Last Updated: Tuesday, September 17, 2013, 12:33

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादर मुल्ला को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाते हुए विशेष न्यायाधिकरण के फैसले को बदल दिया जिसने उसे उम्रकैद की सजा सुनायी थी।
मुख्य न्यायाधीश एम मुजम्मिल हुसैन ने कहा, ‘उसे मौत की सजा दी जाती है।’ 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम के दौरान ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ के अब तक के पहले मुकदमे की शीर्ष अदालत ने समीक्षा की है।
जमात का चौथा शीर्ष नेता मुल्ला ऐसा पहला नेता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार दिया है और जिसकी खुद को सभी आरोपों से बरी किए जाने की अपील को खारिज कर दिया गया । फैसले के मुताबिक, मुल्ला को छह आरोपों में से केवल एक में दोषी नहीं पाया गया। शीर्ष अदालत ने इससे पहले देश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की ओर से चार आरोपों पर सुनायी गयी सजा को बरकरार रखा तथा छठे आरोप के लिए उसे सुनाए गए मृत्युदंड को भी बरकरार रखा ।
बांग्लादेश में दो अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए आजादी के संघर्ष के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के रसूखदार आरोपियों के खिलाफ सुनवाई कर रहे हैं और अब्दुल कादर मुल्ला का मामला समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट आने वाला पहला ऐसा मामला है।
पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध करने वाली कट्टरपंथी पार्टी जमात ए इस्लामी के सहायक महासचिव 65 वर्षीय मुल्ला के बारे में दिए गए न्यायाधिकरण के फैसले से खासा विवाद उठ गया था। 1971 के दौर के बुजुर्गों और युवा पीढ़ी ने फैसले का विरोध किया क्योंकि उन्हें लगता है कि मुल्ला ने जो अपराध किए हैं उनकी तुलना में सजा अधिक कठोर नहीं है। व्यापक विरोध प्रदर्शनों के चलते सरकार को युद्ध अपराध मामलों की सुनवाई संबंधी कानून में संशोधन करना पड़ा और फैसले को चुनौती देने की बचाव पक्ष को मंजूरी भी दे दी गई। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, September 17, 2013, 10:39