Last Updated: Wednesday, July 31, 2013, 00:22
लंदन : आयरलैंड के राष्ट्रपति ने कैथलिक बहुल देश में जीवन रक्षा के लिए आवश्यक होने पर गर्भपात की अनुमति देने वाले ऐतिहासिक विधेयक पर आज हस्ताक्षर कर दिया। इसके साथ ही देश का पहला गर्भपात संबंधी कानून अस्तित्व में आ गया। अस्पताल द्वारा गर्भपात करने से इनकार करने के कारण पिछले वर्ष एक भारतीय दंतचिकित्सक की मौत होने के बाद यह कानून अस्तित्व में आया है।
‘गवर्नमेंट्स प्रोटेक्शन ऑफ लाइफ ड्यूरिंग प्रेगनेंसी बिल’ के संदर्भ में राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, राष्ट्रपति (माइकल डी.) हिगिंस ने आज विधेयक पर हस्ताक्षर कर उसे कानून का रूप दे दिया। आयरलैंड की संसद के दोनों सदनों ने इस महीने विधेयक को स्पष्ट बहुमत से पारित कर दिया था। यह कानून ऐसे मामलों में गर्भपात की अनुमति देता है जिसमें डॉक्टर के अनुसार भ्रूण का विकास होते रहने से मां के जीवन को खतरा हो।
पिछले वर्ष गर्भपात के कारण रक्त विषाक्तता होने से 28 अक्तूबर को 31 वर्षीय सविता हलप्पानवार की मौत हो गई थी। मौत के मामले में हुई जांच से यह बात सामने आयी कि सविता का गर्भपात करने के अनुरोध को कई बार मना कर दिया गया। नया कानून ब्रिटिश शासनकाल के 146 वर्ष पुराने कानून का स्थान लेगा। नए कानून में जीवन के लिए खतरनाक परिस्थितियों को कम करने के लिए भी गर्भपात की मंजूरी दी गई है।
हाल तक देश में लागू वर्ष 1867 के ब्रिटिश कालीन कानून में गर्भपात के लिए अधिकतम उम्र कैद की सजा थी। नए कानून में सजा को कम करके अधिकतम 14 वर्ष कारावास कर दिया गया है । हिगिंस ने विधेयक पर सलाह लेने के लिए कल ‘काउंसिल ऑफ स्टेट’ की बैठक बुलायी थी। राष्ट्रपति द्वारा विधेयक की संवैधानिकता की जांच करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय को भेजने पर चर्चा हुयी होगी।
‘आयरिश टाइम्स’ की खबर के अनुसार, राष्ट्रपति की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में 24 सदस्यीय शक्तिशाली काउंसिल के 21 सदस्यों ने हिस्सा लिया। बैठक साढ़े तीन घंटे तक चली। बैठक में शामिल हुए 21 सदस्यों में सात सदस्य न्यायपालिका के भी थे। वर्ष 1937 में संविधान अंगीकृत किए जाने के बाद आयोजित यह सबसे बड़ी काउंसिल है। काउंसिल की बैठक की बातचीत को गोपनीय रखा गया है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, July 31, 2013, 00:22