Last Updated: Sunday, June 9, 2013, 11:12
न्यूयॉर्क : श्रीलंका में गृहयुद्ध के बाद से वहां रहने वाले तीस लाख तमिलों की ‘बेहद खराब’ हाल के बारे में बताते हुए तमिलनाडु के एक सांसद ने अमेरिकी अधिकारियों से अपील की है कि वे इस मुद्दे को सुलझाने के लिये भारत के साथ काम करें। फोरम्स ऑफ पार्लियामेंटरियन्स और फिक्की द्वारा बोस्टन स्थित मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आयोजित नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए मनिक्कम टैगोर तमिलनाडु के विरूढनगर चुनावी क्षेत्र से सांसद हैं। मनिक्कम अमेरिका गए सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य हैं।
टैगोर ने कहा कि हालांकि युद्ध खत्म हुए चार साल हो गए हैं लेकिन सत्ता के हस्तांतरण और तमिलों को शक्ति देने के मामले में श्रीलंकाई सरकार अपने कदम पीछे खींच रही है। तमिलों से उनके अपने ही देश में ‘दूसरे दर्जे के नागरिक’ की तरह बर्ताव किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘युद्ध को खत्म करने में जो जल्दबाजी दिखाई गई वह तमिलों के पुर्नवास के मामले में नहीं दिखाई गई।’
टैगोर ने कहा, ‘मैंने अमेरिका के उप विदेशमंत्री विलियम बर्न्सं और सांसद एडवर्ड रोयेस को इस बात से अवगत कराया कि श्रीलंकाई प्रशासन को दयनीय और मूक बन चुके विस्थापित तमिलों की खातिर एक समयबद्ध कार्यक्रम की ओर प्रतिबद्ध बनाने के लिए अमेरिका और भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिये। उन्होंने कहा, ‘तीस लाख तमिल असुरक्षा और अनिश्चितता के बीच बेहद दयनीय स्थिति में हैं। राजपक्षे सरकार ने उनकी तर्कसंगत और उचित मांगें पूरी करने के लिए प्रयास नहीं किए। दोनों नेता और सहायक विदेशमंत्री रॉबर्ट ब्लेक इस बात पर सहमत हैं कि इस मुद्दे पर अमेरिका और भारत का एकसाथ मिलकर काम करना शीर्ष प्राथमिकता है।’ श्रीलंका में दशकों तक चला गृहयुद्ध मई 2009 में लिट्टे के प्रमुख वी प्रभाकरण समेत अन्य शीर्ष नेताओं की मौत के साथ खत्म हुआ था। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने बेहद आलोचनात्मक प्रस्ताव पारित करते हुए श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान हुए कथित युद्ध अपराधों की ‘स्वतंत्र और विश्वसनीय जांच’ करने के लिए कहा। टैगोर ने कहा कि अमेरिकी नेता उनके इस मत से सहमत थे कि श्रीलंकाई सरकार को उत्तरी प्रांतीय परिषद में होने वाले चुनावों की निगरानी के लिए स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को आमंत्रित करना चाहिए।
कांग्रेसी सांसद ने दावा किया कि राजपक्षे सरकार सैन्य और सिंहली समूहों पर निर्भर है उसे तमिलों की चिंता नहीं है। उन्होंने कहा, ‘शक्तियों के हस्तांतरण से जुड़े राजीव-गांधी जयवर्धने समझौते पर 1987 में हस्ताक्षर हुए थे और उसके बाद आने वाली श्रीलंकाई सरकारों ने इसे कोई खास सम्मान नहीं दिया और इस बड़े प्रावधान को लागू करने की जहमत नहीं उठाई।’’ इससे पहले इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस की तमिलनाडु शाख की कार्यकारी समिति के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश मीडिया और इंटरनेट पर एक ‘गलत अभियान’ चलाया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी श्रीलंकाई तमिलों की विरोधी है। उन्होंने प्रवासी तमिलों से कहा कि वे सच उजागर करके टविट्र और सोशल मीडिया पर चल रहे झूठी आलोचनाओं की धार को कम कर दें। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 9, 2013, 11:12