37 साल में भी संयुक्त राष्ट्र नहीं पहुंची हिन्दी

37 साल में भी संयुक्त राष्ट्र नहीं पहुंची हिन्दी

नई दिल्ली: आज से 37 साल पहले पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ था जिसमें भारत की इस राजभाषा को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था। उसके बाद तीन अन्य सम्मेलनों में भी ऐसे प्रस्ताव पारित हुए, लेकिन बात कोई खास आगे नहीं बढ़ पाई।

इस महीने की 22 से 24 तारीख तक दक्षिणी अफ्रीका के जोहानसबर्ग में नौंवा विश्व हिन्दी सम्मेलन होने जा रहा है। यह देखने वाली बात होगी कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने की मुहिम कितना आगे बढ़ पाती है।

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975 में नागपुर में हुआ था, जिसमें पारित प्रस्ताव में कहा गया, ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप स्थान दिलाया जाए।’’ इसके बाद 1976 में मारिशस, 1999 में लंदन और 2003 में सूरीनाम में हुए ऐसे सम्मेलनों में भी इस आशय के प्रस्ताव को दोहराया गया।

पूर्व विदेश राज्य मंत्री हरिकिशोर सिंह ने इस बारे में पूछे गए सवाल पर कहा, ‘‘जिस भाषा की अपने देश में ही दुर्गति बनी हुई हो वह संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा कैसे बन जाएगी। जब तक अपने देश में इसे सम्मान और प्राथमिकता नहीं दी जाती, दूसरे इसे बढ़ावा क्यों देंगे।’’ उधर विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास में कमी नहीं की जा रही है लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में ही आयोजित करके इस मुहिम को विश्व संस्था की दहलीज़ तक ले जाने का प्रयास ही किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून भी उस सम्मेलन में आए थे और हिन्दी में कहा था, ‘‘नमस्ते, मैं हिन्दी थोड़ी बहुत बोलता हूं। मुझे खुशी हो रही है समय देते हुए। मैं आप सबको शुभकामनाएं देता हूं।’’

सरकारी सूत्रों ने बताया कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयासों में सरकार कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। लेकिन ऐसा करने के लिए और बहुत सी बातों के अलावा वित्तीय आयाम भी जुड़े हैं। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने पर भारत को इस विश्व संस्था को काम काज के लिए काफी बड़ी राशि भी देनी होगी। हरिकिशोर सिंह ने हालांकि कहा, ‘‘भारत के लिए अब पैसे का जुगाड़ करना कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए। अगर आप हिन्दी को यश देने का मन बना लें तो ऐसी बातें आड़े नहीं आतीं।’’ संयुक्त राष्ट्र में इस समय अंग्रेजी़, फ्रांसिसी, स्पेनी, रूसी, चीनी और अरबी को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा मिला हुआ है। अरबी को 1986 में इस तर्क पर आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई कि इसे 22 देशों में लगभग 20 करोड़ लोग बोलते हैं। संख्या को अगर आधार मानें तो भारत में 30 करोड़ से अधिक की आबादी हिन्दीभाषी है। (एजेंसी)

First Published: Monday, September 17, 2012, 19:35

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