Last Updated: Friday, March 2, 2012, 14:02
नई दिल्ली : सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष 2जी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आज अपना विश्लेषण प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि कोर्ट के फैसले में ‘पहले आओ पहले पाओ की नीति’ दोषपूर्ण बताया जाना कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल है।
दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने 2जी मामले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष दलील दी कि नीति पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस आधार पर दोषपूर्ण लगता है कि मामले में कार्यपालिका ने जहां विभिन्न कारकों को ध्यान में रखकर निर्णय किया, वहीं न्यायपालिका इन कारकों से इत्तेफाक नहीं रखती।
दूरसंचार विभाग ने यह भी कहा, ‘नीति के संदर्भ में फैसला स्थापित कानूनों के विपरीत लगता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के ही अनुसार नीति बनाना तथा राजकाज का संचालन विभिन्न मूल्यों और विचारों के बीच संतुलन कायम करने जैसा है और यह कार्यपालिका का काम है। इसलिए यह अदालत के लिए उचित नहीं कि वह स्वयं इस काम को हाथ में लेकर नीति बनाने में लग जाए। इसके पीछे दो वजह हैं, पहला कि यह कोर्ट का काम नहीं है और दूसरा उसकी इस क्षेत्र में विशेषज्ञता नहीं है।’
दूरसंचार विभाग ने समिति के समक्ष कहा कि कोर्ट के फैसले में नीति को दोषपूर्ण बताने का आधार तुटिपूर्ण लगता है। कोर्ट के विचार में आर्थिक वृद्धि को गति देने, सस्ती सेवा, वायरलेस सेवा की छोटे शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच के साथ-साथ 2जी स्पेक्ट्रम मामले में मौजूदा और नए लाइसेंसधारकों के बीच समान अवसर देने के बजाए देश के लिए अल्पकाल में ज्यादा से ज्यादा राजस्व जुटाने को तरजीह दी गई।
सरकार के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि पहले आओ-पहले पाओ नीति में गड़बड़ी के तत्व शामिल थे लेकिन उसने इस बात पर गौर नहीं किया कि किसी भी नीति में गड़बड़ी का जोखिम रहता है। इसमें सार्वजनिक नीलामी भी शामिल है जिसका क्रियान्वयन गलत हो सकता है। दूरसंचार विभाग ने आरके गर्ग बनाम भारत सरकार 1981, बाल्को इम्प्लाईज बनाम भारत सरकार 2002 तथा बांबे डाइंग बनाम बंबई इनवायरमेंट एक्शन ग्रुप 2002 समेत चार मामलों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि मौजूदा निर्णय इन फैसलों के खिलाफ है।
विभाग ने शीर्ष अदालत के 2 फरवरी को दिए गए फैसले को लेकर सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की भी जानकारी दी। कोर्ट ने अपने इस फैसले में 122 2जी लाइसेंस रद्द कर दिए। इसमें अंतरिम आवेदन तथा प्रस्तावित नीलामी के लिए समय सीमा (400 दिन) रखना तथा प्रस्तावित समीक्षा याचिका शामिल है जिसमें सरकार लाइसेंस रद्द करने के निर्देश की समीक्षा का आग्रह नहीं कर रही है। पुनरीक्षा याचिका में कोर्ट से यह अनुरोध होगा कि वह अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करे जिसमें सरकारी नीति तय करते हुए कहा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन केवल नीलामी के जरिए ही होना चाहिए।
(एजेंसी)
First Published: Saturday, March 3, 2012, 00:27