Last Updated: Monday, July 2, 2012, 13:19

न्यूयार्क : उग्रवादियों के हक्कानी नेटवर्क से संबंध तोड़ने के पाकिस्तान के इंकार के बाद, अमेरिका के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ने कहा है कि समस्याओं से जूझ रहे देश की सेना अमेरिका से मदद लेने और अफगान तालिबान को सहयोग देने का दोहरा खेल खेल रही है।
समाचार पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने ‘क्रिपल्ड, कैओटिक पाकिस्तान’ शीषर्क से अपने संपादकीय में कहा है कि पाकिस्तान लंबे समय से उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के ओबामा प्रशासन के आग्रहों की अनदेखी करता जा रहा है। ये उग्रवादी सीमा पार कर, अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी बलों पर हमले करते हैं।
संपादकीय के मुताबिक हाल ही में तालिबान उग्रवादियों ने सीमा पार से हमले कर पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला और इस घटना के बाद इस्लामाबाद को चाहिए कि वह शिकायत गंभीर रूप से ले।
संपादकीय में कहा गया है, चरमपंथियों से मुकाबले का साझा आधार होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी यह मानते हैं। उन्हें यह देखने की जरूरत है कि अफगानिस्तान में फैला उग्रवाद खुद उनके देश के लिए खतरा है और हजारों पाकिस्तानी सैनिक तथा नागरिक इसकी भेंट चढ़े हैं।
समाचार पत्र के अनुसार पाकिस्तानी सेना ने हक्कानी और अन्य उग्रवादियों से संबंध तोड़ने से मना कर दिया है जबकि उग्रवादी इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं और देश को स्थिर करने के अमेरिका के प्रयासों के लिए सबसे बड़ा खतरा भी हैं।
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान का राजनीतिक तंत्र निष्क्रिय हो गया है जबकि उसे सीमाई खतरे से तेजी से निपटने की जरूरत है।
संपादकीय में कहा गया है कि अफगानिस्तान में जब तक भारत की गतिविधियां पारदर्शी हैं तब तक उसकी बढ़ती भूमिका मायने रखती है और भारतीय कंपनियां युद्ध प्रभावित देश में निवेश कर रही हैं।
अखबार ने लिखा है कि पाकिस्तान वर्ष 2001 के बाद अमेरिका की स्थिति का लाभ उठा सकता था जिसे अफगानिस्तान में अलकायदा और तालिबान को हराने में मदद की जरूरत है। इस तरह पाकिस्तान के पास एक अधिक स्थिर देश के रूप में विकसित होने का अवसर था।
पाकिस्तान ने अरबों डालर की मदद भी ली है। ‘लेकिन उनकी सेना लगातार दोहरा खेल खेल रही है तथा राजनीतिज्ञ खामोश बैठे हैं। एक ओर अमेरिका से धन लिया गया और दूसरी ओर अफगान तालिबान की मदद की गई।’
संपादकीय के अनुसार, जल्द ही बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे। और पाकिस्तान को अपने शत्रुओं से बचाव करना मुश्किल हो जाएगा।
संपादकीय के मुताबकि, अमेरिका के पास पाकिस्तान और उसकी सेना के साथ काम करने की कोशिश के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। ओबामा प्रशासन के अधिकारियों का धैर्य खो रहा है और अमेरिका पाकिस्तान से दूर नहीं हो सकता क्योंकि उसे अफगानिस्तान के लिए अहम आपूर्ति मार्ग फिर से खोलने में तथा तालिबान से शांतिवार्ता में शामिल होने के आग्रह में उसकी मदद की जरूरत है ताकि वर्ष 2014 के अंत तक सैनिकों को अफगानिस्तान से हटाया जा सके। (एजेंसी)
First Published: Monday, July 2, 2012, 13:19