खुलेगा गणितज्ञ आर्यभट्ट की वेधशाला का रहस्य

खुलेगा गणितज्ञ आर्यभट्ट की वेधशाला का रहस्य

पटना : पाटलीपु़त्र के इतिहास के पन्नों में दर्ज महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की वेधशाला का रहस्य खोलने के लिए पुरातात्विक विशेषज्ञों और इतिहासविदों ने एक अभियान शुरू कर दिया है। शोध और अनुसंधान की प्रतिष्ठित संस्था काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान, पटना के निदेशक डा विजय कुमार चौधरी ने बताया कि आर्यभट्ट की वेधशाला के प्रसिद्ध स्थल बिहटा, खगौल और मसौढी से पुरातात्विक अन्वेषण शुरू किया गया है। महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की पुस्तक आर्यभट्टियम में पाटलीपुत्र की वेधशाला का उल्लेख है। कालांतर में इसके स्थल का नाम बदल गया। उसी स्थल का सटीक पता लगा कर पुरातात्विक अन्वेषण के माध्यम से रहस्य पर से पर्दा हटाने का प्रयास शुरू किया गया है।

उन्होंने कहा कि पुरातात्विक अन्वेषण के तहत पटना जिले में खगौल, मसौढी और बिहटा के पास के स्थल का अध्ययन किया जा रहा है। स्थलों के नाम के कारण उनके खगोलीय महत्व के अनुरुप वहां तीन प्रमुख वेधशालायें मिलने की संभावना है।

उल्लेखनीय है मसौढ़ी में जुलाई 2009 में पूर्ण सूर्यग्रहण देखने के लिए विश्वभर के खगोलविद, वैज्ञानिक और खगोल घटनाओं के प्रेमी जुटे थे। बिहार में खगोलीय घटनाओं के कई प्रमुख स्थान हैं जिसमें मसौढी का तारेगना, औरंगाबाद का सूर्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं। इसे देखते हुए विधानसभा में सदस्यों ने पर्यटन की संभावनाओं को बल देने के लिए सौर सर्किट विकसित करने की राज्य सरकार से मांग की थी।

चौधरी ने बताया कि मसौढी, खगौल और बिहटा के पास स्थित तारेगनाओं में त्रिकोणीय संबंध हैं। तीनों स्थल 25-25 किलोमीटर की समान दूरी पर स्थित है और बिंदुओं को मिलाकर देखा जाए तो एक त्रिभुज बनता है। बिहटा के पास स्थित तारेगना का टीला अब सोन नदी में चला गया है जो पानी कम होने पर दिखता है। उन्होंने बताया कि आस पास उत्खनन से सूर्य की प्रतिमाएं आदि बरामद हुई हैं। कोलकाता के टकसाल पदाधिकारी डा रेहान अहमद के अनुसार 1926 में यहां खुदाई हुई थी तो छठी ईसा पूर्व के सील लगे हुए सिक्के बरामद किये गये थे।

आर्यभट्ट पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व जन्मे थे। बिहटा और खगौल के आसपास खुदाई में छठी शताब्दी ईसापूर्व के बर्तन, मृदभांड आदि उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। मसौढी तारेगना को वैज्ञानिकों ने खगोलीय नजारे को देखने के लिए सबसे उपयुक्त माना था।

चौधरी कहते हैं कि पुरातात्विक अन्वेषण कार्यक्रम में परिकल्पना खगोल, तारेगना, मसौढी आदि नामों के आधार पर बनाई गयी है। खगोल मतलब ब्रहमांड और तारेगना का अर्थ तारों की गिनती होती है। सारा अध्ययन होने के बाद उत्खनन की प्रक्रिया आगे बढेगी। शुरुआत में खगोल वैज्ञानिक अमिताभ पांडेय और पटना स्थित इंदिरा गांधी तारामंडल के निदेशक अमिताभ घोष इस परियोजना में साथ दे रहे हैं।

आर्यभट्ट का लिखा ग्रंथ आर्यभट्टियम संस्कृत में है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डब्ल्यू यू क्लार्क ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद भी किया था। तारेगनाओं के आस पास उत्खनन से बहुत से रहस्य पर से पर्दा उठेगा। भारत के पहले कृत्रिम उपग्रह का नाम भी महान गणितज्ञ और खगोलविद के नाम पर आर्यभट्ट रखा गया था। चौधरी के अनुसार इस कार्य में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी स्वागत रहेगा। अभी हमने शुरूआत की है। लंबा सफर तय करना है।

सौर सर्किट के विकास के संबंध में पूछे जाने पर राज्य के पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिंटू ने बताया कि इसके बारे में जानकारी जुटाने और विस्तृत योजना रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें तारेगना, औरंगाबाद का प्रसिद्ध सूर्यमंदिर शामिल है। इससे पर्यटकों को भी आकषिर्त करने में मदद मिलेगी। (एजेंसी)

First Published: Sunday, October 7, 2012, 13:00

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