Last Updated: Sunday, April 1, 2012, 05:27
नई दिल्ली: दिल की बीमारी से जूझ रहे बुजुर्गों और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को सर्जरी के लिए भारी जोखिम मोल लेना पड़ता है, लेकिन अब भारत में भी ट्रांसकैथेटर ऑरटिक वाल्व इंप्लांटेशन’(टीएवीआई) तकनीक का इस्तेमाल शुरू होने से ऐसे लोगों के लिए बेहद आसानी होगी, हालांकि अभी इसकी कीमत चिंता का विषय बनी हुयी है।
टीएवीआई तकनीक का इस्तेमाल करके हृदय में वाल्व लगा दिया जाता है और इसमें किसी तरह की सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। निडल के माध्य से चिकित्सक जांघ की नस से वाल्व स्थापित कर देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में महज 45 मिनट का वक्त लगता है और तीन से चार दिनों के भीतर मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।
यह देखा गया है कि 70 साल की उम्र के बाद बुजुर्गों में सर्जरी के सफल होने की संभावना कम होती है। गुर्दे एवं फेफड़े की बीमारियों, मधुमेह एवं दमा से पीड़ित लोगों में ओपन हार्ट सर्जरी जोखिम भरी हो जाती है।
इस तकनीक के जनक फ्रांस के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एलन जी क्राइबर के साथ टीएवीआई पर काम कर चुके डॉक्टर विवेक गुप्ता ने कहा, ‘यह तकनीक निश्चित तौर पर बुजुर्गों एवं कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए एक बड़ा वरदान है। इसके लिए किसी तरह की चीर-फाड़ करने की जरूरत नहीं होती, बल्कि बेहद आसानी से जांघ की नस से वाल्व स्थापित कर दिया जाता है।’
दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ-अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुप्ता ने कहा, ‘हम लोगों ने इस तकनीक को लेकर परीक्षण किए है, जो सफल रहे हैं। मैंने हाल ही में डॉक्टर क्राइबर के साथ टीएवीआई तकनीक के जरिए वाल्व लगाया था। इस तकनीक में जोखिम ना के बराबर होता है।’
(एजेंसी)
First Published: Sunday, April 1, 2012, 10:58