Last Updated: Monday, January 16, 2012, 13:55
ज़ी न्यूज ब्यूरो इस्लामाबाद : भ्रष्टाचार के मसले पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ कार्रवाई करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का अनुपालन नहीं करने पर उसकी ओर से जारी अवमानना नोटिस के बाद प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सोमवार को इस्तीफे की पेशकश कर दी। एआरवाई न्यूज के मुताबिक गिलानी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था और संसद को बचाने का हवाला देते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की।
'जियो न्यूज' ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान इस्तीफे की पेशकश की। उसके मुताबिक दोनों नेताओं ने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर चर्चा की। पाकिस्तान के सत्ताधरी गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों ने भी आपस में बैठक की और फैसला किया कि गिलानी 19 जनवरी को अदालत के समक्ष हाजिर होंगे।
सर्वोच्च न्यायालय ने गिलानी को निर्देश दिया था कि भ्रष्टाचार के मामले में राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) के तहत माफी पाने वाले जरदारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। गिलानी को न्यायालय ने अपना यह निर्देश न मानने के लिए अवमानना का नोटिस जारी किया है। साथ ही उन्हें 19 जनवरी को न्यायालय में पेश होने का निर्देश दिया।
समाचार पत्र डॉन ने कानून मंत्री मौला बक्स चांडिओ के हवाले से बताया है कि अदालत के नोटिस पर सरकार कानूनविदें की राय लेगी और कानून तथा संविधान के मातहत ही अगला कदम उठाएगी। एनआरओ वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जारी किया था। 'जियो न्यूज' के अनुसार, सात न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने सोमवार को अध्यादेश को लागू किए जाने से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिए।
महान्यायवादी मौलवी अनवरूल हक ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि गत 10 जनवरी को इस मामले में अदालत की ओर से दिए गए छह विकल्पों के बारे में उन्हें सरकार की ओर से कोई दिशा-निर्देश नहीं मिला था। इससे पहले 10 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यादेश पर अपने पूर्ववर्ती फैसले को लागू नहीं करने के लिए नाखुशी जताई थी और यह मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया था।
न्यायालय ने सरकार को आम माफी के कानून पर अपने निर्णय को 10 जनवरी, 2012 तक लागू करने का आदेश दिया था। सरकार से एनआरओ के तहत बंद किए गए मामले दोबारा खोलने को भी कहा गया था। न्यायालय ने सरकार को यह भी आदेश दिया था कि वह राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ मामले खोलने के लिए स्विट्जरलैंड सरकार को पत्र लिखे।
अध्यादेश पर अपने निर्णय के क्रियान्वयन के लिए न्यायालय ने सरकार को सात दिन का समय दिया था और रिपोर्ट पेश करने को कहा था। पांच न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने छह विकल्प रखे थे, जिसमें राष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के उल्लंघन के लिए कार्रवाई, मुख्य कार्यकारी व कानून सचिव के खिलाफ अध्यादेश पर दिए गए निर्णय को लागू नहीं करवाने के लिए अवमानना की कार्रवाई शुरू करने और उन्हें संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराने का विकल्प शामिल था।
First Published: Tuesday, January 17, 2012, 00:15