Last Updated: Saturday, July 6, 2013, 17:12
इस्लामाबाद : अफगानिस्तान में शांति एवं सुलह की प्रक्रिया को लेकर काबुल और इस्लामाबाद के बीच एक बार फिर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है। अफगानिस्तान ने जहां पाकिस्तान पर तालिबान को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है, वहीं पाकिस्तान ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि वह अफगानिस्तान में शांति चाहता है।
अफगानी सेना के प्रमुख जनरल शेर मोहम्मद करीमी ने बुधवार को कहा था कि पाकिस्तान ने अफगानी तालिबान नेताओं को पनाह दे रखी है, जिन्होंने अफगानिस्तान में लड़ाई छेड़ रखी है। `बीबीसी` से बातचीत में उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि पाकिस्तान चाहे तो अफगानिस्तान में `चंद सप्ताह` के भीतर आतंकवाद समाप्त हो सकता है।
पाकिस्तान ने इसका तुरंत खंडन किया और इसे पूरी तरह मनगढ़ंत व इस्लामाबाद को बदनाम करने की कोशिश बताया। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एजाज अहमद चौधरी ने कहा कि अफगानिस्तान के सैन्य व असैन्य अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल की गई `भड़काऊ भाषा` पर पाकिस्तान ने पूरा संयम बरता है।
इससे पहले अफगानिस्तान के उपविदेश मंत्री इरशाद अहमदी ने दावा किया था कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की सरकार को तालिबान के साथ सत्ता में साझेदारी करने का सुझाव दिया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि पाकिस्तान तालिबान को प्रश्रय देकर आतंकवाद के जरिए वह हासिल नहीं कर सका, जो वह करना चाहता था, इसलिए अब वह तालिबान को सत्ता में साझेदार बनाना चाहता है। वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चौधरी ने इस आरोप को पूरी तरह निराधार करार देते हुए कहा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान सरकार को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी सप्ताहांत में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि पिछले छह माह में अफगानिस्तान पर तालिबान को सत्ता में साझेदार बनाने का दबाव बढ़ा है। उन्होंने कतर में 18 जून को तालिबान का दफ्तर खोले जाने को `विदेशी षड्यंत्र` करार दिया। पाकिस्तान का हालांकि कहना है कि उसने कतर में शांति प्रक्रिया के लिए केवल मार्ग प्रशस्त किया। (एजेंसी)
First Published: Saturday, July 6, 2013, 17:12