Last Updated: Tuesday, July 16, 2013, 21:39

नई दिल्ली : सीबीआई ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि उसके निदेशक को दो साल के बजाय कम से कम तीन साल का कार्यकाल और उन्हें भारत सरकार में सचिव के बराबर का दर्जा दिया जाए। सीबीआई ने एजेंसी के लिए एक जवाबदेही समिति के गठन के केंद्र के प्रस्ताव को खारिज करते हुए अपने लिए पहले से ज्यादा वित्तीय स्वायत्तता भी मांगी।
सीबीआई निदेशक के प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकारों को ‘सीमित’ बताते हुए एजेंसी ने अपने 14 पन्ने के हलफनामे में कहा कि केंद्र सरकार ने सीबीआई की स्वायत्तता और इसे बाहरी प्रभावों से मुक्त करने के लिए जो उपाय बताए हैं, उससे कहीं ज्यादा कदम उठाने की जरूरत है।
सीबीआई ने कहा कि जांच एजेंसी के निदेशक में सचिव जैसे ही अधिकार निहित हों और वह सीधा मंत्री को रिपोर्ट कर सकें। निदेशक को इसके लिए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से होकर नहीं गुजरना पड़े।
जांच एजेंसी ने सीबीआई अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले दुर्व्यवहार, अनुचित कार्य या अनियमितता के आरोपों की तफ्तीश के लिए एक जवाबदेही आयोग बनाने के केंद्र के प्रस्ताव का भी विरोध किया।
स्वायत्तता के मुद्दे पर केंद्र के प्रस्ताव के जवाब में सीबीआई ने इस बात पर जोर दिया कि उसके निदेशक का कार्यकाल कम से कम तीन साल होना चाहिए। सरकार ने निदेशक का कार्यकाल दो साल रखने का सुझाव दिया था। सीबीआई ने कहा कि निदेशक को और ज्यादा अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि एजेंसी ‘बिना किसी भय या पक्षपात के अपने मुख्य काम कर सके’।
हलफनामे में कहा गया, ‘मौजूदा व्यवस्था में निदेशक के प्रशासनिक, अनुशासनिक एवं वित्तीय अधिकार सीमित हैं और इससे तेज तथा प्रभावी जांच सुनिश्चित करने तथा अपने मातहतों के बीच उच्च नैतिक मानक सुनिश्चित करने की उनकी काबिलियत पर असर पड़ता है।’
जांच एजेंसी के हलफनामे में कहा गया, ‘ऐसे में यह जरूरी है कि निदेशक में भारत सरकार के सचिव के पदेन अधिकार निहित हों और वह कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से गुजरे बिना सीधे मंत्री को रिपोर्ट करे। इसका मतलब यह भी है कि सीबीआई का बजट अलग से व्यय विभाग के मंत्री के जरिए रखा जा सकता है।’
सीबीआई ने कहा कि जहां तक जांच की बात है, इस व्यवस्था के तहत निदेशक मंत्रालय से स्वतंत्र होगा और प्रशासनिक तथा वित्तीय मामलों के लिए वह मंत्री के प्रति जवाबदेह होगा।
एजेंसी ने कहा, ‘यदि सीबीआई को बिना किसी भय और बिना किसी पक्षपात के अपनी जिम्मेदारियों को अंजाम देना है तो इसके लिए जरूरी है कि उसका निदेशक रोजमर्रा के प्रशासनिक और वित्तीय फैसले तय नियमों के तहत लेने के लिए स्वतंत्र हो।’
हलफनामे में कहा गया, ‘यह दोहराने की जरूरत है कि सीबीआई की दक्षता और रोजमर्रा के कामकाज में मंत्रालय के दखल से आजाद करने के लिए उसे प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार देना जरूरी हैं। रोजमर्रा के प्रशासनिक और वित्तीय मंजूरियों के लिए जो निदेशक मंत्रालय पर निर्भर रहता है वह जटिल परिस्थितियों में स्वतंत्र और वस्तुनिष्ठ निर्णय नहीं कर सकता।’ (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 16, 2013, 16:19