Last Updated: Wednesday, February 8, 2012, 10:24

इस्लामाबाद : भारत जैसे देशों में शीर्ष न्यायालयों द्वारा सुनाए गए फैसलों का हवाला देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को अपील दायर करके उनके खिलाफ अवमानना के आरोप तय करने के लिए उन्हें समन करने वाले आदेश को निलंबित करने की मांग की। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले फिर से खोलने में नाकाम रहने पर गिलानी को समन भेजकर 13 फरवरी को पेश होने के लिए कहा था।
गिलानी के वकील एतजाज अहसान द्वारा दायर 200 पेज की अपील में सुप्रीम कोर्ट से प्रधानमंत्री के 13 फरवरी को उनके सामने पेश होने संबंधी आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई। अहसान ने अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने भारत, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका में शीर्ष न्यायालयों द्वारा सुनाए गए पूर्व फैसलों के आधार पर यह अपील तैयार की है। भारत में उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने का प्रावधान है।
अहसान ने कहा कि मैंने आज एक अपील दायर की है। मैंने 50 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों का हवाला दिया है और उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ खास कारण बताए हैं। अहसान ने इस मामले में अपील पर जल्द सुनवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को भेजे गए समन के खिलाफ फैसला देना और कार्यवाही पर रोक लगाना अदालत पर निर्भर करता है। इस अपील में अदालत से गिलानी पर आरोप तय करने को स्थगित करने की मांग की गई है।
अपील में कहा गया कि गिलानी को अपने बचाव में बात कहने का अवसर दिये बगैर आदेश दिया गया। दो फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की पीठ ने गिलानी को समन भेजकर 13 फरवरी को हाजिर होने के लिए कहा था ताकि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर आदेश पर कदम नहीं उठाने को लेकर अवमानना के मामले में गिलानी पर आरोप तय किये जा सकें।
इसके बाद सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव बढ गया था।
अगर गिलानी अवमानना के मामले में दोषी ठहराए जाते हैं तो उनहें छह महीने तक के कारावास की सजा झेलनी पड़ सकती है और पांच साल तक उनके किसी सार्वजनिक पद पर काबिज होने पर रोक लग सकती है। अपील में 50 से अधिक कानूनी और संवैधानिक बिन्दुओं को उठाया गया जो इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं कि जरदारी के खिलाफ मामले फिर से नहीं खोलने पर प्रधानमंत्री संविधान के खिलाफ नहीं गए। अहसान ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए अदालत के सामने पेश होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अदालत की अवमानना कानून के मुताबिक, अपील दायर होने के बाद नई पीठ गठित करने की जरूरत होती है। अहसान ने कहा कि प्रतिवादी को 30 दिन के भीतर अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर करनी होती है।
उन्होंने कहा कि मैंने 30 दिन मांगे लेकिन पीठ ने मुझे केवल 11 दिन दिए। हमने जल्द से जल्द अपील दायर करने की कोशिश की ताकि वर्तमान पीठ से बड़ी पीठ गठित हो सके। अहसान ने कहा कि इस मामले की वर्तमान सुनवाई में शामिल न्यायाधीशों को छोड़कर नौ न्यायाधीश हैं जो मामले की सुनवाई के लिए नई पीठ गठित कर सकते है..नई पीठ में मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी निश्चित रूप से शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट सरकार पर स्विट्जरलैंड में जरदारी के खिलाफ कथित धनशोधन के मामले फिर से खोलने का दबाव बना रहा है क्योंकि न्यायालय ने दिसंबर 2009 में पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में दी गई आममाफी को खारिज कर दिया।
(एजेंसी)
First Published: Wednesday, February 8, 2012, 15:54