Last Updated: Thursday, October 13, 2011, 13:40
जी न्यूज ब्यूरोनई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर यूपीए सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि नवंबर 2007 में ए. राजा को प्रधानमंत्री की तरफ से लिखी गई चिट्ठी पर अमल क्यों नहीं हुआ? सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को जेल में बंद यूनिटेक वायरलैस (तमिलनाडु) प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक संजय चंद्रा और स्वान टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका की जमानत अर्जियों पर सुनवाई कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीलामी का पक्ष लेने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रुख की अनदेखी की गई तथा घोटाले पर रोकथाम के लिए समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एच. एल. दत्तू की पीठ ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से पहले हालात से निपटने में सरकार के तरीके की आलोचना करते हुए कहा कि आवंटन में नीलामी की नीति को नहीं अपनाया गया और ए. राजा की अगुवाई में संचार मंत्रालय ने पहले आओ पहले पाओ की नीति को अपनाया।
अतिरिक्त सालिसिटर जनरल हरेन रावल ने आरोपियों की जमानत अर्जियों का विरोध किया। पीठ ने कहा, ‘आप आशंका जता रहे हैं कि आरोपियों को जमानत मिली तो वे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं और सीबीआई के मामले को प्रभावित कर सकते हैं। आरोप पत्र में दो नवंबर 2007 की तारीख है जो कि अहम तारीख है। इस तारीख के बारे में सभी जानते हैं और आप (सीबीआई) भी जानते हैं।’
पीठ ने कहा, ‘सरकार के मुखिया पत्र लिखते हैं कि स्पेक्ट्रम आसाधारण है और इसमें नीलामी होनी चाहिए। मंत्री (तत्कालीन संचार मंत्री राजा) इस पर राजी नहीं हुए। वित्त विभाग ने भी विरोध जताया। क्या आपको लगता है कि उस वक्त जो चल रहा था सरकार को उसकी जानकारी नहीं थी।’ पीठ ने दूरसंचार आयोग की 9 जनवरी, 2008 की प्रस्तावित बैठक का भी जिक्र किया जिसे 15 जनवरी तक स्थगित कर दिया गया और राजा ने 10 जनवरी को 2जी स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी की नीति को अपनाए बिना 122 आशय पत्र जारी किए।
पीठ ने कहा, ‘इस स्तर पर आप फैसला लेकर पूरी कवायद से बच सकते थे। सरकार को इन तीन सालों में कदम उठाने से किसने रोका।’ एएसजी ने कहा कि 10 जनवरी 2008 को ही सरकार को पता चल गया था कि तत्कालीन संचार मंत्रालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए फैसला किया है और आज उन लोगों की भूमिका की पड़ताल कर रहे हैं जो 10 जनवरी के फैसले में शामिल रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाज विपक्षी दलों ने सरकार को फिर आड़े हाथों लिया। भाजपा ने पीएम से जवाब मांगा है कि उनकी चिट्ठी पर सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यदि ए. राजा पीएम की बात नहीं मान रहे थे तो पीएम खुद ही फाइल मंगाकर कार्रवाई कर सकते थे।
माकपा ने कहा कि राजा की निष्क्रियता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बारे में पीएम मनमोहन सिंह को सफाई देनी चाहिए। माकपा नेता वृंदा करात ने कहा, ‘सरकार को जब कार्रवाई करनी चाहिए थी, उस वक्त उसने कार्रवाई नहीं की।’
First Published: Wednesday, February 1, 2012, 20:28