Last Updated: Wednesday, November 16, 2011, 11:16

देहरादून : भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) में वैज्ञानिकों की एक टीम ने पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक से पेट्रोलियम बनाने की एक नई प्रौद्योगिकी विकसित की है। करीब एक दशक के लंबे प्रयोग के बाद आईआईपी के छह वैज्ञानिकों की टीम अपने निदेशक मधुकर ओंकारनाथ गर्ग के नेतृत्व में यह कामयाबी हासिल की है।
उन्होंने उत्प्रेरक का एक संयोजन विकसित किया जो प्लास्टिक को गैसोलीन या डीजल या एरोमेटिक के साथ-साथ एलपीजी (रसोई गैस) के रूप में एक गौण उत्पाद में तब्दील कर सकता है। आईआईपी के प्रवक्ता एसके शर्मा ने बुद्धवार को बताया, हमारा मानना है कि बेकार हो चुके प्लास्टिक से पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करना, हमारे वैज्ञानिकों की एक बड़ी उपलब्धि है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस परियोजना का प्रायोजक गेल भी बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करने के लिए परियोजना की अर्थिक व्यवहारिकता को तलाश रही है। शोध दल के सदस्य सनत कुमार ने बताया, इस प्रौद्योगिकी की खास विशेषता यह है कि तरल ईंधन-गैसोलीन एवं डीजल-ईंधन के यूरो 3 मानकों को पूरा करता है और उत्प्रेरकों एवं संचालन मापदण्ड में बदलाव के जरिए इसी कच्चे पदार्थ से विभिन्न उत्पाद प्राप्त किए जा सकते हैं।उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह प्रक्रिया पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी भी है क्योंकि इससे कोई जहरीला पदार्थ उत्सर्जित नहीं होता है।
उन्होंने बताया कि 100 फीसदी रूपांतरण प्राप्त किया गया है और अवशेष बचना कच्चे माल की गुणवत्ता पर निर्भर है, जो स्वच्छ कच्चा माल की स्थिति में आधा प्रतिशत से भी कम हो सकता है।
इस परियोजना में शामिल एक अन्य वैज्ञानिक श्रीकांत ननोती ने बताया, यह प्रक्रिया छोटे एवं बड़े उद्योग, दोनों के अनुकूल है। गौरतलब है कि ‘वेस्ट प्लास्टिक्स टू फ्यूल एंड पेट्रोकेमिकल्स’ नाम से इस परियोजना की व्यवहार्यता पर 2002 में कार्य शुरू किया गया था और इस तथ्य तक पहुंचने में चार साल का वक्त लगा कि बेकार हो चुके प्लास्टिक को ईंधन में तब्दील करना संभव है।
(एजेंसी)
First Published: Wednesday, November 16, 2011, 16:47