Last Updated: Saturday, June 30, 2012, 14:39

वाशिंगटन : वैज्ञानिकों ने पुराने उल्का पिंड से धरती पर बने सबसे बड़े गड्ढे को खोज निकालने का दावा किया है। उनका मानना है कि इस क्रेटर का निर्माण लगभग तीन अरब साल पहले हुआ था।
यह ज्वालामुखीय क्रेटर ग्रीनलैण्ड के मैनीसॉक शहर के पास लगभग 100 किमी तक फैला हुआ है। डेनमार्क के शोधकर्ता एडम गार्द ने बताया कि क्षरण होने से पहले यह क्रेटर लगभग 500 किमी से अधिक चौड़ा था।
ऑवर अमेजिंगपलैनेट को गार्द ने बताया कि इस क्रेटर का निर्माण 30 किमी चौड़े उल्का पिंड से हुआ था जो अगर आज गिरता तो भारी जनहानि होती।
पिंड के गिरने के तीन अरब साल बाद भी वह जमीन अपनी वास्तविक जगह से लगभग 25 किमी नीचे धंसी हुई है। ‘डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड जियोलॉजिकल सर्वे’ में शोधकर्ता गार्द ने बताया कि उल्का पिंड के गिरने से उत्पन्न तरंगों और उष्मा के प्रभाव के अवशेष को अभी भी देखा जा सकता है।
कई दिनों से ग्रीनलैण्ड के भूविज्ञान का अध्ययन कर रहे गार्द ने कई ऐसे विचित्र लक्षण देखे जिनसे कोई तात्पर्य नही निकल रहा था। सितम्बर 2009 में वह उल्का पिंड से होने वाले प्रभाव को सामने लेकर आए।
उनके दल ने कई वर्षों के नमूने एकत्रित किए और उसे ‘अर्थ एंड प्लैनेट्री साइंस लेटर्स’ के जर्नल में प्रकाशित कराया।
इस क्रेटर की खोज से पहले दक्षिण अफ्रीका का व्रेडफोर्ट सबसे पुराना केट्रर माना जाता था।
समझा जाता है कि यह करीब दो अरब साल पुराना था। 300 किमी चौड़े इस विशाल क्रेटर के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। (एजेंसी)
First Published: Saturday, June 30, 2012, 14:39