Last Updated: Thursday, November 10, 2011, 05:14
वाशिंगटन: गिलगित बाल्तिस्तान के क्षेत्र में चीन के वस्तुत: नियंत्रण का दावा करते हुए वाशिंगटन आधारित एक संगठन ने अमेरिकी सांसदों से कहा कि यदि चीन के इस अवांछित हस्तक्षेप को चुनौती नहीं दी गई तो इसका भी मामला तिब्बत और पूर्व तुर्किस्तान जैसा हो जाएगा।
अमेरिकी कांग्रेस के टॉम लांटोस मानवाधिकार आयोग के समक्ष इंस्टीट्यूट फॉर गिलगित बाल्तिस्तान स्टडीज ने गिलगित-बाल्तिस्तान के असैन्यकरण, वास्तविक स्वायत्ता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने, उग्रवादी तत्वों की वापसी, प्रांत के कानूनों को फिर से स्थापित करने तथा लद्दाख एवं गिलगित बाल्तिस्तान के लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा देने की बात कही।
एशिया के मूल नागरिकों पर टॉम लांटोस मानवाधिकार आयोग की सुनवाई में सेंगे सेरिंग ने कहा, ‘अमेरिका को लद्दाख और गिलगित बाल्तिस्तान के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक चैनल खोलने के लिए भारत और पाकिस्तान को रजामंद करना चाहिए तथा गिलगित-बाल्तिस्तान क्षेत्र के लोगों के अधिकारों की रक्षा में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को बढ़ाने के लिए शक्तिशाली बनाना चाहिए।’
उन्होंने कहा इंस्टीट्यूट को लगता है कि गिलगित बाल्तिस्तान में पाकिस्तान का हस्तक्षेप पर्याप्तरूप से कम होने से वहां की मूल संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और उग्रवादियों तथा अरब कबीलों का प्रभाव बेअसर होगा जो इस्लामी मान्यताओं के नाम पर लोगों पर दबाव बना रहे हैं।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, November 10, 2011, 16:50