Last Updated: Tuesday, July 10, 2012, 23:27

वाशिंगटन: एक नए सर्वेक्षण से पता चला है कि फेसबुक के इस्तेमाल से अवसाद का कोई जोखिम नहीं है और `फेसबुक तनाव` का पहले खड़ा किया गया हौव्वा बेबुनियाद है। `द यूनिवर्सिटी आफ विस्कोन्सिन के स्कूल आफ मेडिसीन एंड पब्लिक हेल्थ` के एक अध्ययन में यह सुझाव दिया गया कि मरीजों और उनके अभिभावकों को `फेसबुक तनाव` के बारे सचेत करना गैरजरूरी है।
शोध पत्रिका `जर्नल ऑफ एडोलीसेंट हेल्थ` की रपट के मुताबिक पिछले साल `अमेरिकन एकेडमी आफ पेडियेट्रिक` ने सोशल मीडिया के बच्चों और किशोरों पर होने वाले प्रभाव पर एक रिपोर्ट जारी किया था, जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि फेसबुक के इस्तेमाल से तनाव बढ़ सकता है।
विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय के बयान के मुताबिक लॉरेन जेलेनचीक और मेगन मोरेनो ने 18-23 उम्र के 190 बच्चों से पिछले साल जनवरी और फरवरी महीने के बीच सात दिनों की अवधि में 43 संदेश भेजकर सवाल पूछा। उनसे यह पूछा गया कि क्या वे इस वक्त ऑन लाइन हैं? कितने मिनट से ऑन लाइन हैं? और वे इंटरनेट पर क्या करते हैं?
इस सर्वेक्षण में पाया गया कि ये बच्चे ऑन लाइन रहने के दौरान आधे समय फेसबुक पर रहते हैं। जब जेलेनचीक और मोरेनो ने इन आंकड़े को तनाव से जोड़कर देखा तो उन्हें `फेसबुक तनाव` की कोई संभावना नजर नहीं आई।
`विस्कोन्सिन स्कूल आफ मेडिसीन एंड पब्लिक हेल्थ स्टडी` से हाल ही में लोक स्वास्थ्य में परास्नातक की डिग्री लेने वाले जेलेनचिक का कहना है कि यह अध्ययन सोशल नेटवर्किंग साइट्स और अवसाद के जोखिम के सम्बंध पर पहला वैज्ञानिक साक्ष्य है।
वहीं शिशु चिकित्सक मोरेनो ने अभिभावकों को सुझाव दिया है कि बच्चों के सोशल मीडिया व्यवहार को उसकी पूरी दिनचर्या के आधार पर समझने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि यदि बच्चे की मनोवृत्ति में विशेष बदलाव नहीं आता है, उनके दोस्तों की संख्या ठीक-ठाक है और वह स्कूल में मिला काम नियमित तरीके से करता है, तो अभिभावकों को अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 10, 2012, 23:27