मजार के संरक्षक से प्रधानमंत्री पद तक का सफर

मजार के संरक्षक से प्रधानमंत्री पद तक का सफर

इस्लामाबाद: प्रधानमंत्री पद के लिए पाकिस्तान पीपल्स पार्टी द्वारा मनोनीत मखदूम शहाबुद्दीन को भले ही लोग अधिक न जानते हों लेकिन भुट्टो परिवार के प्रति गहरी आस्था रखने वाले इस शख्स को यह पद ऐसे समय पर मिल रहा है जब देश की गठबंधन सरकार को सेना और न्यायपालिका दोनों से ही वर्चस्व के टकराव का सामना करना पड़ रहा है।

दक्षिण पंजाब निवासी 65 वर्षीय शहाबुद्दीन ऐसे आध्यात्मिक परिवार से जुड़े हैं जिसे बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है। पंजाब के रहीम यार खान जिले में जन्मे शहाबुद्दीन ने अपना राजनीतिक करियर वर्ष 1988 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग एन से शुरू किया था। उन दिनों उन्होंने नेशनल असेंबली का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे।

प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के कार्यकाल में संघीय कपड़ा मंत्री रहे शहाबुद्दीन के पिता मखदूम हमीदुद्दीन हकीम सुहरावर्दी पीपीपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के करीबी सहायक भी थे। बाद में शहाबुद्दीन बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में पीपीपी में शामिल हो गए। रहीम यार खान से नेशनल असेंबली का चुनाव जीतने के बाद वर्ष 1993 से 96 तक वह बेनजीर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे।

पंजाब प्रांत के दक्षिण भाग की सेराइकी पट्टी से ताल्लुक रखने वाले पीपीपी के वरिष्ठ नेता शहाबुद्दीन ने वर्ष 2008 तक गिलानी मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी संभाला। पीपीपी पंजाब के दक्षिण भाग से एक नया प्रांत बनाना चाहती है और उसकी इस योजना के मद्देनजर प्रधानमंत्री पद पर शहाबुद्दीन की नियुक्ति महत्व रखती है।

पिछले साल शहाबुद्दीन को विदेश मंत्री बनाया जाना था लेकिन बाजी हिना रब्बानी खार के हाथ लगी। गिलानी की तरह ही शहाबुद्दीन भी एक आध्यात्मिक परिवार से संबद्ध हैं और उनका बहुत सम्मान किया जाता है। वह मुल्तान स्थित सूफी संत शाह-रूख-ए-आलम की दरगाह के संरक्षक भी हैं। (एजेंसी)

First Published: Thursday, June 21, 2012, 12:52

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