुए ये मुमकिन होता नहीं दिख रहा है। विपक्ष का आरोप है कि बारिश नहीं होने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है, लेकिन सरकार की उससे निपटने की कोई तैयारी ही नहीं है। जनलोकपाल कानून के लिए अन्ना हजारे का अनशन मॉनसून सत्र से पहले ही खत्म हो जाने से सरकार ने राहत की सांस जरूर ली होगी लेकिन विपक्ष के लिए भ्रष्टाचार का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है। मॉनसून सत्र में कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला निश्चित रूप से संसद के नहीं चलने देने का बहाना बनेगा।

देश में सूखे पर घिरेगी सरकार
एनडीए का कहना है कि मॉनसून सत्र में वह किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार से सवालों की बारिश करेगी। इसमें खाद की कीमतों में वृद्धि से लेकर सूखाग्रस्त इलाकों में किसानों को दी जाने वाली राहत में लापरवाही शामिल होगी। एनडीए में शामिल पार्टियां सरकार से से आश्वासन जरूर चाहेगी कि वह भाजपा शासित मध्य प्रदेश की तरह ही देश के अन्य हिस्सों में किसानों को शून्य फीसदी ब्याज पर ऋण मुहैया कराए। भाजपा इसी बहाने अपनी तरफ से किसानों के हित में उठाए गए कदमों का ब्यौरा देकर अपनी पीठ थपथपाने की पूरी कोशिश करेगी। कमजोर मॉनसून से देश के कई हिस्सों में सूखे के हालात से निपटने में कोताही को लेकर भी विपक्ष सरकार को सदन में घेरने के मूड में है।

भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम
चूंकि टीम अन्ना ने सभी दलों को एक ही थैली का चट्टा-बट्टा बताकर खुद को भाजपा से अलग कर लिया है इसलिए विपक्ष सदन में भले ही अन्ना हजारे या जनलोकपाल का कोई मामला न उठाए लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में वह निश्चित तौर पर गृहमंत्री से वित्तमंत्री बने पी. चिदंबरम को निशाने पर लेने की कोशिश करेगी। पार्टी एयरसेल-मैक्सिस डील को लेकर सवाल पूछेगी। कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले पर कैग की रिपोर्ट को लेकर सवाल पूछेगी। 2जी का मामला भी भाजपा जोर शोर से उठाएगी क्योंकि इस मामले में पी. चिदंबरम को सह-अभियुक्त बनाने का मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। ध्यान रहे कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा समेत पूरे विपक्ष ने दोनों सदनों में चिदंबरम का बहिष्कार किया था। भाजपा ने 2जी घोटाले में चिदंबरम के संलिप्त होने का आरोप लगाया था। विपक्ष का आरोप था कि स्पेक्ट्रम आवंटन की अवधि के दौरान चिदंबरम वित्त मंत्री थे। इतना ही नहीं विपक्ष ने एयरसेल-मैक्सिस सौदे से चिदंबरम के बेटे के लाभान्वित का आरोप भी मढ़ा। चिदंबरम की मुख्य चिंता यह है कि इस बार सरकार में प्रणब मुखर्जी जैसा कोई ऐसा संकटमोचक नहीं है जो उनका बचाव कर सके। लिहाजा विपक्षी हमलों से बचने के लिए वह खुद ही मैदान में उतर आए है। भाजपा नेताओं का कहना है कि चिदंबरम के पैंतरों से पार्टी का निर्णय प्रभावित नहीं होने वाला है। 2जी में उनकी भूमिका को लेकर हमारा विरोध जारी रहेगा।

असम के कोकराझार में हिंसा
इस सत्र में विपक्ष असम की हिंसा को भी जोरदार तरीके से उठाने की तैयारी में है। ऐसा माना जा रहा है कि एनडीए पहले ही दिन संसद में काम रोको प्रस्ताव लाएगा ताकि इस मुद्दे पर चर्चा कराई जा सके। भाजपा का कहना है कि असम में जिस तरह से विदेशी लोग आकर भारतीयों की जमीन हड़प रहे हैं और फिर उन पर हमले किए जा रहे हैं उससे साफ है कि इस इलाके में विदेशियों को ज्यादा छूट मिल रही है। पार्टी के मुताबिक, सरकार अपने वोट बैंक पर अधिक ध्यान दे रही है जिसका नतीजा यह है कि असम में रहने वाले भारतीय अपने ही देश में खुद को असुरक्षित सा महसूस कर रहे हैं।

अहम विधेयकों पर विवाद
मॉनसून सत्र में सरकार की ओर से मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के मुद्दे पर तस्वीर साफ की जा सकती है। यूपीए के घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने सरकार को चेतावनी दी है कि वह एफडीआई और पेंशन विधेयक जैसी नीतियों को आगे बढ़ाने से परहेज करें। तृणमूल इसे जनविरोधी बताकर लगातार विरोध करती आ रही है। इस सत्र में सरकार की 31 विधेयक लाए जाने की योजना है। खाद्य सुरक्षा बिल, भूमि अधिग्रहण बिल, बैंकिंग सुधार बिल, कंपनी बिल पारित कराने की कोशिश होगी। जहां तक खाद्य सुरक्षा बिल की बात है तो कृषि मंत्री शरद पवार की इस बिल को लेकर साफ राय नहीं है। पवार का कहना है कि मौजूदा राशन व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाए बिना प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करना मुश्किल होगा। खाद्य सुरक्षा कानून को यदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की मौजूदा प्रणाली के जरिए ही लागू करने की कोशिश की जाती है तो यह लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाएगा। देखने वाली बात होगी कि सोनियां गांधी के सपने को साकार करने वाले भोजन की गारंटी के इस कानून को इस सत्र में पारित कराने में यूपीए सरकार सफल होती है कि नहीं।

बहरहाल, जिस संसदीय कार्यवाही पर प्रति मिनट 36 हजार रुपए खर्च होते हैं, उससे हम यही उम्मीद करते हैं कि सत्र का मकसद पूरा हो। विभिन्न मसलों पर सरकार से सवाल जरूर किए जाएं लेकिन इसको लेकर विपक्ष इतना भी आक्रामक न हो कि सरकार को यह कहने का मौका मिल जाए कि विपक्ष संसद की कार्यवाही को चलने देना नहीं चाहती है। सरकार से भी यही उम्मीद की जाती है कि वह विपक्ष के सवालों को सम्मान करे और उसका संतोषजनक जवाब दे। अगर सरकार विपक्ष के सवालों व आरोपों को सिरे से खारिज करती है तो टकराव होना तय है।

First Published: Wednesday, August 8, 2012, 14:26

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