Last Updated: Friday, March 22, 2013, 09:11

नई दिल्ली: होली को लेकर उल्टी गिनती शुरू हो गई है और बाजारों में रंगों की बिक्री अभी से शुरू हो गई है। अभी तक खरीदारी ने हालांकि बहुत जोर नहीं पकड़ा है, क्योंकि होली पर महंगाई का रंग जो चढ़ गया है! वहीं, रासायनिक रंग सेहत भी बिगाड़ सकते हैं, इसलिए लोगों की दिलचस्पी अबीर और गुलाल में है।
इस बार महंगाई से दुकानदारी में काफी फर्क दिख रहा है। कुछ वर्ष पहले लोग त्योहार करीब आते देख रंगों की जमकर खरीदारी करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं दिख रहा है। दुकानदारी में कमी से बाजार में नकली रंगों का चलन शुरू हो सकता है, लेकिन उन्होंने अपनी दुकान में नकली रंग बेचने की जहमत नहीं उठाई।
जानकारों की माने तो नकली रंगों की कीमत कम होती है लेकिन यह त्वचा को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। सस्ते दामों में रंगों को बिकता देख लोग इसके ज्यादा मुरीद हो जाते हैं। इसलिए मुनाफे के लिए दुकानदार इसे बेचने से परहेज नहीं करते।
कई सालों से बाजार में होली पर टेसू के फूलों से बने रंगों के साथ प्राकृतिक रंग तो लगभग नदारद से हो गए हैं। उनके स्थान पर रासायनिक रंगों ने कब्जा जमा लिया है। होली पर रासायनिक रंगों की तड़क-भड़क ने फागुनी रंगत को फीका कर दिया है। ये रंग जहां सेहत के लिए हानिकारक हैं वहीं दूसरी ओर त्यौहार के प्रेम और सौहार्द को भी फीका कर रहे हैं।
त्वचा रोग विशेषज्ञ भी लोगों को चंद रुपये बचाने के लिए सस्ते रंगों की खरीद से बचने की सलाह दे रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, पहली नजर में सस्ता लगने वाले ये रंग व्यक्ति की त्वचा पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकते हैं, जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ सकता है। यदि मिलावटी रंग आंखों में चला जाए तो आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा बढ़ सकता है, जबकि शरीर के अन्य हिस्सों में इससे एलर्जी और दूसरी समस्याएं हो सकती हैं। (एजेंसी)
First Published: Friday, March 22, 2013, 09:11