Last Updated: Sunday, September 22, 2013, 12:30
कोलंबो : श्रीलंका की मुख्य तमिल पार्टी ने लिट्टे के पूर्व गढ़ रहे उत्तरी प्रांत में 25 सालों के बाद हुए प्रांतीय परिषद के चुनाव में आज भारी जीत हासिल की है। इस जीत के साथ ही दशकों के जातीय युद्ध के बाद तमिलों को सीमित स्वायत्तता मिलने की उम्मीद बंधी है। तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) ने राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के सत्तारूढ़ गठबंधन यूपीएफए को उखाड़ फेंकते हुए प्रांत के बहुप्रतीक्षित चुनाव में 38 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की है। टीएनए द्वारा जीती गयी 30 सीटों में दो बोनस सीटें भी शामिल हैं जो श्रीलंका की आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत जीतने वाली पार्टी को आवंटित की जाती हैं। सरकारी चुनाव परिणामों में यह जानकारी दी गयी है।
यूपीएफए गठबंधन को मात्र सात सीटों पर जीत मिली है और एक सीट मुस्लिम कांग्रेस के खाते में गयी है। टीएनए ने किसी समय लिट्टे के गढ़ रहे सभी पांच जिलों में सत्तारूढ़ यूपीएफए को परास्त कर दिया है। तमिल गठबंधन को जाफना, वावुनिया और किलिनोच्ची जिलों में 80 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं। मुल्लाथिवू और मन्नार जिलों में पार्टी ने क्रमश: 78 और 61 फीसदी मत हासिल किए हैं। तमिलों की सांस्कृतिक राजधानी माने जाने वाले जाफना में टीएनए को डाले गए कुल मतों में से 89 फीसदी मत मिले हैं।
नार्दर्न प्रोविंस में चुनाव की निगरानी के लिए भारत समेत 2000 से अधिक स्थानीय और विदेशी पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए थे जहां लोगों ने पांच साल के कार्यकाल के लिए 38 सदस्यीय परिषद का चुनाव किया है। चुनाव आयुक्त महिंदा देशप्रिया ने बताया कि नार्दर्न, सेंट्रल और नार्थ वेस्टर्न प्रांतों के लिए हुए चुनाव कुल मिलाकर स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे। हालांकि कुछ छुटपुट घटनाएं कुछ स्थानों पर देखने को मिली। सत्तारूढ़ पार्टी ने सेंट्रल और नार्थ वेस्टर्न प्रोविंशियल कौंसिल में सभी सीटों पर जीत हासिल की है। पार्टी की शानदार जीत पर वरिष्ठ टीएनए विधायक एमए सुमंथीरन ने कहा कि यह तमिलों की आवाज है।
सुमंथीरन ने बताया, हमने उन लोगों को बताया था कि ये चुनाव उनके लिए अपना राजनीतिक रूख घोषित करने का एक मौका हैं। वरिष्ठ विधायक सुरेश प्रेमचंद्रन ने बताया कि उत्तर के लोगों ने सरकार को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे अलगाव के बिना एक राजनीतिक समाधान चाहते हैं। मतदान से पूर्व सत्तारूढ़ गठबंधन का चुनाव प्रचार अभियान मुख्य रूप से टीएनए के घोषणापत्र पर हमला करने पर केंद्रित था। टीएनए पर आरोप है कि उसने देश केा लिट्टे के आतंक के युग में धकेलने की कोशिश की है। मुख्य तमिल पार्टी का तर्क रहा है कि वह एक संघीय ढांचे में तमिलों के आत्मनिर्णय के अधिकार की वकालत करता है।
प्रांतीय परिषदों के 1987 में द्वीपीय देश का हिस्सा बनने के बाद नार्दर्न कौंसिल चुनाव पर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की करीबी नजर थी। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी श्रीलंका पर दबाव डाल रही थी कि उसे तमिलों के साथ सुलह समझौता करना होगा। 1988 में उत्तरी और पूर्वी प्रांतीय परिषदों के पहले चुनाव में , अलग तमिल गृह प्रदेश बनाने को लेकर लिट्टे के सशस्त्र अभियान के चलते , केवल एक राजनीतिक पार्टी ने हिस्सा लिया था।
2006 में एक अदालती आदेश के बाद दो प्रांतों का पुन: विलय किया गया था और पहले पूर्वी प्रांतीय परिषद चुनाव 2008 में हुए थे। वर्ष 2009 में लिट्टे का सफाया होने के बाद युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पुनर्वास कार्यो के चलते उत्तरी परिषद के चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। उत्तरी परिषद के चुनाव में करीब 906 उम्मीदवार मैदान में थे । 1987 के भारत. श्रीलंका समझौते के तहत 13वें संशोधन के अनुसार परिषदों का गठन किए जाने के बाद उत्तरी परिषद के ये पहले चुनाव थे। इन ऐतिहासिक चुनावों को इस फैसले के रूप में भी देखा जा रहा था कि क्या तमिल बहुल प्रांत विकास के अधिक अवसर चाहते हैं या लोग अधिक स्वायत्तता चाहते हैं। इन चुनाव से अल्पसंख्यक तमिल समुदाय को दशकों के जातीय संघर्ष के बाद स्वशासन का मौका मिला है। इस संघर्ष में एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 22, 2013, 12:30