घास से मिली भारत को तितली की नई प्रजाति

घास से मिली भारत को तितली की नई प्रजाति

घास से मिली भारत को तितली की नई प्रजाति  कोलकाता : अमेरिका से 1950 के दशक में गेहूं की खेप के साथ गलती से आई घास से अनजाने में भारत को तितली की एक सुंदर प्रजाति का उपहार मिल गया।

सबसे पहले ब्रिटेन में पाई गई बाथ व्हाइट नाम की यह आकषर्क तितली अब भारत में भी पाई जाती है। इस तितली का नाम इंग्लैंड के शहर बाथ के नाम पर रखा गया है।

तितलियों एवं पतंगों का अध्ययन करने वाले कीट विज्ञानी पीटर स्मेटासेक ने अपनी किताब ‘बटरफ्लाइज ऑन द रूफ ऑफ द वर्ल्ड’ में यह जानकारी दी है।

उत्तराखंड निवासी स्मेटासेक ने अपनी पुस्तक में कहा कि एक बार मैं मैदान में खड़ा होकर एक आगंतुक से बात कर रहा था तभी एक मादा तितली ने कुछ ही मीटर की दूरी पर घास पर अंडे दिए। मैंने इस सुनहरे अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया तथा घास को एकत्र किया और अंडे से पैदा हुए पतंगों को पाला। स्मेटासेक ने पाया कि बाथ व्हाइट प्रजाति की यह तितली जिस घास पर विकसित होती है उनका नाम वर्जिनिया पेपरग्रास और लेपिडियम वर्जिनिकम है।

उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यह घास 1950 में अमेरिका से अनाज के साथ गलती से भारत आ गई थी और तेजी से देश में फैल गई। पुस्तक में लिखा है कि 20वीं सदी में यह घास हिमायल पर्वत श्रंखला में फैल गई और इसके साथ-साथ इलाके में व्हाइट तितलियों की संख्या भी बढ गई।

यह तितली 21 अप्रैल 1961 में नैनीताल के भीमताल कस्बे में सबसे पहले पाई गई थी और इसके बाद ये तितलियां यहां की निवासी बन गईं। यह तितली नेपाल की पूर्वी सीमा में भी पाई जाती है। (एजेंसी)

First Published: Monday, April 29, 2013, 12:00

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