Last Updated: Friday, September 30, 2011, 06:02
जेनेवा. दुनिया में विलुप्ति के कगार पर खड़ी समुद्री कछुओं की आधी आबादी हिंद महासागर में रहती है. मगर यहां का वातावरण अब उनके अनुकूल नहीं रहा. प्रकृति की रक्षा के लिए काम कर रही अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि हिंद महासागर इन कछुओं के लिए खतरनाक जगह है.
हिंद महासागर में बंगाल की खाड़ी से सटे भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर बड़ी तादाद में कछुए प्रजनन और रेत के टीलों में अंडे देने के लिए आते हैं. इन कछुओं में मुख्य तौर पर 'ओलिव रीडली' प्रजाति के कछुए शामिल रहते हैं जो उड़ीसा तथा तमिलनाड़ु के तटवर्ती इलाकों में आमतौर पर दिसंबर से अप्रैल के बीच आते हैं.
शोध में पाया गया कि ये ओलिव रीडली प्रजाति के कछुओं के दक्षिण-पूर्वी समुद्री तटों पर आने की दर में काफी कमी आ गई है.करीब 10 वर्ष पहले तक प्रजनन के लिए आने वाले कछुए प्रति किलोमीटर पर औसतन 100 घरौंदे बनाते थे लेकिन अब यह दर घटकर प्रति किलोमीटर महज 10 घरौदों की रह गई है. इसका कारण है कि गलती से मछुआरों के जाल में फंसकर ये खतरे में पर जाते हैं. इनके अंडों और इसके खोल को भी अन्य तौर पर उपयोग में लाया जाने लगा है.
वहीं कछुओं पर नजर रखने के लिए ज़ूलॉजिकल सोसायटी ऑफ़ लंदन के वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर में कुछ कछुओं में इलेक्ट्रॉनिक टैग लगाए हैं.इन इलेक्ट्रॉनिक टैग का संपर्क उपग्रह से होने के कारण कछुओं की गतिविधि पर नज़र रखी जा सकेगी. इससे ये जाना जा सकेगा कि ये कछुए साल में आठ बार तक अंडे देने के लिए तट पर आते हैं, लेकिन बाकी समय में ये कहां- कहां जाते हैं.
ग्यारह में से पांच सबसे ज्यादा दंश झेल रहे इन कछुओं की प्रजाति हिंद महासागर में रहती जबकि संस्था के अनुसार सबसे खुशहाल चार प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है.
(एजेंसी)
First Published: Friday, September 30, 2011, 11:32