Last Updated: Wednesday, September 7, 2011, 04:36
ढाका : भारत और बांग्लादेश ने लंबे समय से चली आ रही सीमा समस्या को मंगलवार को उस समय हल कर लिया, जब दोनों देशों ने जमीनी सीमा के सीमांकन और एक दूसरे के देश के 162 इलाकों के आदान-प्रदान पर ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन तीस्ता और फेनी नदी जल के बंटवारे पर कोई समझौता नहीं होने से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पहली यात्रा की चमक फीकी पड़ गई.
तीस्ता नदी जल संधि को अंतिम समय में वार्ता से हटा दिए जाने से अप्रसन्न बांग्लादेश को संतुष्ट करने के कदम के तहत सिंह ने बांग्लादेश से 61 वस्तुओं के भारतीय बाजारों में शुल्क मुक्त आयात को तत्काल प्रभाव से लागू करने की घोषणा की. इसके अलावा बांग्लादेशियों को तीन बीघा गलियारे से 24 घंटे आवाजाही की इजाजत दी.
जिन 61 वस्तुओं के आयात की मंजूरी दी गयी, उनमें 46 कपड़ा उत्पाद हैं जिनके लिए बांग्लादेश ने भारतीय बाजारों तक पहुंच की मांग की है. तीस्ता नदी पर अंतरिम समझौते पर पहुंचने में असफलता को लेकर बांग्लादेश की संवेदनशीलता से वाकिफ सिंह ने कहा कि हमारी साझा नदियों को असंतोष की वजह नहीं बनना चाहिए बल्कि उन्हें हमारे दोनों देशों की समृद्धि का अग्रदूत होना चाहिए.
इससे पहले तीस्ता नदी को लेकर समझौता नहीं होने के चलते भारत-बांग्लादेश संबंधों में उस समय फर्क महसूस किया गया, जब ढाका में तैनात भारतीय उच्चायुक्त राजीव मित्तर को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय द्वारा बुलाकर इस मुद्दे पर गहरी निराशा और हताशा का इजहार किया गया. मित्तर ने स्पष्ट किया कि तीस्ता समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर नहीं हो पाए क्योंकि इस मुद्दे पर भारत में आंतरिक विचार विमर्श पूरा नहीं हो पाया है. उन्होंने बांग्लादेशी विदेश मंत्रालय के विदेश सचिव मिजारूल कैस से मनमोहन सिंह के ढाका पहुंचने से कुछ ही देर पहले कहा कि जैसे ही आंतरिक विचार विमर्श पूरा हो जाएगा, तीस्ता संधि पर यथाशीघ्र हस्ताक्षर हो जाएंगे.
गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी की 1999 की यात्रा के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली बांग्लादेश यात्रा है. इसे द्विपक्षीय रिश्तों में नए आधार खोजने और रिश्तों में नये आयाम तलाशने के रूप में देखा जा रहा है. दोनों देशों के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा और उनके बांग्लादेशी समकक्ष दीपू मोनी ने भूमि सीमा संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने संपूर्ण भूमि का सीमांकन किया और एक-दूसरे के देश में स्थित अपने इलाकों के दर्जे की समस्या को हल किया. भारत और बांग्लादेश के बीच 4096 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम से लगी हुई है.
बांग्लादेश में 111 भारतीय क्षेत्र और भारत में 51 बांग्लादेशी क्षेत्र पर हुआ समझौता 1974 में इंदिरा मुजीब के बीच हुए समझौता के दर्शन को पूरा करते हैं. इन क्षेत्रों में तकरीबन 51000 लोग रहते हैं. दशकों से इन क्षेत्रों का मुद्दा भारत-बांग्लादेश संबंधों के बीच खटास का कारण रहा और आज इस संबंध में हुआ फैसला सिंह की यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. 1974 के बाद यह दूसरा मौका है, जब भारत अपने भूखंड का कुछ हिस्सा दूसरे देश को देने के लिए तैयार हुआ है.
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा दस्तखत किए गए सहयोग एवं विकास पर समझौता के ढांचा, जमीनी सीमा समझौता पर प्रोटोकाल, अक्षय उर्जा और नेपाल के लिए जमीनी रास्ते से पारगमन सहित दस समझौतों पर हस्ताक्षर किए. अन्य समझौतों में सुंदरबन का संरक्षण, रॉयल बंगाल टाइगर का संरक्षण, मत्स्य और मवेशी, ऑडियोविजुअल मीडिया, ढाका विश्वविद्यालय-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के बीच सहयोग और दोनों देशों में फैशन तकनीक संस्थान पर समझौता शामिल है.
समझौतों पर हस्ताक्षर के बाद मीडिया को वक्तव्य में मनमोहन ने कहा कि ये समझौते हमारी साझेदारी के लिए नए आयाम हैं, जो द्विपक्षीय सहयोग के नये रास्ते खोलेंगे, दक्षिण एशिया के भीतर क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करेंगे और अच्छे पड़ोसी संबंधों की मिसाल बनेंगे. उन्होंने कहा कि भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इस बारे में राष्ट्रीय सहमति है कि भारत को बांग्लादेश के साथ संबंधों को सर्वश्रेष्ठ रूप देना चाहिए. सिंह ने कहा कि हसीना के साथ उनकी विस्तृत एंवं गहन बातचीत हुई जिसे बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की 2010 में हुई ऐतिहासिक यात्रा से गति मिली थी.
आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ संयुक्त लड़ाई में बांग्लादेश द्वारा किए गए सहयोग के लिए प्रधानमंत्री सिंह ने देश की तरफ से हसीना की ‘सराहना’ की और कहा कि इससे हम दोनों को और पूरे क्षेत्र को स्थायित्व मिला है जिसकी बेहद जरूरत थी. सिंह ने कहा कि भारत बांग्लादेश का सच्चा और वास्तविक साझीदार है. हम अपने रिश्तों को सतत आधार पर बनाने के लिए पूरा प्रयास करेंगे और मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का भी यही रूख है.
First Published: Wednesday, September 7, 2011, 10:06