जंगल की आग के कारण तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर

जंगल की आग के कारण तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर

जंगल की आग के कारण तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर  कोलकाता: जंगलों में लगी आग से पैदा हुआ काला कार्बन हिमालय के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का कारण बन सकता है और जमी हुई नदियों के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। जंगल की आग के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले इन परिणामों के बारे में चेतावनी एक नए अध्ययन में दी गई है।

बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में दिवेशा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट कहती है, ‘हिमालय की निचली श्रृंखलाओं में मौजूद बहुत से हिमखंडों, जैसे पीर पंजाल और ग्रेटर हिमालय के जमाव वाले क्षेत्र इलाके में काले कार्बन के जमने के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही तापमान और अवक्षेपण (प्रेसीपिटेशन) में बदलाव भी हो सकता है।’ अपनी जांच के दौरान उन्होंने वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश में स्थित बास्पा बेसिन के जमाव क्षेत्र की ‘परावर्तन क्षमता’ में हुए बदलाव का विश्लेषण किया। यह क्षेत्र जंगलों की भारी आग और उत्तरी भारत में जैविक ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल का शिकार हुआ था।

उनकी रिपोर्ट दर्शाती है कि जमाव क्षेत्र के दर्शनीय इलाके की ‘परावर्तन क्षमता’ में गिरावट वर्ष 2009 के अप्रैल से मई के बीच के समय में वर्ष 2000 से 2012 तक के किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में काफी ज्यादा थी। वर्ष 2009 की गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं वर्ष 2001 से 2010 के बीच के किसी भी अन्य साल की तुलना में कहीं ज्यादा थीं।

वैज्ञानिक ए वी कुलकर्णी कहते हैं, ‘इसकी व्याख्या काले कार्बन के जमाव के जरिए ही की जा सकती है। यह अध्ययन कहता है कि मानवीय या प्राकृतिक कारणों से जमाव क्षेत्र में काले कार्बन के एकत्र होने की वजह से बर्फ की परावर्तन क्षमता में हो रहा बदलाव हिमाचल प्रदेश के बास्पा बेसिन में ग्लेशियरों को प्रभावित कर सकता है।’ पश्चिमी और केंद्रीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई भारतीय राज्यों में मई और जून में जंगलों में भारी आग लग जाती है।

इसके अलावा भारत-गंगा मैदानी इलाकों में भी पेड़ पौधों में भारी आग लग जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे भारी मात्रा में काले कार्बन कण पैदा हो सकते हैं और दक्षिणी हवाओं के कारण ये हिमालय की निचली पर्वत श्रृंखलाओं के जमे हुए हिस्से में पहुंच सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने कहा, ‘यह मौसमी बर्फ और ग्लेशियरों के जमाव क्षेत्र की परावर्तन क्षमता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि काला कार्बन प्राकृतिक धूल की तुलना में कहीं ज्यादा विकिरण सोख लेता है।’ (एजेंसी)

First Published: Friday, July 12, 2013, 09:39

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