`स्पष्ट जनादेश ना मिलना दुर्भाग्यपूर्ण`

`स्पष्ट जनादेश ना मिलना दुर्भाग्यपूर्ण`

`स्पष्ट जनादेश ना मिलना दुर्भाग्यपूर्ण`उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी के साथ खास बातचीत की ज़ी न्यूज़ उत्तर प्रदेश के संपादक वासिन्द्र मिश्र ने अपने खास कार्यक्रम `सियासत की बात में`। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-

सवाल: लगभग दो महीने हो गए,नतीजे आए। कांग्रेस की सरकार भी बनी मतदाताओं ने आपको और कांग्रेस को लगबग बराबर वोट दिया। क्या वजह रही कि आप दो महीने तक नेता विरोधी दल नहीं चुन पाए?

जवाब: ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है उत्तराखंड के लिए देश में अच्छा संदेश नहीं गयाऔर हमको 31 सीटें मिलींजो हमारी उस समय की आशा से ज्यादा थी लेकिन मैं समझता हूं कि ये जो जनता ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया ये नुकसानदायक है। मैं व्यक्तिगत रुप से इस विचार का हूं बल्कि मैने चुनाव प्रचार में कहा भी कि आप जिस राष्ट्रीय पार्टी को चुनें उसे पूर्ण बहुमत दें। दुर्भाग्य से उत्तराखंड में ये नही हुआ। 33-35-32-31 ऐसी सीटें आती हैं तो राज्य को नुकसान होता है। इसका मुख्य कारण मेरी नजर में जो 31-32 सीटें मिली हैऔर जो सात लोग दूसरे हैं। तीन स्वतंत्र है ,तीन दूसरी पार्टी के हैं, एक अन्य दल का है और दरअसल देखिये कि उन्हीं के द्वारा सरकार चलाई जा रही है। दबाव बनाया जा रहा है।एक तो ये दुर्भाग्य है कि जनमत स्पष्ट नहीं था। मुझे अच्छा लगता अगर किसी दल को पूर्ण बहुमत मिलता...दूसरा दुर्भाग्य है क कांग्रेस के भीतर इतनी खींचतान चल रही है। जिस प्रकार उनके बड़े नेता, विधायक खुलेआम सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैंतो उससे सरकार और अधिकारियों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

सवाल: आपको नहीं लगता कि उत्तराखंड की इस दुर्दशा के लिए जनता से ज्यादा दोषी कांग्रेस और बीजेपी हैं और चुनाव से पहले जब आपको सत्ता सौंपी गई तो उम्मीद थी कि आपको पूरे अधिकार मिलेंगे। टिकट बंटवारे से लेकर मंत्री के चयन तक लेकिन शायद वह काम नहीं हो पाया। आपको पूरा मैंडेट नहीं मिला पार्टी आलाकमान की तरफ से।


जवाब: ये ठीक है। आपका आंकलन सही है। मैंनै कहा कि मतदाता को मैं दोष नहीं दे रहा। मतदाता को तो मैं बीजेपी और अपनी तरफ से धन्यवाद दे रहा हूं कि जो परिस्थितियां बनी है उसमें मतदाता कुछ भ्रमित था लेकिन उत्तराखंड का मतदाता बीजेपी को स्पष्ट बहुमत देना चाहता था और इसीलिए मैने चुनाव से पहले मीडिया से कहा था कि हमें स्पष्ट बहुमत मिलेगा। मैने फीगर भी 38-40 की दी थी। मैं ये मानता हूं कि हमे 38-40 सीटें मिलतीं। मतदाता का कोई कसूर नहीं हैं। कसूर हमारा अपना है कम से कम दस सीटें ऐसी है जहां भीतरघात हुआ और हम हारे। दूसरे टर्म में मैने तीन माह चौदह दिन कुल काम कियामैने परिवर्तन किया जिसे आप जानते हैं। बीजेपी के अपने आंकलन को भी आप जानते हैं। तीन माह चौदह दिन में बीजेपी या मैंने जो किया जनता हमारी सरकार बनाना चाहती थी। स्पष्ट बहुमत देना चाहती थी और 31 सीटे मिलीं ।अपनी आंतरिक कमजोरी की वजह से। आतंरिक मतभेद की वजह से। दूसरा जो आपने कहा कि मुख्यमंत्री मुझे बनाया गया बावजूद इसके टिकट बंटवारे में अलग अलग ग्रुप के प्रेशर रहे मेंरी इच्छा से भी नहीं हुआ फिर चुनाव के दौरान बहुत मतभिन्नता रही और ये सबको पता है जिस तरह से भितरघात हुआ।


सवाल: आपके विधायक ने इस्तीफा दिया है किरन मंडल नेऔर सुनने में आ रहा हैकि चार पांच और विधायक हैं जो कांग्रेस के संपर्क में हैं तो ये गुटबाजी का नतीजा है या धन का लालच है। चर्चा है कि आपके जिस विधायक ने इस्तीफा दिया है उसे पांच करोड़ रुपये दिये गए।


जवाब: हां वो मंडल हैं जिसने इस्तीफा दिया है बहुत सारी बाते चल रही है मै उस पर कहना नहीं चाहता लेकिन पहली बात कि कांग्रेस ने ये जिस तरह का खेल खेला अच्छा नहीं है ये उनके लिए भी अच्छा नहीं है हमारे लिए भी अच्छा नहीं है ।और ये राजनीति के लए भी अच्छा नहीं है वो हमको भी दोष देते हैं कि हमने ऐसा किया लेकिन उसका विस्तार से हमने जवाब दिया है कि हमने इस तरह किसी को चार पांच दिन दिन गुमराह करके, उठा कर के जैसे गैंगस्टर करते हैं। सात आठ दिन तक उसका पता नहीं चलाऔर अब वो इस्तीफा दे रहा है और आप देखिये जिन बातों के लिए वो इस्तीफा दे रहा है वो हो नहीं सकतीं। तो ये राजनीति के लिए ठीक नहीं। आयाराम गयाराम की राजनीति वैसे ही बदनाम है लेकिन अगर आप इस तरह की हरकत करेंगे तो गलत है। हमारे यहां पिछली बार टीपीएस रावत आए। वो गायब नहीं हुए थे। सबके सामने थे उन्होंने अपनी परिस्थिति के चलते पार्टी छोड़ी वो पांच छ महीने से कांग्रेस से असंतुष्ट थे लेकिन उनको किसी ने गुमराह नहीं किया था। दूसरी बात जो आप कह रहे हैं कि कांग्रेस को पछताना पड़ेगा। ये ना कांग्रेस के लिए ठीक है ना ही देश के लिए। वोतो अच्छा किया अटल जी ने जब केन्द्र में एनडीए की सरकार थी कि अब उत्तराखंड में 12 ही मंत्री बन सकते हैं। अगर ये खुला रहता तो 20-25 मंत्री बन जाते अब तक। तो इस तरह की व्यव्था करनी चाहिए। बड़ी पार्टी को जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए कि अपनी पार्टी को जिताने के अलावा देश के प्रति भी कुछ कर्तव्य है। वो कर्तव्य करना चाहिए। दूसरी बात ये कि कांग्रेस के संपकर्क में चार पांच लोग हैं। ये गलत है। ऐसा नहीं है। कांग्रेस की शैली ऐसी ही है वो खूब दुष्प्रचार कर रहे हैं। चार आ गए,छ आ गए। अब विधायकों ने खुले आम कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। हम छोड़ने वाले नहीं है औऱ कांग्रेस हमें गुमराह कर रही है। बदनाम कर रही है। अब ये दुर्भाग्य है कि अगर कोई जाना चाहता है तो उसे कोई रोक नहीं सकता। लेकिन आप गुमराह करें। पैसे का लालच दें। अच्छा नहीं है। राजनीति की ये बहुत निम्न कोटि की छवि है।

सवाल: खंडूरी जी क्या वजह है कि छोटे राज्यों को बनाने का जो मकसद तो वो पीछे छूट गया और सत्ता और भ्रष्टाचार का गठजोड़ अंत में हावी हो गया। सरकार कांग्रेस की हो या बीजी की भ्रष्टाचार और इस तरह की चीजों से पीछा नहीं छूट रहा है।


जवाब: ऐसा है कि इसकी वजह तो बहुत सारी हो सकती है लेकिन मुख्य दोष राजनीतिज्ञों का है पार्टियों का है। इस तरह का वातावरण बनाया गया। छोटे प्रदेश है जिनकी विधानसभा छोटी है हमारे यहां कुल सत्तर विधायक है ऐसा ही झारखंड में है। गोवा में भी ऐसा हो जाता है। आदमी इधर से उधर गया। तो सरकार बदल जाती है और राजनीतिज्ञ लोगों ने दुर्भाग्य से खासकर बड़ी पार्टियां ज्यादा जिम्मेदार हैं जिन्होंने इसको एक हथियार बना लिया है कि अगर आप हमारी व्यवस्था पलटने के लिए कितने आदमी हटा सकते हैं तो बजाय जनता को खुश करके जनता के हित के काम करके। विकास के काम करके उनके वोट लें। जीते कोई भी उसको बस अपनी तरफ खींच ले तो रुलिंग पार्टी अस्थिर हो जाएगी। किसी तरह से जोड़ तोड़ कर के जिसके पास बहुमत है उसे अस्थिर कर दे ये गलत है। वो तो अटल जी का धन्यवाद है कम से कम एक तिहाई के बजाय दो तिहाई का परिवर्तन किया वर्ना रोज लोग पार्टियां बदलते और उन्हें इस्तीफा भी नहीं देना पड़ता। मैं समझता हूं कि अब समय आ गया है कि उन प्रदेशों में जहां 100 के अंदर विधायक हैं उसमें कुछ निर्णय करना पड़ेगा। उसमें कोई अगर अपनी पार्टी बदलता है तो उसके लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वो ना तो पैसे ले पाए और इस्तीफा देने के बाद भी बच ना सके। ऐसे व्यक्त को लंबे समय के लिए डिस्क्वालिफाई करना चाहिए। कुछ ना कुछ तरीका निकालना पड़ेगा नहीं तो ये बीमारी खत्म होने वाली नहीं। क्योंकि आम विधायक नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टियां लालच देकर अपनी तरफ मिलाती हैं।

सवाल: यानी जो मकसद था कि छोटे राज्यों में विकास होगा एकतरफा विकास के जो आरोप लगते रहे अब तक छोटे राज्य नहीं बने थे वो मकसद कहीं पीछे छूट गया।


जवाब: वो इसलिये नहीं छूटा कि छोटे राज्यों को पीछे छोड़े ,मकसद इसलिए पीछे छूटा है क्योंकि छोटे प्रदेशो में ध्यान देने के बदले और विकास पर ध्यान देने के बजाय बल्कि जहां लोगों ने देखा कि विकास होता है। मुझे क्षमा करना लेकिन तीन माह 14 दिन के अंदर हमारी पार्टी को 31 सीटें जनता ने दी हैं। काम पर दिया है, इस आधार पर दिया है कि अगले पांच साल हम कैसी सत्ता चाहते हैं। अगर हमारी राजनीतिक पार्टियां ईमानदारी से काम करें तो छोटे प्रदेशों में बहुत संभावनाएं है और खासकर उत्तराखंड, झारखंड जहां इतने प्राकृतिक संसाधन हैं। तिवारी जी बड़े और अनुभवी नेता थे लेकिन उनके अंडर में भी पांच साल एक दिन भी स्थिरता नहीं रही। उनकी अपनी पार्टी के लोगों ने जैसा वातावरण बनाया सब लोग जाते हैं तो राजनीतिक अस्थिरता से शुरु से रही। हमारी पार्टी की सरकार बनी हमें पहले 34 सीटें मिलीं फिर 35 हुईं यूकेडी के साथ मिलकर 37-38 हो गए लेकिन अस्थिरता चलती रही और उसके नतीजे क्या हुए ज्यादा मैं बता भी नहीं सकता लेकिन सब जानते हैं कि जब तक कानून से व्यवस्था नहीं होगी। जब तक पार्टी काबू नहीं करेगी। संवैधानिक व्यवस्था नहीं होगी। ये छोटे प्रदेशों का दुर्भाग्य रहेगा। लेकिन मैं इस बात से पूर्ण रुप से सहमत नहीं हूं कि छोटे राज्य कोई समस्या है छोटे राज्य आप देखिए 13 जिले हैं। डीएम का पता है, मुख्यमंत्री, मंत्री चोटी छोटी जगह, गांव गांव तक पहुंच सकते हैं। सब बाते पता हैं। गांव में क्या होना है पता है। इसलिए प्रशासनिक दृष्टिकोण से छोटे राज्य सफल हो सकते हैं। अच्छे हो सकते हैं लेकिन जब तक राजनीति का चरित्र नहीं बदलेगा तब तक कुछ नहीं हो सकता।


सवाल: ये जो मौजूदा सरकार है विजय जी की उन्होने विकास की अपनी कुछ प्राथमिकताएं बनाईं हैं। जनता को भी बताया है। आप भी सरकार में थे आपकी भी प्राथमिकताएं थी। आपको कुछ अंतर लग रहा है।


जवाब: बिल्कुल, बहुत अंतर है। आप उनका चार्टर देखिए। हमारा चार्टर देखिए। जब मैं 2007 में मुख्यमंत्री बना था तो हमने ऐसी चीजें उत्तराखंड के अंदर खत्म की थीं। भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा था। विकास पलायन बहुत बड़ा मुद्दा था। आप उस समय के जितने कार्यक्रम देखेंगे हांलाकि अस्थिरता उस समय भी थी लेकिन मैंने सोचा था कि भ्रष्टाचार को खत्म करना है। भारत में कोई ऐसा कानून नहीं है जैसे हम भर्ती प्रक्रिया में लाए। उस समय पटवारी भर्ती घोटाला हुआ था। कांस्टेबल भर्ती घोटाले में तो सीबीआई की रेड तक हुई थी। कई बड़े लोग उसमें फंसे थे। हमने शुरु के एक महीने में ही ठीक करने की ठानी। महिलाओं विकलांगो के लिए योजना लाए। क मैसेज जा रहा था कि हम विकगास करना चाहते हैं आज कांग्रेस को देखिये क्या हो रहा है। हम लोकायुक्त बिल लाए। भारत का इकलौता ऐसा बिल है वो कहते हैं हम इसे बदल देंगे। ट्रांसफर पालिसी उत्तराखंड से ज्यादा ट्रांसपेरेंट नहीं है कहीं। मुक्यमंत्री भी सिफारिश नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है। सब वेबसाइट पर है। कहां कौन ट्रांसफर होगा। सबकी राय से उसे तैयार किया था इन्होने आते ही उसको हटा दिया। क्या मतलब है क्या संदेश दे रहे हैं आप।

सवाल: आपको लग रहा है कि वो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।

जवाब: बिल्कुल, मुझे कोई शंका नहीं है। जिस तरह से दो महीने में काम किए है। बीजेपी ने जो जनहित के काम किए थे उसे बदल रहे हैं। सिविल चार्टर हम लाए थे अटल खाद्यान योनजा हमने चलाई थी, ब्रष्टाचार खत्म करने के लिए कई काम किए। इन्होने आते ही वो सब बदल दिया जिससे भ्रष्टाचार बढ़े, सिफारिश बढे। मैने खुद मुख्यमंत्री से मीडिया के जरिये पूछा कि आप ने योजनाओं को निरस्त किया इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा कि घटेगा। सिफारिश कम होगी या बढ़ेगी। कर्मचारी जो 10-10 साल से अति दुर्गम में पड़े हैं वो वहां से हितने नहीं है और जो कर्मचारी 4-5 फीसदी ही हैं। आसान जगहों पर बैठे हैं। कई साल से जो जहां जमे हुए है। आप उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं। आप भ्रष्टाचारियों, दादागिरी करने वालों को बढ़ावा दे रहे हैं। तो संदेश तो बिल्कुल साफ है। मजबूरी दबाव जो भी हो उनका काम है भ्रष्टाचार और सिफारिश बढ़ाना। न्याय ना करना।


सवाल:आप के समय में तो आपकी पार्टी के लोग भी आपकी इस शैली से दुखी थे। हा जाता था कि जनरल साहब सिविल एडमिनिस्ट्रेशन भी आर्मी रुल से चला रहे है।

जवाब: ऐसा है कि मैने सीएम और मंत्रिरयों सबको लोकायुक्त में शामिल किया लेकिन मुझे कोई शंका नहीं। भ्रती वाला ही प्रकरण देखिये लोगों ने शुरु में कुछ परेशानी बताई लेकिन बाद में वो कोई भी हो राजनीतिक आदमी हो कार्यकर्ता हो। जनता हो सब खुश हैं कि हमारे पास किसी को सिफारिश के लिए नहीं आना पड़ता। मैं आपको बताऊं ट्रांसफर बिल के बाद मैं शिक्षा बिल लाया। संगठनों ने कहा इसे लागू करिए। ये सही है कि थोड़े समय कष्ट होता है। अब मैं मुख्यमंत्री बनूं। दो चार अपने को को एडजस्ट करुं। तो मैने भी अपने ऊपर भी कंट्रोल किया। आम जनता में इसके लिए सहानुभूति है। खुसशई है। पार्टी खुश है लोग जानते हैं कि अच्छा हो रहा है। ईमानदारी से थोडी देर कष्ट होता है लेकिन लंबे समय में उसका फायदा जनता को होता है।


सवाल: उत्तराखंड में पर्यावरण बचाने के लनाम पर जो रानीति होती रही है उसमें आपके दल के लोग भी शामिल रहे है। आपको भी कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा जब आप उत्तराखंड के मुख्यंत्री थे।आप इसे कितना उचित मानते हैं कि उत्तराखंड के विकास को पर्यावरण के बहाने रोक दिया जाता है। कई योजनाए हजारों करोड़ खर्च होने के बाद भी रुकी पड़ी है। क्या ये उचित बहे।


जवाब: मैं फौजी रहा हूं लेकिन 1991 में जब मैं सांसद बना तब भी मेरी पर्यावरण में काफी रुचि थी और मैंने लोकसभा में कई विषय रखे। मैं पर्यावरण प्रेमी हूं। लेकिन जिस प्रकार पर्यावरण के नाम पर विकास रोका जा रहा है, पर्यावरण को हथियार को हथियार बनाकर लोगों से अन्याय किया जा रहा है वो ठीक नहीं है। ना तो पर्यावरण के लिए और ना ही लोगों के लिए। उत्तराखंड में 60 फीसदी तो जंगल हैं फिर नदियां हैं तो बाकी जगह कम बचती है। उत्तराखंड में बहुत से विकास के काम नहीं हुए हैं। या विलंब हुआ है पर्यावरण की वजह से। और जब आम आदमी कहता है कि पेड़ों की वजह से हमारी जिंदगी खराब हो रही है। हमारी नदियों से बिजली नहीं मिल रही तो जो उत्तराखंड के लोगों में प्रकृति के प्रति श्रद्धा थी जो सम्मान ता वो कम हो गया। ये पर्यावरण वाले इस तरह की जो हरकत कर रहे हैं ये ठीक नहीं है उन्हें समझना होगा। मैं ये इसलिए कह रहा हं क्योंकि मैं हमेशा पर्यावरण के पक्ष में रहा हूं। पेड़ों के पक्ष में रहा हूं। मैने अपने जीवन मेंलाखों की संख्या में पेड़ लगाए हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए मैने इको टास्क फोर्स की तीन चार कंपनियां उत्तराखंड में खोलीं। जिनको प्रदेश में पैसा दिया जा रहा है और उन्होंने लाखों पेड़ लगाए। लेकिन पेड़ लगाना एक बात है और पेड़ों की वजह से विकास रोकना अलग बात। उत्तराखंड में ये बहुत ज्यादा हो गया। इसलिए लोग पेड़ों के विरोधी बन गए। उत्तराखंड में जहां गौरा देवी ने एक अनपढ़ महिला ने चिपको आंदोलन चलाया। वहां के लोग भी आज पर्यावरण विरोधी हो गए। उत्तराखंड में विकास रोकना गलत है। हमारे पास सड़कें बिजली और कई अन्य समस्याएं हैं, गरीबी है, विकास होना है, तो पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। उसे बिना क्षति पहुंचाए विकास साथ साथ चलना चाहिए। ये दोनों बातें एक साथ होनी चाहिए। इसी तरह हमारी नदियां पवित्र हैं। पानी से अगर बिजली निकालेगें तो उसका कोई गुण खराब नहीं होता। इसलिए जितनी हमारी नदियां है खासकर गंगा उनमें दो चीजें हैं। एक है पवित्रता और दूसरी गुणवत्ता। पवित्रता से बिजली का कोई संबंध नहीं है। दुनिया भर की गंदगी जो हम गंगा में फेंक रहे हैं नदियां उससे गंदी हो रही हैं। राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लाय चलाया कुछ नहीं हा। हम लोग भी चलाते रहे लेकिन गोमुख से गंगासागर तक कुछ नहीं हो रहा है। तो गंभीरता से पहले गंगा को शुद्ध कीजेए लेकिन बिजली का जहां तक सवाल है तो जो पानी में गुण हैं उसकी वैज्ञानिक जांच करा लो। अगर डैम में पानी रोकने से पानी के गुण खराब होते हैं तो डैम मत बनाओ। अगर टनल में पानी जाने से उसके गुण खराब होते है। तो टनल मत बनाओ। वैज्ञानिक परीक्षण से गुण जांचना संभव है इसलिए बिजली बनाने में कोई नुकसान नहीं है। अगर धार्मिक नजरिये से देखे तो हम गाय को माता मानते हैं तो क्या हम उसका दध नहीं पीते। पर्यावरण के लोगों को जनहित की बात सोचनी होगी।

सवाल: आप के कई संगठन आंदोलन चला रहे थे कि गंगा पर बांध नहीं बनने देंगे तो तब आपने क्यों बात नहीं रखी।
जवाब: मैने उनसे भी बात की। इन चीजों को सिर्फ भावनात्मक ढंग से देखें और लोकहित से ना देखें तो गलत है। मेरे बचपन में जंगल में आग लगती थी तो पारेस्ट डिपार्टमेंट कुछ नहीं करता था। उनके पास संसाधन ही नहीं थेस लोग जाते थे। उन पेड़ों और जंगलों को बचाने। 1994-1995 में उत्तराखंड के जंगलों में भयंकर आग लगी। मैं गौरादेवी के गांव गया वहां लोगों से पूछा कि आग लगी है आप क्यों नहीं जा रहे तो वो बोले कि ये फारेस्ट डिपार्टमेंट का काम है। जहां लोग पेड़ बचाने के लिए उनसे चिपक कर गर्दन कटाने को तैयार थे वहां लोग कह रहे हैं कि सरकारी जमीन है। फारेस्ट वाले जानें। आप अगर गांव की महिला को घास नहीं लाने देंगे। जंगलों से सूखी लकड़ियां नहीं बीनने देंगे, औषधि नहीं लाने देंगे तो लोग जंगल के दुश्न हो जायेगें। हमने भी दो प्रोजेक्ट रोके थे। काम शुरु होने वाला था। केन्द्र से राय मांगी थी लेकिन उन्होने मदद नहीं की। मैं अब भी इस विचार का हूं कि मनुष्य की सेवा भगवान की पूजा है। ना ही पर्यावरण को नुकसान हो ना प्राणी का नुकसान हो। ऐसा रास्ता निकालना चाहिए।
खंडूरी जी बातचीत के लिए धन्यवाद।

First Published: Friday, May 25, 2012, 17:31

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