Last Updated: Wednesday, August 17, 2011, 10:42

आजकल दिल्ली का जंतर- मंतर सुर्खियों में है. कभी आन्ना हजारे के अनशन को लेकर तो कभी धरना प्रदर्शन के लिए. पर इसका निर्माण ग्रहों की गति नापने के लिए और सूर्य की मदद से वक्त और ग्रहों की स्थिति बताने के लिए किया गया था.
दिल्ली के जंतर-मंतर का निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने कराया था. इसका निर्माण सन् 1727 में शुरू हुआ और सन् 1734 में बनकर तैयार हो गया था. इस वक्त भारत में दो जंतर-मंतर हैं, एक जयपुर में है, जो विश्व विरासत सूची में शामिल है और दूसरा दिल्ली में है.
यहां कई तरह के उपकरण लगाए गए हैं, जिसमे सम्राट यंत्र प्रमुख है. मिस्र यंत्र, साल के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन को नापता है. इसके अलावा यहां नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र इत्यादि प्रमुख हैं.
इसके अलावा यहां खगोलीय उपकरणों का एक संग्रह है, जो समय को मापने, विभिन्न ग्रहों की स्थिति पर नजर रखने, मौसम की भविष्यवाणी और खगोलीय हलचलों का पता लगाने के लिए बनवाया गया था. सभी उपकरणों को पत्थर और संगमरमर से बनाया गया है. जंतर-मंतर का सबसे बड़ा ढांचा 90 फीट ऊंचा है. इस खम्भे की छाया इस तरीके से प्लॉट की गई है कि दिन का सही समय इसी से पता चलता है. इसे सम्राट जंतर कहते हैं.
यहां एक ध्रुव यंत्र भी है जो हमारे सौरमंडल के ग्रहों की स्थिति के अनुसार रेखांकित किया गया है. इस तरह जंतर-मंतर में ऐसे कई यंत्र हैं, जो खगोल विज्ञान को पूर्ण रूप से दर्शाते हैं. जंतर- मंतर बुद्धिमान कलाकृति का उत्कृष्ट नमूना है.
सबसे आश्चर्य की बात ये कि यहां के सभी उपकरण बिना किसी मशीन की मदद से बनाया गया है. उससे भी बड़ी बात कि ये उपकरण सौ फीसदी सही है. यह दिल्ली के संसद मार्ग पर स्थित है.
First Published: Wednesday, August 17, 2011, 16:14