Last Updated: Wednesday, August 29, 2012, 12:32

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पर वर्ष 2008 में हुए आतंकवादी हमले में पकड़े गए एकमात्र जीवित आतंकवादी अजमल आमिर कसाब की फांसी की सजा बुधवार को बरकार रखी है।
मुंबई की एक विशेष अदालत ने वर्ष 2010 में कसाब के खिलाफ फांसी की सजा सुनाई थी। कसाब ने इस फैसले को बंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे न्यायालय ने फरवरी 2011 में अमान्य कर दिया था। गौर हो कि बंबई हाईकोर्ट ने कसाब को फांसी की सजा सुनाई थी।
कसाब की सारी दलीलें खारिज करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज के फैसले में कहा कि उसका जुर्म माफी के लायक कतई नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास कसाब की मौत की सजा को बरकरार रखने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना कसाब द्वारा किया गया सबसे बड़ा अपराध है। शीर्ष कोर्ट ने कसाब की इस दलील को अस्वीकार किया कि 26/11 के आतंकी मामले में उसके मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमलों में आमिर अजमल कसाब की सजा-ए-मौत बरकरार रखते हुए कहा कि मामले की सुनवाई से पहले के चरण में सरकार द्वारा कसाब को वकील मुहैया नहीं कराना मामले में उसकी सुनवाई को प्रभावित नहीं करता। कसाब का इकबालिया बयान स्वैच्छिक था।
गौर हो कि कसाब ने इस आतंकी हमले में उसे मौत की सजा दिये जाने के विशेष अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। इस हमले में 166 व्यक्ति मारे गए थे। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने कहा कि हम इस रुख को बरकरार रखने के लिए बाध्य हैं कि फांसी ही एकमात्र ऐसी सजा है, जिसे इस मामले की स्थितियों में दी जा सकती है।
निचली अदालत ने कसाब को मृत्युदंड सुनाया था और बाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को बरकरार रखा था। उसके बाद उसने मृत्युदंड के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
न्यायालय ने कसाब के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला भारत सरकार के खिलाफ युद्ध था, न कि भारत या यहां के लोगों के खिलाफ। न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार, देश का एकमात्र निर्वाचित अंग और सम्प्रभु सत्ता का केंद्र है। इसके बाद न्यायालय ने कहा कि आरोपी का प्राथमिक और मुख्य अपराध भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना ही था।
न्यायालय ने कसाब की अपील खारिज करने के साथ ही इस आतंकी वारदात में सबूतों के अभाव में दो अन्य अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील भी खारिज कर दी। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि कसाब ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश में शामिल होने का अपराध किया है।
न्यायाधीशों ने कहा कि मुंबई पर आतंकी हमले के तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर मोहम्मद अजमल कसाब को मौत की सजा देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। न्यायाधीशों ने कसाब की इस दलील को ठुकरा दिया कि उसके मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई। न्यायालय ने कसाब के इकबालिया बयान के बारे में कहा कि यह स्वेच्छा से दिया था। निचली अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान वह इससे मुकर गया था।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसे वकील मुहैया नहीं कराने के कसाब की दलील अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने सुनवाई के दौरान इस बारे में बार बार आग्रह किया था लेकिन उसने हर बार इसे ठुकरा दिया था। शीर्ष अदालत ने उच्चतम न्यायालय में कसाब का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को सौंपी थी। राजू रामचंद्रन ने न्यायालय के फैसले पर संतोष व्यक्त किया।
उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी, 2011 को कसाब का मृत्युदंड बरकरार रखा था। इसके पहले मुम्बई की एक अदालत ने छह मई, 2010 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। अन्य आरोपों के अलावा उसे राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी पाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन महीने तक चली बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। मामले की सुनवाई 31 जनवरी से शुरू हुई थी। कसाब और उसके नौ साथी कराची से समुद्र मार्ग से मुम्बई पहुंचे थे। उसके बाद उन्होंने एक निजी भारतीय नौका एम.बी. कुबेर को अगवा कर लिया था और उसके नाविक अमर चंद सोलंकी को मार डाला था।
गौर हो कि मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हमला करने वाले 10 आतंकवादियों में से कसाब एकमात्र ऐसा आतंकवादी है, जिसे जीवित पकड़ा गया था। इस हमले में 166 लोग मारे गए थे। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, August 29, 2012, 09:06