H1B वीजा से भारतीय IT कंपनियां को नुकसान

H1B वीजा से भारतीय IT कंपनियां को नुकसान

वाशिंगटन : अमेरिकी कामकाजी परिमट के बाद सर्वाधिक मांग वाले एच1बी वीजा में प्रस्तावित संशोधनों से इन पर निर्भर भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां बुरी तरह प्रभावित होंगी। व्यापक आव्रजन सुधार (सीआईआर) के तहत परिवर्तनों से उन कंपनियों के लिए एच1बी वीजा के इस्तेमाल पर रोक लगेगी जिनके पास इस श्रेणी के तहत श्रम शक्ति का उच्च अनुपात है। ज्यादातर भारतीय कंपनियां इस वर्गीकरण के अंतर्गत आएंगी।

यदि संशोधन मसौदे को कांग्रेस से मंजूरी मिल जाती है और अमेरिकी राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर यह कानून का रूप ले लेता है तो कंपनियों को एच1बी वीजा हासिल करने के लिए अधिक शुल्क भी देना पड़ेगा। ‘बॉर्डर सिक्योरिटी, इकोनामिक अपरच्यूनिटी एंड इमिग्रेशन मॉडर्नाइजेशन एक्ट 2013’ की 17 पृष्ठ वाली रूपरेखा के अनुसार एच1 बी प्रणाली का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अमेरिका कार्रवाई करेगा।

विधेयक के मसौदे के अनुसार यदि नियोक्ता के पास 50 या इससे अधिक कर्मचारी हों और उसके पास 30 प्रतिशत से अधिक लेकिन 50 प्रतिशत से कम एच1बी या एल1 कर्मचारी हों (जिनकी ग्रीन कार्ड याचिका लंबित नहीं हो) तो नियोक्ता को इन दोनों स्थितियों में से एक में 5,000 डॉलर प्रति अतिरिक्त कर्मचारी शुल्क अदा करना पड़ेगा।

यदि नियोक्ता के पास 50 या अधिक कर्मचारी हों और इन कर्मियों में 50 प्रतिशत से अधिक एच1 बी या एल1 कर्मचारी हों, जिनकी ग्रीन कार्ड याचिका लंबित नहीं हो तो कंपनियों को इन दोनों स्थितियों में से एक में प्रति अतिरिक्त कर्मचारी 10,000 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा। इस तरह टीसीएस, विप्रो और इन्फोसिस जैसी बड़ी भारतीय कंपनियों को प्रत्येक अतिरिक्त एच1 बी कर्मी के लिए 10,000 डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा।

First Published: Wednesday, April 17, 2013, 12:38

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